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मुलाक़ात और बात

ये रात, मुलाक़ात, साथ और न जाने कहाँ-कहाँ की कितनी बात,
क़िस्से कहानियों के सिलसिले में एक बात से निकलती ढेरों बात।
चार दीवारी में चार लोगों से महफ़िल में लगते चार चाँद की बात,
चार ख़्याल, चार जज़्बात, चार मुस्कान से लोगों में चार तरह की बात॥

©️®️मुलाक़ात और बात/अनुनाद/आनन्द/२२.०१.२०२३

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फ़लसफ़ा

बीती इस उम्र में हमने जो भी सीखा
देखिए बस इतना सा फ़लसफ़ा है,
पहले सब पा लेने में ख़ुशी थी और
अब बहुत कुछ छोड़ देने में भला है।

अब तो भलाई करने वालों से डर लगता है
बुराई छुपाने का ये बस एक तरीक़ा लगता है
अच्छे दिखने के हम इतने अभ्यस्त हुए हैं कि
बुरा जो करें तो वो भी अच्छा-अच्छा लगता है।

©️®️फ़लसफ़ा/अनुनाद/आनन्द/२०.०१.२०२३

आनन्द
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मुश्किल

बड़ा मुश्किल है इस दौर में
जहाँ हो, वहीं पर रहना…
एक वयस्क होकर भीड़ में
बच्चों सा दिल रखना।

बड़ा मुश्किल है राजनीति में
किसी से भी याराना…
जीतने की दौड़ में भला
कहाँ मुमकिन है साथ चल पाना।

बड़ा मुश्किल है संग तेरे मेरा
खुद को बहकने से बचाना…
दूर होकर भी तुझसे मेरा
खुद को तनहा रखना।

बड़ा मुश्किल है इच्छाओं को
गलत सही के चक्कर में दबाना…
जलराशि खतरे से ज्यादा हो तो
लाजमी है बाँध का ढह जाना।

बड़ा मुश्किल है सच्चे दिल से
किसी सच को छुपाना…
चेहरा झूठ बोल भी दे तो
आँखों से नही हो पाता निभाना।

बड़ा मुश्किल है लोगों से
ये रिश्ता देर तक छिपाना…
दिल जलों के मोहल्ले में
मुश्किल है आँखें चुराना।

मैं जो दिल की बात कर दूँ
तो नाराज न हो जाना…
ये तो हक़ है तेरा बोलो
तुमसे क्या ही छुपाना।

बड़ा मुश्किल है तुझको
छोड़कर मुझे जाना…
उसके लिए जरूरी है
हाथों में हाथों का होना।

बड़ा मुश्किल है आनन्द
अनुनाद में रह पाना…
दुनियादारी निभाने में
दिल-दिमाग का एक हो पाना।

©®मुश्किल/अनुनाद/आनन्द/१८.११.२०२२

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दायरा

वो दायरा
जिससे बाहर रहकर
लोग तुमसे
बात करते हैं
मैं वो दायरा
तोड़ना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

भीड़ में भी
सुन लूँ
तेरी हर बात
मैं तेरे होठों को
अपने कानों के
पास चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

स्पर्श से भी
काम न चले
सब सुन्न हो कुछ
महसूस न हो
तब भी तेरी धड़कन को
महसूस करना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

चेहरे की सब
हरकत पढ़ लूँ
आँखों की सब
शर्म समझ लूँ
मैं तेरी साँसों से अपनी
साँसों की तकरार चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

दायरे सभी
ख़त्म करने को
मैं तेरा इक़रार
चाहता हूँ
हमारे प्यार को
परवान चढ़ा सकूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

©️®️दायरा/अनुनाद/आनन्द/०५.११.२०२२

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सफ़र

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

एक शख़्स ने ले लिया तेरे शहर का नाम
लो बढ़ गया धड़कनों को सँभालने का काम।

इस गाड़ी के सफ़र में तेरा शहर भी तो पड़ता है
बनकर मुसाफ़िर क्यूँ चले नहीं आते हो आज।

कैसे भरोसा दिलाएँ कि ज़िद छोड़ दी अब मैंने
बस मुलाक़ात होती है रोकने की कोई बात नहीं।

दिवाली का महीना है, साफ़-सफ़ाई ज़रूरी है
क्यूँ नहीं यादों पर जमी धूल हटा देते हो आज।

धूमिल होती यादों को फिर से आओ चमका दो आज
पॉवर बढ़ गया है फिर भी बिन चश्में के देखेंगे तुझे आज।

झूठ बोलना छोड़ चुके हम अब दो टूक कहते हैं
नहीं जी पाएँगे तुम्हारे बिना ये झूठ नहीं कहेंगे आज।

तेरे यादों ने अच्छे से सँभाला हुवा है मुझे
फिर मिलेंगे ये विश्वास लेकर यहाँ तक आ गए आज।

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

©️®️सफ़र/अनुनाद/आनन्द/०५.१०.२०२२