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Hamsafar (हमसफ़र)- A book

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प्रिय पाठक,

              जीवन का सफर लगातार जारी है… न जाने अब तक कितनों से मुलाकात हुई होगी और न जाने कितनों से मुलाक़ात होनी बाकी है। यह मुलाक़ातें यूँ ही नहीं होती। कोई मक़सद ज़रूर होता है। कुछ मुलाक़ातें तो समय के साथ धूमिल हो जाती हैं और कुछ खास आप पर एक अमिट छाप छोड़ जाती हैं जो जीवन भर एक अच्छे या बुरे एहसास के रूप में हमारे साथ होती हैं। ये एहसास ही हमारा रूप तय करते हैं और इन्हीं अनुभवों के आधार पर हमारा व्यक्तित्व निखर कर सामने आता है। हम कितना भी चाहें अपनी पिछली यादों से बच नहीं सकते और हमारी हर क्रिया-प्रतिक्रिया पर इनका एक माक़ूल असर होता है।

              अब चूँकि कोई भी सफर अकेले काटना संभव नहीं है और मस्तिष्क को व्यस्त रहने के लिए भी कुछ चाहिए। ऐसे में यादों रूपी हमसफ़र आपका हर पल साथ निभाते हैं। अब यहाँ एक बात समझना जरुरी है कि जो जीवन भर साथ निभाए केवल वही हमसफ़र हो, यह जरुरी नहीं। किसी खास पल में किसी खास के साथ बिताया गए समय में वह खास व्यक्ति भी एक हमसफ़र ही होता है, भले ही वो पल भर का क्यूँ न हो ! कभी-२ ऐसी यादें ता-उम्र साथ रह जाती हैं एक खास एहसास के साथ। 

                ऐसी कई यादों, अनुभवों, एहसासों और पलों को तिनका-२ जोड़कर इस किताब को गढ़ा गया है। कोशिश की गयी है की आपको पुनः उन पलों में ले जाया जाए और उन एहसासों से दो-चार कराया जाए….! तो आइये चलते हैं यादों के सफर पर ……… बनने को एक – दूजे का हमसफ़र………(कुछ पलों के लिए)!

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