काश मैं हिमालय और जो तुम बदल हो जाओ
इस तरह से भी जाना हमारी मुलाक़ात हो जाए
ये होना मुश्किल है मगर ऐसा हो गया तो सोचो
मुलाक़ात पर क्या ग़ज़ब प्रेम की बारिश हो जाए।
©️®️प्रेम की बारिश/अनुनाद/आनन्द/३०.०५.२०२२

काश मैं हिमालय और जो तुम बदल हो जाओ
इस तरह से भी जाना हमारी मुलाक़ात हो जाए
ये होना मुश्किल है मगर ऐसा हो गया तो सोचो
मुलाक़ात पर क्या ग़ज़ब प्रेम की बारिश हो जाए।
©️®️प्रेम की बारिश/अनुनाद/आनन्द/३०.०५.२०२२
मिलने से बिल्कुल पहले बेचैनी बढ़ जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
धड़कन को संभालने की कोशिश बढ़ जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
जब सामने आते ही बारिश पड़ जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
आकाश के भी खुशी से आँसू छलक जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
जब इरादे संकोच पर भारी पड़ जाए
तो समझ लेना.…. प्यार है!
तुमसे पहले आगे बढ़कर वो गले लग जाए
तो समझ लेना.…. प्यार है!
पल भर को देख लेने से दिल हल्का हो जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
भरसक नज़रें न मिलें पर मन मिल जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
एक छोटी सी मुलाकात से कैसे संतोष हो जाए?
तो समझ लेना.…. प्यार है!
आँखों-आँखों में फिर मिलने का वादा हो जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
जब किसी शहर जाने की वजह मिल जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
जब कोई तुम्हारे लिए पूरा का पूरा शहर हो जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
जब इरादे संकोच पर भारी पड़ जाए
तो समझ लेना.…. प्यार है!
जब सामने आते ही बारिश पड़ जाए
तो समझ लेना….. प्यार है!
©®तो समझ लेना/अनुनाद/आनन्द/२९.०५.२०२२
लोग कह रहे कि मेरी लेखनी की धार बढ़ती जा रही है,
हमें तो बस ये ग़म है कि हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।
कच्ची उम्र के थे तो जवान ख़्वाहिशों की लड़ियाँ बड़ी थी,
और तो अब यूँ है कि बस जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही हैं।
तजुर्बा कम था हमें, इश्क़ के तरीक़ों से अनजान बड़े थे,
जानकार हुए जबसे बस खुद पर ग़ुस्सा निकाले जा रहे हैं।
ज़ख्मों को कुरेद दिया उन्होंने कहकर कि तुम सीधे बहुत थे,
कितने शानदार मौक़े गँवाने का अफ़सोस किए जा रहे हैं ।
भूल जाने की आदत बुरी है शक्लें याद नहीं रहती हमको,
रोज़ नयी शक्ल गढ़कर तुझसे रोज़ नया इश्क़ किए जा रहे हैं।
अपना लिखा भी याद नहीं और वो सुनाने की फ़रमाइशें करते हैं,
रोज़ नयी इबारत लिख कर हम उनकी इबादत किए जा रहे हैं ।
दिल को शांत रखने को एक अदद मुलाक़ात ज़रूरी बड़ी थी,
वरना बेचैन दिल से हम मासूम शब्दों को परेशान किए जा रहे हैं।
लोग कह रहे कि मेरी लेखनी की धार बढ़ती जा रही है,
हमें तो बस ये ग़म है कि हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।
©️®️लेखनी/अनुनाद/आनन्द/२७.०५.२०२२
दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।
मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।
उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की,
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।
सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी,
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।
इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।
गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।
दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।
©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२