१. आप भी कोरोना से सीखें और अपने में नित नए बदलाव करते रहें ।
२. दुनिया को आपके अनुसार जीना पड़े न कि आप दुनिया के हिसाब से ।
३. आपके दुश्मन आपसे लड़ने के तरीक़े ढूँढते रहे मगर अन्त में उन्हें आपके साथ ही जीना पड़े।
४. सदैव सुर्ख़ियों में बने रहें और खूब नाम कमाएँ।
५. हमेशा आपके अति आधुनिक संस्करण से मेरी मुलाक़ात हो।
६. आपसे मिलकर मैं सदा प्रेरित होता रहूँ और आपकी तरह आगे बढ़ने की कोशिश करता रहूँ।
७. आपकी ख्याति कोरोना के संक्रमण से भी तेज फैले।
८. परिस्थितियों के अनुसार रहें और नित नयी मज़बूती लेकर और उभर कर सामने आएँ।
९. कोरोना की तरह आपका सिक्का पूरी दुनिया में चले ।
१०. आपके प्रयासों से विश्व के सभी देशों को एक प्लेटफार्म पर आना पड़े।
अन्त में यही कहूँगा कि आपकी छवि अंतर्राष्ट्रीय हो।
जिस तरह आप २०२१ सर्वाइव कर गए, उसी तरह २०२२ भी सर्वाइव कर जाएँ……..
कोरोना का कोई भी वेरीयंट आएँ, वो आपका बाल भी बाँका न कर पाए……..
ईश्वर करे कोरोना का सबसे आधुनिक वेरीयंट भी बस आपके शब्दकोश में इज़ाफ़ा ही कर पाए !
बस उस ईश्वर से यही कामना है मेरे दोस्त कि हम दोनो एक-दूजे को २०२३ भी विश कर पाएँ।
आपके लिए इससे अच्छी दुवा मैं और नहीं माँग सकता, मगर आपका लालच न ख़त्म हो रहा तो रज़ाई के अंदर से हाथ निकाल कर आप भी अपने ईश्वर से माँग सकते हैं। 😎
इन्हीं सब बातों के साथ आपको नूतन वर्ष की शुभकामनाएँ 💐। ईश्वर आपको और अधिक इम्यून करे और रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करें । आप सदा मेरे साथ अनुनादित रहें।
आपका मित्र- आनन्द कुमार कनौजिया (अनुनाद वाले) दिनाँक- ०१.०१.२०२२ (एक और एक बाईस)
दारू की टेबल पर जब कोई तेरी मोहब्बत में पूरी तरह हारकर तुझे गालियाँ देता है, बुरा-भला कहता है… तो मैं बस सुनता हूँ कुछ भी नहीं बोलता और चुपचाप अपने मन में कुछ सोचकर सर झुकाकर हल्के से मुस्कुरा देता हूँ…. शायद तुम्हें मुझसे बेहतर कोई समझ ही नहीं पाया….! और ये तुम्हारी बदनसीबी है कि तुम मुझे नहीं समझ पाए…..!
“व्यक्ति की परिस्थिति कितनी ही क्यूँ न बदल जाए उसकी सोच (मानसिक ग़रीबी) वही पुरानी ही रहती है।” 🤔
गरीब आदमी भी पैसा कमाना चाहता है और अमीर आदमी भी। बस गरीब ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और अमीर बढ़ी हुयी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए। दोनों की एक ही सोच- पैसा कमाना और अधिक कमाना! बस !🧐
मतलब ग़रीबी कभी नहीं जाती चाहे व्यक्ति कितना अमीर हो जाए! मैंने कम साधनों से सम्पन्नता तक का सफ़र तय किया है और सच बताऊँ तो ग़रीबी क़भी गई ही नहीं।🧐 मैं आज भी और अधिक पैसा कमाने की कोशिश में रहता हूँ। हाल फ़िलहाल सबकी यही हालत है।🥸
असली अमीर तो वो है जिसको फिर कमाने के लिए सोचने की ज़रूरत ही न पड़े, मेहनत करना तो दूर की बात है।😜
मेरी इस गणित के हिसाब से अम्बानी/अड़ानी आज भी गरीब हैं और व्यक्तिगत रूप से हम दोनों समान और बराबरी के गरीब हैं। वो भी सम्पत्ति बढ़ाने के लिए परेशान हैं और मैं भी ! कितनी सम्पत्ति? इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता ! मैं दो-चार, दस-पचास लाख तक सीमित हूँ और वो एक-दो हज़ार करोड़। बस! 😏
सब गरीब हैं! पूरी दुनिया! कुछ अपवादों (संत आत्माओं/फ़क़ीरों) को छोड़कर! बस यहीं मेरे ख़ुश रहने की वजह है! सब एक जैसे ही हैं! कोई अंतर नहीं! एक गरीब दूसरे गरीब से क्या कॉम्पटिशन करेगा? जितना ज़्यादा धनाढ़्य मेरे सामने आता है मैं उसे उतनी ही तुच्छ नज़र से देखता हूँ 😎 हाहा 😂
आज सुबह ऑफिस जाते वक्त एफ० एम० पर महिला आर०जे० को बोलते हुए सुना। ऐसा नही है कि पहली बार सुन रहा था पर ध्यान पहली बार दिया। कितना अच्छा प्रस्तुतीकरण होता है, एक दिलकश आवाज़ और मिनट भर में कई तरह के भावों को शामिल करते हुए कितना स्पष्ट बोलती हैं ये महिला आर०जे०। दिल खुश हो जाता है। अचानक फिर मेरे मन में दो ख्याल आए-
१. क्या ये महिला आर० जे० शादीशुदा होंगी? वैसे मुझे नही लगता कि शादीशुदा महिलाएँ ऐसे बातें कर सकती हैं। उन्हें मुँह फुलाने, झगड़ा करने और लाख पूँछने पर रूठने का कारण न बताने के अलावा कुछ और नहीं आता। पत्नी का मुस्कुराता चेहरा तो एक पति के लिए बस ईद का चाँद है।
२. पहले बिन्दु का उत्तर अगर हाँ है तो फिर तो उनके घर में झगड़े होने की सम्भावना न के बराबर है और इस तरह अगले जन्म में किसी महिला आर० जे० से शादी पर विचार करना ही उचित होगा।
अनुरोध- नीलिमा जी इस पोस्ट को गंभीरता से न लें। ये केवल एक पल का विचार है जो रेडियो सुनते वक़्त आ गया था जिसे मनोरंजन स्वरूप इस पेज पर पोस्ट किया गया है। ये लेख एक लेखक की कल्पना है और व्यक्तिगत रूप से मेरा इस विचार से कोई सम्बन्ध नहीं है।