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लखनऊ की बारिश (११.०९.२०२३)

अमां ऐसी भी कोई बात होती है,
भला ऐसी भी कोई रात होती है….!

मुझे सोते से जगाया गया कि देखो जरा
मैंने कहा इतने शोर में भी कोई बात होती है….!

कल रात हमने देखा ऐसा मंज़र
ऐसी भी भयानक बरसात होती है….!

किसी हृदय की प्रबल वेदना होगी
वरना कहाँ अब ऐसी बरसात होती है….!

यूँ चमकती बिजली का गरजते जाना
डरते दिल ने कहा हर रात की सुबह होती है….!

फूट-फूट कर भर दम रोना-दहाड़ना
ये टूटे दिल की आम बात होती है….!

ये बेचैनी में रात-२ भर करवटें बदलना
ये नये आशिक़ों की पुरानी बात होती है….!

दिल में जहर दबाने से कहीं अच्छा
फट पड़ना भी राहत की बात होती है….!

जिसने जगाया मुझे उसे सोने को कह दिया
ऐसी रात में सोते रहने की अलग बात होती है….!

कल मैं और प्रकृति दोनो अनुनादित थे,
दिल की बात का इजहार जरूरी बात होती है….!

©️®️ लखनऊ की बारिश/अनुनाद/आनन्द/११.०९.२०२३

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बिछड़ गए !

भटकना नसीब में था

इसीलिए

तुमसे बिछड़ गए…..!

 

आवारगी फ़ितरत न थी

मगर

घर से निकल पड़े।

 

एक शहर से दूसरे घूमे बहुत

मगर

कहीं ठहरना न हुवा….!

 

लोग बहुत जानते है यहाँ हमें

मगर

कोई अपना नहीं….!

 

ठहरना चाहा बहुत हमने

मगर

कहीं तुम मिले ही नहीं….!

 

रास्तों से दोस्ती कर ली

और

आशियाँ कोई बनाया नहीं….!

 

भटकना नसीब में था

इसीलिए

फिर दिल कहीं लगा ही नही…..!

©️®️बिछड़ गए/अनुनाद/आनन्द/२१.०७.२०२३

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भूल गए!

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।

उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की,
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।

सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी,
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।

इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।

गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२

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चले जाना!

तुम जाना !
तो बस,
चले जाना…..
बिना बताए
अचानक
खामोशी से
ऐसा कि
भनक भी न मिले।

दुःख तो होगा
तुम्हारे जाने का
मगर
वो जाने के बाद होगा
और कम होगा
उस दुःख से
जब मुझे
तुम्हारे जाने का
पहले से
पता होगा!

क्यूँकि
पहले से
पता होने पर
दुःख ज़रा पहले
से शुरू होगा
और
इस तरह
दुःख की अवधि
कुछ बढ़ जाएगी।

©️®️चले जाना/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२२.०१.२०२२

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इस शहर में…

इस शहर में जीने के हैं रास्ते कई
पर अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी यहाँ आसान नहीं।

जी हुज़ूरी में मिलती नित तरक़्क़ी नई
पर ग़लत को ग़लत कहना यहाँ आसान नहीं।

इधर-उधर बनाए रखिए नज़रें कई
काम से काम रखने से होता कोई काम नहीं।

ऊँचाई पर पहुँचने को, की कोशिशें कई
इस दौड़ में भीड़ से खुद को बचना आसान नहीं।

बनने को ख़ास हमने बदले कलेवर कई
इतने बदले कि अब अपनी शक़्ल तक याद नहीं।

इस शहर में रहते हैं बड़े नाम कई और
इन नामों में अपना नाम याद रखना आसान नहीं।

©️®️इस शहर में/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०९.२०२१