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कुछ यूँ तेरा असर…

पथरीली सड़क पर जैसे हरी दूब
उमसती गर्मी में चल जाए हवा खूब
तपती दुपहरी में बादल का आना
यूँ ही तो होता है तेरा मुस्कुराना।

गेहूँ की बालियों की लहलहाती खनकन
चिलचिलाती धूप में जैसे चमकते स्वर्ण
इस चकाचौंध में कहीं छाँव मिल जाना
हाँ यूँ ही तो होता है तेरा खिलखिलाना।

वो बगीचा, नदी, ताल-तलैया घूमना
वो यारों के संग ठहाकों का दौर होना
इन सब में भी दिल का कहीं खो जाना
कुछ यूँ भी तुम जानते हो दिल चोरी करना।

माथे पर पसीने का छलक जाना
गर्मी से कपड़ों का तर हो जाना
लगे कि ठंडी पुर्वी बयार का आना
यूँ ही होता है तेरा बग़ल से गुज़र जाना।

इधर-उधर की बातों में प्यार छुपा होना
बड़े धैर्य से टक-टकी लगा तुझे देखना
इरादे समझ कर वो शर्म से पानी-२ होना
कुछ यूँ भी तो दिल के कभी राज खोलना।

प्यास से सूखे गले को पानी मिल जाना
तपते बदन को ठंडक मिल जाना
बंजर धरती पर बारिश का गिरना
यूँ ही तो होता है तेरा मुझको छूना।

वो काली साड़ी में तेरा मिलने आना
मेरे पसंदीदा रंग का नीले से काला होना
घूरना इस कदर कि दिखे मेरा बेसब्र होना
कुछ यूँ भी तो होता है तेरा काला जादू-टोना।

सुराही सी गर्दन पर पल्लू लटकना
खुली बाँहें और बल खा कर चलना
पल में ज़मीन से सातवें आसमाँ जाना
यूँ ही तो होता है तेरा मेरे गले लग जाना।

जीवन की उलझनों में परेशान होना
भरे उजाले में भी एक अंधेरे का होना
फिर एक रोशनी की किरण दिखना
यूँ ही तो होता है तेरा कंधे पे सिर रखना।

पथरीली सड़क पर जैसे हरी दूब
उमसती गर्मी में चल जाए हवा खूब
तपती दुपहरी में बादल का आना
यूँ ही तो होता है तेरा मुस्कुराना।

©®कुछ यूं तेरा असर/अनुनाद/आनन्द/२७.०६.२०२२