Posted in Uncategorized

यादों के झरोखों से – बचपन और ऐन्टेना.

यादें………….. 

किसी विशेष काल चक्र से सम्बंधित लोगों, वस्तुओं, यात्राओं, आदतों, घटनाओं, गीतसंगीत, समारोह आदि का एक गट्ठर होती हैं यादें। इस गट्ठर का एक भी हिस्सा या उस जैसा कुछ भी  कभी भी अचानक से आँखो के सामने जाये तो वह बीत हुआ पल, पल भर में सजीव हो उठता है। कहीं होते हैं हम और कहीं होकर चले आते हैं, क्षण भर में। शायद समय की यात्रा(TIME-TRAVELLING) इसे ही कहते हैं।  
और यदि ये चीजें आपके बचपन से जुडी हों तो फिर क्या कहना, जैसे बारिश के बाद मिटटी से उठने वाली सोंधीसोंधी खुशबू  से मन तो प्रफुल्लित हो उठता है। आहाहाहाहाहा……. वाह , क्या कहना। खैर ……… आज हमने भी कुछ ऐसा देख लिया कि बस कर आये टाइमट्रैवेलिंग। खो से गए। वो तो शुक्र है टेक्नोलॉजी का कि पैंट की पॉकेट में एक कैमरा युक्त फ़ोन था। फिर क्या ……. बिजली की गति से हमने ज़ेब में हाथ डाला और फ़ोन निकाल कर ऐसा निशाना साधा कि पलक झपकते कैद कर लिए उस दृश्य को।  वाह…….. खुश तो ऐसे हो रहे थे कि कोई नाया सी चीज मिल गयी हो।
आप लोग भी सोच रहे होंगे कि क्यों पागल हुआ जा रहा है ये लौंडा।  ऐसाक्या मिल गया बे।  तो भाई जरा ध्यान से देखिये ऊपर के चित्र में। कुछ दिखा ? अरे गौर से देखिये। हाँहाँ ये ऐन्टेना ही है जो ९० के दशक में हम लोगों के घरों की छतों की शान हुआ करते थे। शायद आज के दौर के बच्चे समझ पाएं किन्तु मेरी उम्र के या उससे पहले के लोग इस पोस्ट से दिल से जुड़ पाएंगे। भाई , इस ऐन्टेना का घरों की छतों पर होना भी अपने आप में गर्व की बात होती थी। जिसका ऐन्टेना जितना बड़ा, वह उतना ही बड़ा तुर्रम खान।  
वो कहते हैं कि जो वस्तु जितनी ही कठिनाई से मिले उसकी उतनी ही कीमतइसके बाद जो अभिमान की अभिभूति होती है, बिलकुल वैसी ही अभिभूति इस ऐन्टेना के डायरेक्शन को सेट करने के बाद टीवी में बिलकुल क्लियर पिक्चर लाने पर होती थी।  माँकसम गर्व से सीना चौड़ा हो जाता था। इस सुखद और गर्व के एहसास को आज के बच्चे समझ पाएंगे। बेटाआआआआ हर किसी के बस की बात नहीं होती थी ये
हर घर में इस कार्य को सम्पादित करने के लिए एक विशेष टीम होती थी जो इस कार्य में दक्ष होते थे। सामान्यतः चाचाभतीजे की जोड़ी होती थी इस टीम में। बेमिसाल टीम वर्क, बेहतरीन कोआर्डिनेशन और दिशाओं की सटीक जानकारी का एक बेजोड़ उदाहरण था ये कार्य। हर किसी ऐरेगैरे, नत्थूखैरे के बस की बात थी ये। क्रिकेट मैच जैसे खास आयोजनों पर इस टीम को विशेष रूप से तैयार रहने को कहा जाता था कि मैच के दौरान कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए इस टीम का हर एक सदस्य एक ऐसी जिम्मेदारी के एहसास से ओतप्रोत होता था कि इनकी भावभंगिमा को देखकर किसी की इनके आसपास फटकने की हिम्मत नहीं होती थी। हर कोई इस टीम का खास बनना चाहता था और इनके दिए गए दिशानिर्देशों को लोग बड़ी आज्ञा भाव के साथ पालन करते थे।  
DD METRO- यह चैनल आज भी मेरे लिए रहस्य ही है। उस समय के ज्यादा YO लड़के अक्सर इस चैनल की चर्चा करते पाए जाते थे और HE-MAN उनका सबसे पसंदीदा कार्टून सीरियल हुआ करता था। मुझे कभी समझ नहीं आया कि ये चैनल टीवी पर आता कैसे था  ! क्याकरना पड़ता था इस चैनल के लिए।  कईजुगत लगाए।  सबसे बड़े साइज का ऐन्टेना लेकर लगाए किन्तु असफल ही रहे।  फिरकिसी तकनीकी रूप से अपडेटेड लौंडे ने बताया की ऐन्टेना में स्पीकर का चुम्बक लगाओ, तब आएगा मेट्रो चैनल। हमने भी उसको तहे दिल से धन्यवाद दिया और एक कबाड़ी की दुकान से आख़िरकार ढूंढ ही निकाला वो चुम्बक। बस जैसे कोई खजाना हाथ लग गया हो। लेकिन क्याचुम्बक वाली विद्या से भी कोई भला हुआ।  टॉयटॉय फिस्स। हम बेचारे के बेचारे ही रह गए। 
हाहाहाहाहाहाहाहाहाहा……    कितना हास्यास्पद लगता है ये सब अब। टेक्नोलॉजी इतनी अपडेट हो गयी है कि जिनती ही फुर्ती के साथ मैंने ये इमेज कैप्चर की थी उससे कहीं अधिक तेजी के सात अब टीवी के चैनल बदले जा सकते हैं।  किन्तु इस चित्र ने मेरे बचपन के ऐसे पल का रसास्वादन करा दिया था कि शब्द नहीं है मेरे पास इस अनुभव को व्यक्त करने के लिए।  किन्तु इसने एक बेचैनी बढ़ा दी मेरी कि ये मेट्रो चैनल कैसे पकड़ता था ??????
इस  अक्षयप्रश्न के जवाब की खोज में  !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!