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रूप उनका !

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रूप उनका साक्षात देवी सरीखा होता है
नवरात्र में जब उनका माँ का व्रत होता है।

खुले गीले बाल और माथे पर कुमकुम टीका होता है
बन्द आँखों और पल्लू में रूप फूलों सा ताज़ा होता है।

दुर्गाकुंड प्राँगढ़ में जब उनका आना होता है
उनके रूप का दर्शन ही हमारा प्रसाद होता है।

फेरों को वो जब धीरे धीरे अपने कदम रखती हैं
मेरे मन के मंदिर में तब हज़ारों घण्टियाँ बजती हैं।

वो सर झुका कर न जाने माँ से क्या माँगते हैं
हम तो माँ से और उनसे बस उन्हें माँगते हैं।

हे माँ तू पूरा कर दे मेरे जीवन के इकलौते लालच को
हम दोनों साथ आएँ तेरे दरबार में हर बरस दर्शन को।

©️®️नवरात्र/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०५.०४.२०२१

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