‘प्रेम साथ रहा तो बस जुदाई का डर लिए। प्रेम वास्तव में तो सदा जुदाई में गए जिए।।”
इन पंक्तियों को अकेले में बैठकर हज़ार बार पढ़िए! गहरे डूब जायेंगे! जिन्होंने प्यार किया है वे एक बार में समझ जायेंगे…..उन्हें डूबने की जरूरत नहीं है, डूबे तो वे पहले से ही हैं… इनका कुछ नहीं हो सकता😜
अटैच फोटो को देखिए। दो दिन से होम आइसोलेशन में हूँ और मेरे सरकारी घर के इस कमरे से इस तरह का नज़ारा मिल रहा है। BHU के हॉस्टल के कमरे की याद आ गयी…… दोपहर में भर पेट छोला चावल खाकर लकड़ी के तख्त पर हल्का मोटा बिछावन, बगल में एक मसनद और सिराहने बाईं तरफ टेबल पर लैपटॉप पर गज़ल ……… बस हल्की पीली भागलपुरी चादर ओढ़ मस्त अजगर हुए जा रहे हैं हम!खिड़की से बाहर झाँके जा रहे हैं हम! सुख तो यही है बस! इससे ज्यादा इस दुनिया में ईश्वर से और क्या ही माँगूं! धरा पर इस समय कहीं स्वर्ग है तो इसी फोटू वाले कमरे में है।
गाना भी खूब बज उठा है …. लग जा गले की फिर कभी मुलाकात हो न हो…..( एक धीमी स्वर लहरी में महसूस कीजिये)। आहा……
एक चाय की तलब लग रही है… लिम्बड़ी कार्नर वाली… BHU के मित्रों के साथ …भर दुपहरी में… आम के पेड़ के नीचे बैठ….
घबराइये मत ! कुछ हुआ नहीं है! सिर्फ सावधानी बरत रहे हैं और अपनों की सुरक्षा की खातिर खुद को आइसोलेट कर रखा है।
मेरे लिए कोरोना आज तक एक शब्द ही था ! कुछ खबर, कुछ आँकड़े, कुछ मौतें, कुछ सिस्टम की नाकामी और कुछ कोरोना को लेकर सरकार के असफल निर्णयों को सफल घोषित करते और उनकी झूठी प्रशंसा करते पत्रकार…. मैंने लाकडाउन भी देखा और अपने कर्तव्यों के निर्वाहन हेतु लाकडाउन में अपने क्षेत्र में भी निकला। पूरी की पूरी पुलिस, आर्मी सब लगी थी लाकडाउन में! घर से ऑफिस जाने में कई बार चालान कटने तक की नौबत भी आयी….
कई बार मन में ये भी आया कि काश कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट मिल जाये तो ऑफिस में २०-२१ दिन की छुट्टी भी ले लूँ ! दोस्तों से फ़ोन पर, ऑफिस में हर जगह बस गप्प ही गप्प! चाय की दुकान पर चाय भी पी रहे हैं, लैया-चना भी खा रहे हैं! रोज ऑनलाइन स्विग्गी और जोमैटो भी हो रहा है ! भाई वाह ! क्या कहने ! हम तो कोरोना काल को फुल एन्जॉय कर रहे थे ! डर था और कोरोना भी था ही! लेकिन बस बात भर को और हमारे दिमाग में बात करते क्षण भर को।
लेकिन कल रात को आँखें खुल गयी। जब एक मित्र के बड़े भाई को, ऑक्सीजन लेवल कम होने पर रात भर लखनऊ जैसे शहर में गाड़ी लेकर घूमते रहे और दर्जनों हॉस्पिटल्स ने सिरे से एडमिट करने से मना कर दिया। सरकारी हॉस्पिटल भी फुल चल रहे थे। कोविड हेल्प लाइन नंबर को खुद हेल्प की जरुरत थी! एक ही जवाब कि आई०सी०यू० की व्यवस्था नहीं है, बेड खाली नहीं है। मरीज के परिवार के आँखों में उदासी, अपने को खोने का डर, कुछ न कर पाने की लाचारी और मैं भी असहाय….! ये सब बेहद करीब से अनुभव किया मैंने।
ये सब देखने के बाद तो दिल में डर सा बस गया। लेकिन आज ये डर कोरोना से नहीं था। खराब सिस्टम और चिकित्सा व्यवस्था से था। अव्यवस्थित, अपंग और मूढ़ शासन-प्रशासन से था। माना कि ये महामारी का दौर है और कुछ चीजे नियंत्रण से बहार है लेकिन कोरोना को आये एक साल से ज्यादा हो गया। हमने वैक्सीन तो बना ली लेकिन सिस्टम अभी तक नहीं बना पाए। हॉस्पिटल्स नहीं बना पाए या क्षमता नहीं बढ़ा पाए। या फिर सच ये है की ये सब हमारे एजेंडे में ही नहीं है।
सारा विकास और लक्ष्यों की प्राप्ति केवल सरकार के सरकारी विज्ञापनों में हैं। साकार अपनी योजनाओं को विज्ञापन के माध्यम से लागू करती है, विज्ञापनों में पूरा भी कर लेती है और विज्ञापनों के माध्यम से खुद की पीठ भी थप-थपा लेती है। मजा आता है ये सब देखकर और अफ़सोस होता है अपने पढ़े-लिखे और समझदार होने पर ! ताज्जुब होता है कि ये सरकार हमने ही चुनी है न ? या किसी कंप्यूटर ने ?
अगर आप गरीब है तो आपके पास अपनी किस्मत और ईश्वर को कोसने के अलावा कुछ और नहीं है। यदि आप मध्यम वर्गीय है तो अपने पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ नौकरी और व्यवसाय को कोसने के अलावा कुछ और नहीं। सरकार और ईश्वर को कोस नहीं सकते आप। और यदि उच्चवर्गीय है तो आप भगवान और सरकार जैसी व्यवस्थाओं में समय नहीं बर्बाद करेंगे और अच्छी व्यवस्था तलाशेंगे भले ही वो किसी और देश में मिले। सरकारें तो खुद आपके सामने झोली फैलाएँ खड़ी मिलेंगी।
अंत में इतना कहूँगा की सिर्फ पढ़े-लिखे होना/दिखना जरुरी नहीं है। पढ़-लिखे जैसा बर्ताव भी जरुरी है। वरना कोई मूर्ख अपनी सरकार बना लेगा और अगले पांच साल तक वो विज्ञापनों के माध्यम से खुद को समझदार और आपको चूतिया साबित करता रहेगा।
देश आपका।
जान आपकी।
इस पर नियंत्रण आपका।
जीवन के लिए उचित सभी सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए। इसकी माँग करिए। समझदारी से करिए। खुलकर करिए। जीवित रहिएगा तो ईश्वर की आराधना कर ही लीजियेगा।
आप सभी को प्रणाम 🙏
आशीर्वाद दीजिये कि स्वस्थ रहूँ और कुदृष्टि से बचा रहूँ 😆
कुछ लिखने लायक़ बन सका, जब पढ़ने का मौक़ा मिला। तेरे विचारों को समझने का हमको तुझसे ही मौक़ा मिला।। सभी मनुष्य है एक समान ये बातें बातों तक ही सीमित थी। इन बातों को मूर्त रूप करने को तेरे जैसा शिल्पकार मिला।।
विधि, अर्थ, मज़दूर, स्त्री, शोषित, स्थिति बड़ी दयनीय थी। तेरे अतुल्य ज्ञान के योगदान से ये सारा अन्धकार दूर हआ।। तुझको पाकर भारत रत्न भी अपना देखो गौरव वान हुआ। नाम तेरा ही देश-विदेश में आज भारत की पहचान हुआ।।
धन्य धरा है भारत माँ की जो इसने तेरे जैसा लाल जना। भारत को महान बनाने को जो स्वयं आधार स्तम्भ बना।। बाबा तुझ पर मेरा लिखना, जैसे दिन में दीपक का जलना। तेरे आदर्शों पर चल सकूँ, बस इतना मार्ग प्रशस्त करना।।
तेरे बाद लखनऊ के वो किस्से कौन सुनाएगा ? लखनऊ को लखनऊ के बारे में कौन बताएगा??
इस शहर को जानने की ख्वाहिश अधूरी रह गयी आपसे मिलने की मेरी दिली तमन्ना अधूरी रह गयी।
शहरों को करीब से जानने की एक ललक है मुझमें… जब भी किसी गली-मुहल्ले और पुरानी इमारतों के बगल से गुजरता हूँ तो उनके होने के इतिहास में कहीं गुम हो जाता हूँ, या यूँ कहूँ की फ़्लैश बैक में ही जीता हूँ मैं! योगेश जी के बारे में और योगेश जी को पहली बार रेडियो पर सुना था। फिर तो उनके बारे में गूगल कर डाला। खूब पढ़ा उन्हें। खुश भी हुआ कि मैं भी लखनऊ में ही रहता हूँ, एक दिन मुलाकात कर ही लूँगा ! ख़ैर….. ईश्वर को आपसे मिलने की जल्दी मुझसे कहीं ज्यादा थी और ईश्वर के आगे किसी की चलती भी कहाँ है? अब आप ऊपर ही एक लखनऊ बसाइयेगा और वहां से धरती के लखनऊ पर अपनी कृपा दृष्टि और दुलार बनाये रखियेगा ताकि लखनऊ की विरासत सदा जिंदा रहे। अब तो आपका अधिकार क्षेत्र और नज़र और व्यापक हो गए है।
आपका जाना दुःख दायक है किंतु आप हमारे दिलों में सदा लखनऊ बनकर जीवित रहेंगें…….