Month: February 2021
नारी शक्ति…
नारी तुम गंगा हो
देती संसार को जीवन हो
बनी रहे गति जीवन की
तुम वो बहता प्राण हो….
नारी तुम माँ गंगा हो!
नारी तुम चण्डी हो
हाहाकार मचाती प्रलय हो
जब पाप बढ़े धरा पर
लेती रूप विकट हो…
नारी तुम माँ चण्डी हो!
नारी तुम कोमल हो
मृदुल, मधुर, मनभावन हो
सख्त सूखे जीवन में
वर्षा की फुहार हो….
नारी तुम मन मोहक हो!
नारी तुम साथी हो
चलने में जिसके साथ
पथ लगता आसान
सहज हो जाता सफर…..
नारी तुम मेरा हमसफर हो!
नारी तेरे रूप अनेक
मैंने महसूस किये हर एक
माँ, पत्नी, बहन, बेटी, और दोस्त
जिनसे मेरी दुनिया का रंग चोखा हो….
नारी तुम रंग अनोखा हो!
तुझे न पहचानने की
पुरुष करता आया भूल
तुझे कुचलता समझकर दुर्बल
मद में रहता अपनी चूर
नासमझ पुरुष अभागा है…
नारी क्षमा करना, याचना मेरी है!
तू है ऊर्जा तू है शक्ति
देख जिसे उमड़ती भक्ति
बखान करूँ शब्दों से मैं
मुझमें इतनी कहाँ है शक्ति….
नारी तू शक्ति है!
नारी तू इस जग की शक्ति है…
उमड़ती तुझ पर मेरी भक्ति है
नारी तू शक्ति है।
©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२७.०२.२०२१

प्रेम गीत!
प्यार हो तो देखो बिल्कुल तेरे जैसा हो
भले मिलें न कभी पर साथ कुछ ऐसा हो
मैं अगर कभी ख्वाबों में भी देख लूँ तुझको
स्पन्दन मेरे शरीर में तुझको छूने जैसा हो।
दिल की ड्योढ़ी पर तूने जो रखे थे कदम उस दिन
करूँ अभिनंदन उन पलों का उन्हें आँखों से चूमता हूँ,
उस पहली मुलाकात को मैं समझ मील का पत्थर
मानकर देव उस पत्थर को मैं तब से रोज़ पूजता हूँ।
जो न कह पाया तुझे वो पूरी दुनिया को सुनाता हूँ
मैं जब बहकता हूँ तो बस तुझ पर गीत लिखता हूँ
पीर दिल की है जो अब दिल में रखना मुश्किल है
बाँटने को दुख मैं महफिलों में शेरों शायरी करता हूँ।
मिल कर भी तुमसे क्यूँ बिछड़ना सा प्रतीत हो
दिल भारी जुबाँ खामोश दिन कैसे व्यतीत हो
वाद्य यंत्र ये दिल और धड़कन मेरी संगीत हो
मैं गुनगुनाता रहूँ जिसे हाँ तुम वो प्रेम गीत हो।
©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२४.०२.२०२१

सूनापन!
सूनी आंखों का सपना
इनमें अब कुछ भी सूना न हो
कोरे इस दिल का
कोई कोना अब कोरा न हो
टूटा हो बिखरा हो
अब यहां सब कुछ बेसलीका हो
सुलझन का हम क्या करें
छोर सभी अब उलझे उलझे हो
एक हलचल हो धड़कन में
दिल में अब कुछ सूना न हो।
©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१८.०२.२०२१

साहित्य और महिला लेखक
इग्नू की सहायता से हिन्दी में एम० ए० कर रहा हूँ। कल पहले वर्ष के सत्रांत का तीसरा पर्चा है। साल भर तो पढ़े नहीं लेकिन महीने भर से थोड़ा बहुत पढ़ लिए हैं। मतलब कि पाठ्यक्रम के हिसाब से थोड़ा और पास होने के हिसाब से अधिक। लेखन में पुरुष लेखकों के साथ महिला लेखकों को भागीदारी भी पढ़ी। अच्छा लगा कि महिलाएँ भी कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं। मैं तो चाहता ही हूँ कि कोई महिला मुझसे कन्धे से कन्धा मिलाकर चले😉
खैर…….! निष्कर्ष एक ही निकला। महिलाएँ पुरुषों से कहीं आगे हैं। पुरुषों का जीवन बिना औरत के अधूरा है। जबकि औरतों को पुरुषों की कोई जरूरत नहीं। लड़ने के लिए दो महिलाएँ ही काफी हैं जबकि पुरुषों को महिलाओं की जरूरत पड़ती है ………😁😋।
हाहा……🤣😅।
कोई भी उपन्यास, कहानी, काव्य और कुछ भी उठा लीजिए, मेरे द्वारा ऊपर जो निष्कर्ष निकाला गया है उससे आप शत प्रतिशत ताल्लुक रखते हुए मिलेंगे। महिला लेखकों को पढ़ने के बाद तो इस विचार को मान्यता सी मिल गयी। स्त्रियाँ आजादी की बात तो करती हैं किंतु यह आज़ादी वह अपने लिए नहीं मांगती अपितु इस पुरुष प्रधान समाज को दिखाने के लिए। बात गम्भीर है। स्त्रियों की इस इच्छा के लिए भी सदियों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक समाज ही मुख्य कारण है।
बात गम्भीर है इसलिए व्यंग्य का पुट लेना पड़ा। सोचिएगा …..!
©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१७.०२.२०२१
