
नव वर्ष का हमसफ़र

ये जो महफिलों की शान हैं वो महफिलों में बातें बड़ी-२ करते हैं,
तुम मुफ़लिस हो, तुम्हारे झोपड़े में आकर तुम्हारे घाव कौन देखेगा?
ये जो सड़क शानदार है, इस पर गाड़ियाँ सरपट सफर करती हैं,
तुम जो आँचल फैलाए बैठी हो, यहाँ रुकर तुम्हारी भूख कौन देखेगा?
लौट जा अपनों के बीच, मत कर कर फरियाद तू अमीरों की बस्ती में,
अपनी अमीरी की चकाचौंध के बीच तेरी गरीबी का अँधेरा यहां कौन देखेगा?
मत कर उम्मीद तू किसी भी खुदा से, ये पत्थर के ईश्वर क्या तुझे देंगें,
जहाँ पसंद हो सोने चांदी का चढ़ावा, वहाँ तेरी सूखी रोटी कौन देखेगा?
नादान नही हूँ मैं बिल्कुल
और हरकतें नही बचकानी
दिल में हैं बेचैनियाँ मेरी
बैठो सुनाऊं अपनी कहानी ।
विशाल समुद्र शांत सा
पर लहरें क्यों अशांत
इतनी व्याकुल, व्यग्र, बेचैन
आतुर सुनाने को वृतान्त।
समुद्र के किनारे बैठ तुमने
लहरों का शोर सुना होगा
पाकर खो देने का एहसास
इससे करुण रुदन क्या होगा।
हम कैसे रोएं
दर्द कैसे बताएं
आंसू बहुत निकले
पर कैसे दिखाएं।
तड़प बहुत है मिलने को
विरहन सी विचरती हैं
मिलने को प्रियतम से
कोशिशें हज़ार करती हैं।
उम्मीद नही मिलने की
पर दिल को कैसे समझाएं
दिल भी लहरो जैसा है
किनारे तक आ ही जाए।
पहुंच किनारों पर भी
हाथ निराशा लगती है
होकर बेसुध सी तब ये
खा कर पछाड़ गिरती हैं।
न मिलने का दर्द सही
पर मिलकर वो बिछुड़ गया
तन मन से होकर वो मेरे
अंदर से ही भेद गया।
मालूम इसे अपनी गति फिर भी
खुद को ये रोक न पाए
दिल के हाथों मजबूर है
इस पागल को कौन समझाए।
मत पूछो मेरी हालत कि
इस दिल में दर्द बहुत है
रात के सन्नाटे में डर है लगता
और दिन के शोर में सुकून बहुत है।
टूटे दिल वाले साथ को मेरे
अब खुद मुझ तक आते हैं
पाने को राहत वो बैठ बगल में मेरे
अपनी आप बीती सुनाते हैं।
अब तो हर मौसम को कुछ यूं देखता हूँ,
जैसे ये कोई पैगाम लाये हों मेरे लिए!
उम्मीद है कि तुम भी लौट आओगे एक दिन,
जैसे ये मौसम लौट कर आया है मेरे लिए।
अब तो ये बादल भी बरस पड़ते हैं मुझे देखकर,
आतुर हों जैसे मुझसे लिपट कर रोने के लिए!
फर्क तो बहुत पड़ा तेरे बिछड़ने का मुझ पर लेकिन
दर्द को दबाये रखा है खुद में तुझको जीने के लिए।
कई एक पलों में हमने जी ली थी ज़िंदगी संग,
और पाकर साथ तेरा रोमांचित था हर एक अंग ।
पका लिए ढेरों ख़याली पुलाव तुझको लेकर,
तैयारियाँ भी पूरी थी तेरे संग सफ़र को लेकर ।
तुम्हारी तरफ़ जब हमने एक उम्मीद से देखा,
आँखों की चमक को शर्म ए गुनाह में बदलते देखा ।
फिर क्या, इस कहानी को मैंने यूँ एक नया अंजाम दिया,
दबा लीं सारी बातें और दिल को अपने क़ब्रगाह बना लिया ।