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इश्क़ बनारस …

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तुम्हारे सर पे पल्लू और बंद आँखो से नज़रें हटाना मुश्किल है…….
तुम मिले भी तो बाबा के दरबार में जहां रुकना भी मुमकिन नही होता।

सुनो, पीपे के पुल के शोर में कुछ भी सुन पाना बड़ा मुश्किल है……
और बिना समझे तुमको ताकना कि तुम्हारा बोलना बंद नही होता ।

बनारस की नशीली हवाओं में सीधे खड़े रहना भी मुश्किल है……
उस पर तुम्हारे हाथों से मिली ठंडई का क़हर कम नही होता ।

मिज़ाज अक्खड़ बनारसिया कि कदमों का ठहरना ज़रा मुश्किल है…..
उस पर तुम्हारे सोलह सोमवार का व्रत का असर कम नही होता ।

कुछ मुलाक़ातों बातों में कोई कहानी बनाना बड़ा मुश्किल है……
इस तरह बिन बताए गोदौलिया की भीड़ में कोई साथ नही छोड़ता।

अब तो यहाँ किनारों पर एक एक पल भी काटना मुश्किल है……
ये वही अस्सी घाट ही है जहां दिन का भी पता नही चलता।

बीतती शाम के साथ दिल को सम्भालना बड़ा मुश्किल है……
अब तो गंगा आरती पर भी उनका आना जाना नही होता ।

अब तो गंगा किनारे यूँ ही तनहा भटकना भी मुश्किल हैं……
तुम्हारी यादों का कारवाँ कभी साथ ही नही छोड़ता।

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