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कैदी (इरफ़ान ख़ान को समर्पित)

मैं एक कैदी
इस शरीर में,
लोग कहते
कैद ही रहूँ…
तो बेहतर!
आजाद न होने की,
मांगते सभी दुवाएँ…
कैद हो लंबी,
देते रहते दाना-पानी,
शरीर रूपी जेल की
करते रंग रोगन,
लेकिन कब तक?
कैद किसे पसन्द?
होना तो है,
एक दिन आज़ाद…
वो दिन
जश्न का होगा!
मेरे लिए,
आज़ाद होना,
कैद से।
नही रहूँगा तब,
मैं,
कैदी।

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सरकारी कर्मचारी…

वैज्ञानिक परेशान हो गए मगर देखो
बिना तेल के गाड़ी वो चला न पाए।
हमने भी दिया सुझाव अपने दोनो हाथ उठाय,
आओ तुमको अपनी सरकर से मिलवाया जाय।

उदाहरण साक्षात तुम्हारे मौजूद है,
तुम कहाँ घूम रहे हो सर खुजलाए।
बिना अतिरिक्त वेतन के इस सरकार ने,
सरकारी कर्मचारियों से कितने काम कराए।

न ही धन्धा कोई और न ही हम बड़े व्यापारी हैं,
महीने की तनख़्वाह पर जीते हम सरकारी कर्मचारी हैं।
किस्तें भरते, फ़ीस भरते, थोड़ी-थोड़ी बचत भी करते,
सालों का हमने बचाया नही हम तो बस महीनों में जीते।

डीए काटा, भत्ते काटे,और न जाने क्या-२ कटेगा,
तनख़्वाह भी बढ़ेगी या केवल चूतिया ही कटेगा।
थोड़ी क्यूँ पूरी ही काट ली जाए, सैलरी हमें दी ही क्यूँ जाए,
आओ छोड़ कर गृहस्थ आश्रम हम सब वनवासी हो जाएँ ।

क़सम से उफ़्फ़ नही करेंगे अगर,
एक छोटी सी अर्ज़ सुन ली जाए ।
जहाँ सबके क़र्ज़ अरबों में माफ़ हो रहे
वहीं एक लोन हमारा भी माफ़ हो जाए।

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मुस्कान😊

हाँ ! तुम भी तो बिल्कुल यूँ ही मुस्कुराती हो…
जैसे इन पत्तों पर बारिश की बूँदे।
तुम हमेशा पूछते हो न कि
मैने तुममे ऐसा क्या देखा?
और मैं कहता हूं कि तुम्हारी मुस्कान!
कैसी है मेरी मुस्कान?
तो तुम भी तो देखो न
इन पत्तों पर बारिश की बूँदे….
देखो न !

nilima

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कीमत नाम की!

इतिहास मजबूत होना चाहिए, चाहे आपके आज का भूगोल कैसा भी हो ।
पीछे की बुराइयों को बदलो मगर, अपने अग्रजों का गौरव बखान जारी रखें ।।

तुम आज आये हो दुनिया में, अभी समय लगेगा अपना कद बनाने में ।
पुरखों के नाम से ही है पहचान तेरी, उनके नाम का सम्मान बनाये रखें ।।

नाम की शक्ति से होते हैं सारे काम, बाहुबल तो बस दिखाने को होता है ।
सर झुकते हैं झुकते रहेंगें, बस विरासत में मिले नाम का कद बरकरार रखें ।।

जिनका कोई नाम नही, इतिहास नही, उनकी यहां कोई पहचान नहीं ।
इतिहास गौरवशाली लिखने को तुम, मील का पत्थर लगाना जारी रखें ।।

आने वाली पीढ़ी में हुनर खूब होगा, दिखाने का उन्हें बस अवसर मिल जाये ।
नाम बताकर अनुजों का हो जाये काम, अपने नाम में वो जान भरना जारी रखें ।।

सफर लम्बा तय करने को सुनो, रास्ते में छांव का मिलना जरूरी है ।
ठहरने को पेड़ मिल जाएं रास्ते में, इसलिए बीज बोना जारी रखें ।।

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अमीरी-गरीबी

थोड़े से पैसे क्या आये तो दुनिया में होते कई रोग पता चला,
जब गरीब थे कितने मासूम थे, हम भूख को ही रोग समझते थे।

शुगर, ब्लड प्रेशर और न जाने कितने रोग देखे,
खाने पीने के अलावा भी होते हैं खर्च हमने देखे।

सुख सुविधाओं के नाम पर एक छत हो, यही ख्वाहिश होती थी,
और आज खाली समय और नींद के सिवा सब कुछ हमारे पास है।

नंगे थे तो न जाने कैसे जिन्दगी बेखौफ जिया करते थे,
और आज ये सब खो न दें बस इसी डर में जिया करते हैं।

बेवकूफ थे तो दुनिया कैसे चलती है कोई मतलब न था,
समझने लायक हुए तो इसके हर तरीके से परेशानी थी।

वो ईश्वर है, वो इस दुनिया का मालिक है रहबर है, मेरा बचपना था,
दुनिया को चलाने वाले बैठते संसद में, ईश्वर अब मंदिरों में कहां मिलता है।

आगे बढ़ने और समझदार होने की मँहगी कीमत चुकाई है हमने,
वो सीमित संसाधनों और भोलेपन में जीना कितना अनमोल होता था।