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चौराहा…

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केवल चार तरफ़ से आ रही सड़कों का मिलन ही नही होता है चौराहा। कई प्रकार की जिंदगियों का जंक्शन भी होता है। अपने आप में विविधताएँ लिए हुए दिन भर कई बदलावों के चक्र से होकर गुजरता है ये। सुबह 9 से 11 और शाम में 4.30 से 7 तक बेहद व्यस्त रहने वाला चौराहा पूरे दिन लगभग एक जैसा रहता है और रातों में इसके हिस्से आता है केवल अकेलापन। दिन भर की थकान को मिटाती, सुस्ताती हुईं चारों ओर की सड़के एक दूसरे से बैठ दिन भर की घटनाओं पर बतकही करती।

कई तरह के भावों से गुजरता हूँ मैं चौराहे पर। अक्सर लाल बत्ती पर रुकना होता है और फिर शुरू होता है ऐसे मौके का फायदा उठाने को तैयार बच्चों या फिर न जाने किसका बच्चा लिए माँ रूपी आवरण ओढ़े हुए औरतों का भीख मांगने का सिलसिला। इन सब चीजों पर इतना पढ़ और देख चुका हूँ कि दया कम आती और इनके रैकेट से डर ज्यादा लगता है। लाख खिड़की पर कोई खड़ा माँगता रहे, मुड़कर नही देखना और चेहरे पर मनहूसियत का ओढ़ लेना मेरा रोज का सिलसिला हो गया है। लेकिन अगर मांगने वाला थोड़ा अधिक जोर और समय दे दे तो मैं ज्यादा देर ठहर नही पाऊँगा और कुछ न कुछ दे ही दूँगा। हाँ बूढ़ी औरतों की मदद करने से खुद को रोक नही पाता। खैर…..!

उधर चौराहे के कोने पर भीड़। 4 पुलिस वाले और कुछ बाइक वाले लाइन लगाए हुए। इन 4 पुलिस वालों में 2 पुलिस वाले बाइक पर बैठ कर चालान का पर्चा भरते हुए और दो दौड़-2 कर, लाठी दिखाकर दूसरे बाइक वालों को रोकते हुए। कुछ शातिर बाइक वाले पुलिस को गच्चा देकर निकल जाते हैं तो कुछ बाइक वाले रोके जाने पर सबसे पहले फ़ोन निकाल कर सीधे राष्ट्रपति कार्यालय को फ़ोन लगाने की मुद्रा में और बाकी बेचारगी से चालान कटाते हुए……! बेचारे लोग! मैं कार में बैठे-2 एक दयनीय दृष्टि से बाइक वालों को देखते हुए चौराहा पार करता हूँ। इस दौरान दिल में एक अलग ही गर्व का अनुभव और अपने अन्दर के पुलिसिया डर को छुपाने के भाव से दो-चार होता हूँ मैं। चौराहा पार कर लेने पर होने वाले विजय के एहसास की मानों कोई कीमत ही नहीं।

फिर भी एक अदद ऐसे चौराहे की दरकार है ज़िन्दगी में जिसकी लाल बत्ती पर, मैं कार की पिछली सीट पर बैठा रहूँ और तभी तुम अपनी स्कूटी से आकर मेरे बगल में रुको। ऊपर से नीचे तक पूरी ढकी तुम और हेलमेट के भीतर से इधर उधर देखती तुम्हारी आँखें……….और फिर अचानक से हमारी नज़रें टकरा जाएँ! संकोच से दोनों अपनी नज़रें छुपाते हुए…….. लेकिन………..तिरछी निगाहों से एक-दूसरे पर पूरा गौर फरमाते हुए फिर हमारी नज़रें टकरा जाएँ और मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाए! काश……….………. !

ऐसी लाल बत्ती कभी हरी न हो फिर!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१०.०७.२०२०

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