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बिछड़ गए !

भटकना नसीब में था

इसीलिए

तुमसे बिछड़ गए…..!

 

आवारगी फ़ितरत न थी

मगर

घर से निकल पड़े।

 

एक शहर से दूसरे घूमे बहुत

मगर

कहीं ठहरना न हुवा….!

 

लोग बहुत जानते है यहाँ हमें

मगर

कोई अपना नहीं….!

 

ठहरना चाहा बहुत हमने

मगर

कहीं तुम मिले ही नहीं….!

 

रास्तों से दोस्ती कर ली

और

आशियाँ कोई बनाया नहीं….!

 

भटकना नसीब में था

इसीलिए

फिर दिल कहीं लगा ही नही…..!

©️®️बिछड़ गए/अनुनाद/आनन्द/२१.०७.२०२३

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दायरा

वो दायरा
जिससे बाहर रहकर
लोग तुमसे
बात करते हैं
मैं वो दायरा
तोड़ना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

भीड़ में भी
सुन लूँ
तेरी हर बात
मैं तेरे होठों को
अपने कानों के
पास चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

स्पर्श से भी
काम न चले
सब सुन्न हो कुछ
महसूस न हो
तब भी तेरी धड़कन को
महसूस करना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

चेहरे की सब
हरकत पढ़ लूँ
आँखों की सब
शर्म समझ लूँ
मैं तेरी साँसों से अपनी
साँसों की तकरार चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

दायरे सभी
ख़त्म करने को
मैं तेरा इक़रार
चाहता हूँ
हमारे प्यार को
परवान चढ़ा सकूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

©️®️दायरा/अनुनाद/आनन्द/०५.११.२०२२

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सफ़र

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

एक शख़्स ने ले लिया तेरे शहर का नाम
लो बढ़ गया धड़कनों को सँभालने का काम।

इस गाड़ी के सफ़र में तेरा शहर भी तो पड़ता है
बनकर मुसाफ़िर क्यूँ चले नहीं आते हो आज।

कैसे भरोसा दिलाएँ कि ज़िद छोड़ दी अब मैंने
बस मुलाक़ात होती है रोकने की कोई बात नहीं।

दिवाली का महीना है, साफ़-सफ़ाई ज़रूरी है
क्यूँ नहीं यादों पर जमी धूल हटा देते हो आज।

धूमिल होती यादों को फिर से आओ चमका दो आज
पॉवर बढ़ गया है फिर भी बिन चश्में के देखेंगे तुझे आज।

झूठ बोलना छोड़ चुके हम अब दो टूक कहते हैं
नहीं जी पाएँगे तुम्हारे बिना ये झूठ नहीं कहेंगे आज।

तेरे यादों ने अच्छे से सँभाला हुवा है मुझे
फिर मिलेंगे ये विश्वास लेकर यहाँ तक आ गए आज।

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

©️®️सफ़र/अनुनाद/आनन्द/०५.१०.२०२२

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मिलना

तेरा मेरा यूँ मिलना, बोलो ग़लत कैसे
ये संयोग भी ख़ुदा की मर्ज़ी से होता है
वरना अनुभव तो ये है कि दो लोगों के
लाख चाहने से भी मुलाक़ात नहीं होती ।

©️®️मिलना/अनुनाद/आनन्द/२२.०९.२०२२

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कुछ यूँ तेरा असर…

पथरीली सड़क पर जैसे हरी दूब
उमसती गर्मी में चल जाए हवा खूब
तपती दुपहरी में बादल का आना
यूँ ही तो होता है तेरा मुस्कुराना।

गेहूँ की बालियों की लहलहाती खनकन
चिलचिलाती धूप में जैसे चमकते स्वर्ण
इस चकाचौंध में कहीं छाँव मिल जाना
हाँ यूँ ही तो होता है तेरा खिलखिलाना।

वो बगीचा, नदी, ताल-तलैया घूमना
वो यारों के संग ठहाकों का दौर होना
इन सब में भी दिल का कहीं खो जाना
कुछ यूँ भी तुम जानते हो दिल चोरी करना।

माथे पर पसीने का छलक जाना
गर्मी से कपड़ों का तर हो जाना
लगे कि ठंडी पुर्वी बयार का आना
यूँ ही होता है तेरा बग़ल से गुज़र जाना।

इधर-उधर की बातों में प्यार छुपा होना
बड़े धैर्य से टक-टकी लगा तुझे देखना
इरादे समझ कर वो शर्म से पानी-२ होना
कुछ यूँ भी तो दिल के कभी राज खोलना।

प्यास से सूखे गले को पानी मिल जाना
तपते बदन को ठंडक मिल जाना
बंजर धरती पर बारिश का गिरना
यूँ ही तो होता है तेरा मुझको छूना।

वो काली साड़ी में तेरा मिलने आना
मेरे पसंदीदा रंग का नीले से काला होना
घूरना इस कदर कि दिखे मेरा बेसब्र होना
कुछ यूँ भी तो होता है तेरा काला जादू-टोना।

सुराही सी गर्दन पर पल्लू लटकना
खुली बाँहें और बल खा कर चलना
पल में ज़मीन से सातवें आसमाँ जाना
यूँ ही तो होता है तेरा मेरे गले लग जाना।

जीवन की उलझनों में परेशान होना
भरे उजाले में भी एक अंधेरे का होना
फिर एक रोशनी की किरण दिखना
यूँ ही तो होता है तेरा कंधे पे सिर रखना।

पथरीली सड़क पर जैसे हरी दूब
उमसती गर्मी में चल जाए हवा खूब
तपती दुपहरी में बादल का आना
यूँ ही तो होता है तेरा मुस्कुराना।

©®कुछ यूं तेरा असर/अनुनाद/आनन्द/२७.०६.२०२२