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चेहरा तेरा!

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चम-चम चाँदनी रात की,
कहानियाँ भी खूब बनी हैं,
चमकते चाँद की हमने
तारीफ भी खूब सुनी हैं।

देख कर चेहरा ये चमकीला
अब दुविधा बड़ी खड़ी है,
ये कुदरत लाजवाब है कि
उसकी रचना उससे बड़ी है।

चमकते चेहरे की शोखियाँ
आंखों को भाती बड़ी है,
लगती है चौंध आंखों को
जैसे किरणों की लड़ी है।

नूरानी चेहरे के कैनवास पर
रेखाएँ मुस्कान की खींच रखी है,
जुल्फों पर रोशनी की चमकीली
तितलियाँ ढ़ेरों बिठा रखी हैं।

एक चमक सूरज की जिससे
तेज धूप है, लगती लू बड़ी है,
और एक चमक तेरे चेहरे की
जिसकी छाँव में ठंडक बड़ी है।

साधारण से इस चित्र में तेरे देखो
चेहरे की आभा असाधारण बड़ी है,
करने को अभिव्यक्ति इस नूर की
कलम मेरी यात्रा को निकल पड़ी है।

©️®️चेहरा/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०६.०४.२०२१

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