ये रात, मुलाक़ात, साथ और न जाने कहाँ-कहाँ की कितनी बात, क़िस्से कहानियों के सिलसिले में एक बात से निकलती ढेरों बात। चार दीवारी में चार लोगों से महफ़िल में लगते चार चाँद की बात, चार ख़्याल, चार जज़्बात, चार मुस्कान से लोगों में चार तरह की बात॥
बीती इस उम्र में हमने जो भी सीखा देखिए बस इतना सा फ़लसफ़ा है, पहले सब पा लेने में ख़ुशी थी और अब बहुत कुछ छोड़ देने में भला है।
अब तो भलाई करने वालों से डर लगता है बुराई छुपाने का ये बस एक तरीक़ा लगता है अच्छे दिखने के हम इतने अभ्यस्त हुए हैं कि बुरा जो करें तो वो भी अच्छा-अच्छा लगता है।