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पहनावा

“व्यक्ति को कपड़े पहनने का अधिकार होना चाहिए…. न पहनने का नहीं !”

सच लिखूँ तो बिना कपड़ों के तो केवल पशु-पक्षी ही ख़ूबसूरत दिखते हैं।

मानव प्रजाति तो कपड़ों में ही झेली जा सकती है वरना इससे बेकार देखने लायक़ दूसरी कोई चीज नहीं। झेला जाना मैंने इसलिए लिखा कि खूबसूरत होने के लिए कपड़ों के साथ व्यवहार का उत्तम होना भी अनिवार्य है।

हाँ कुछ डिज़ाइनर लोग कपड़ों को कुछ आड़ा-तिरछा काट एवं सिल कर इसमें भिन्नता तो ला सकते हैं पर कपड़े पहनना तब भी अनिवार्य है। “डोरियों को कपड़ों की संज्ञा नहीं दी जा सकती।”

निवेदन- जीवन सरल बनायें। इसलिए जो सम्भाल सकें उसे ही पहनें। उसके बाद ही आप अपनी, समाज और राष्ट्र की प्रगति के विषय में सोचने का मौक़ा निकाल पाएँगे!

नोट:- उपरोक्त सभी विचारों का बन्द कमरों से कोई वास्ता नहीं है। अपनी निजता के पलों में आप स्वयं ईश्वर हैं।

“Keep your privacy private.”

प्रणाम🙏

©️®️पहनावा/अनुनाद/आनन्द/०६.०१.२४

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लखनऊ की बारिश (११.०९.२०२३)

अमां ऐसी भी कोई बात होती है,
भला ऐसी भी कोई रात होती है….!

मुझे सोते से जगाया गया कि देखो जरा
मैंने कहा इतने शोर में भी कोई बात होती है….!

कल रात हमने देखा ऐसा मंज़र
ऐसी भी भयानक बरसात होती है….!

किसी हृदय की प्रबल वेदना होगी
वरना कहाँ अब ऐसी बरसात होती है….!

यूँ चमकती बिजली का गरजते जाना
डरते दिल ने कहा हर रात की सुबह होती है….!

फूट-फूट कर भर दम रोना-दहाड़ना
ये टूटे दिल की आम बात होती है….!

ये बेचैनी में रात-२ भर करवटें बदलना
ये नये आशिक़ों की पुरानी बात होती है….!

दिल में जहर दबाने से कहीं अच्छा
फट पड़ना भी राहत की बात होती है….!

जिसने जगाया मुझे उसे सोने को कह दिया
ऐसी रात में सोते रहने की अलग बात होती है….!

कल मैं और प्रकृति दोनो अनुनादित थे,
दिल की बात का इजहार जरूरी बात होती है….!

©️®️ लखनऊ की बारिश/अनुनाद/आनन्द/११.०९.२०२३

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मुश्किल

बड़ा मुश्किल है इस दौर में
जहाँ हो, वहीं पर रहना…
एक वयस्क होकर भीड़ में
बच्चों सा दिल रखना।

बड़ा मुश्किल है राजनीति में
किसी से भी याराना…
जीतने की दौड़ में भला
कहाँ मुमकिन है साथ चल पाना।

बड़ा मुश्किल है संग तेरे मेरा
खुद को बहकने से बचाना…
दूर होकर भी तुझसे मेरा
खुद को तनहा रखना।

बड़ा मुश्किल है इच्छाओं को
गलत सही के चक्कर में दबाना…
जलराशि खतरे से ज्यादा हो तो
लाजमी है बाँध का ढह जाना।

बड़ा मुश्किल है सच्चे दिल से
किसी सच को छुपाना…
चेहरा झूठ बोल भी दे तो
आँखों से नही हो पाता निभाना।

बड़ा मुश्किल है लोगों से
ये रिश्ता देर तक छिपाना…
दिल जलों के मोहल्ले में
मुश्किल है आँखें चुराना।

मैं जो दिल की बात कर दूँ
तो नाराज न हो जाना…
ये तो हक़ है तेरा बोलो
तुमसे क्या ही छुपाना।

बड़ा मुश्किल है तुझको
छोड़कर मुझे जाना…
उसके लिए जरूरी है
हाथों में हाथों का होना।

बड़ा मुश्किल है आनन्द
अनुनाद में रह पाना…
दुनियादारी निभाने में
दिल-दिमाग का एक हो पाना।

©®मुश्किल/अनुनाद/आनन्द/१८.११.२०२२

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दायरा

वो दायरा
जिससे बाहर रहकर
लोग तुमसे
बात करते हैं
मैं वो दायरा
तोड़ना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

भीड़ में भी
सुन लूँ
तेरी हर बात
मैं तेरे होठों को
अपने कानों के
पास चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

स्पर्श से भी
काम न चले
सब सुन्न हो कुछ
महसूस न हो
तब भी तेरी धड़कन को
महसूस करना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

चेहरे की सब
हरकत पढ़ लूँ
आँखों की सब
शर्म समझ लूँ
मैं तेरी साँसों से अपनी
साँसों की तकरार चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

दायरे सभी
ख़त्म करने को
मैं तेरा इक़रार
चाहता हूँ
हमारे प्यार को
परवान चढ़ा सकूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

©️®️दायरा/अनुनाद/आनन्द/०५.११.२०२२

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सफ़र

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

एक शख़्स ने ले लिया तेरे शहर का नाम
लो बढ़ गया धड़कनों को सँभालने का काम।

इस गाड़ी के सफ़र में तेरा शहर भी तो पड़ता है
बनकर मुसाफ़िर क्यूँ चले नहीं आते हो आज।

कैसे भरोसा दिलाएँ कि ज़िद छोड़ दी अब मैंने
बस मुलाक़ात होती है रोकने की कोई बात नहीं।

दिवाली का महीना है, साफ़-सफ़ाई ज़रूरी है
क्यूँ नहीं यादों पर जमी धूल हटा देते हो आज।

धूमिल होती यादों को फिर से आओ चमका दो आज
पॉवर बढ़ गया है फिर भी बिन चश्में के देखेंगे तुझे आज।

झूठ बोलना छोड़ चुके हम अब दो टूक कहते हैं
नहीं जी पाएँगे तुम्हारे बिना ये झूठ नहीं कहेंगे आज।

तेरे यादों ने अच्छे से सँभाला हुवा है मुझे
फिर मिलेंगे ये विश्वास लेकर यहाँ तक आ गए आज।

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

©️®️सफ़र/अनुनाद/आनन्द/०५.१०.२०२२