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मुश्किल

बड़ा मुश्किल है इस दौर में
जहाँ हो, वहीं पर रहना…
एक वयस्क होकर भीड़ में
बच्चों सा दिल रखना।

बड़ा मुश्किल है राजनीति में
किसी से भी याराना…
जीतने की दौड़ में भला
कहाँ मुमकिन है साथ चल पाना।

बड़ा मुश्किल है संग तेरे मेरा
खुद को बहकने से बचाना…
दूर होकर भी तुझसे मेरा
खुद को तनहा रखना।

बड़ा मुश्किल है इच्छाओं को
गलत सही के चक्कर में दबाना…
जलराशि खतरे से ज्यादा हो तो
लाजमी है बाँध का ढह जाना।

बड़ा मुश्किल है सच्चे दिल से
किसी सच को छुपाना…
चेहरा झूठ बोल भी दे तो
आँखों से नही हो पाता निभाना।

बड़ा मुश्किल है लोगों से
ये रिश्ता देर तक छिपाना…
दिल जलों के मोहल्ले में
मुश्किल है आँखें चुराना।

मैं जो दिल की बात कर दूँ
तो नाराज न हो जाना…
ये तो हक़ है तेरा बोलो
तुमसे क्या ही छुपाना।

बड़ा मुश्किल है तुझको
छोड़कर मुझे जाना…
उसके लिए जरूरी है
हाथों में हाथों का होना।

बड़ा मुश्किल है आनन्द
अनुनाद में रह पाना…
दुनियादारी निभाने में
दिल-दिमाग का एक हो पाना।

©®मुश्किल/अनुनाद/आनन्द/१८.११.२०२२

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दायरा

वो दायरा
जिससे बाहर रहकर
लोग तुमसे
बात करते हैं
मैं वो दायरा
तोड़ना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

भीड़ में भी
सुन लूँ
तेरी हर बात
मैं तेरे होठों को
अपने कानों के
पास चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

स्पर्श से भी
काम न चले
सब सुन्न हो कुछ
महसूस न हो
तब भी तेरी धड़कन को
महसूस करना चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

चेहरे की सब
हरकत पढ़ लूँ
आँखों की सब
शर्म समझ लूँ
मैं तेरी साँसों से अपनी
साँसों की तकरार चाहता हूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

दायरे सभी
ख़त्म करने को
मैं तेरा इक़रार
चाहता हूँ
हमारे प्यार को
परवान चढ़ा सकूँ
मैं तेरे इतना क़रीब
आना चाहता हूँ।

©️®️दायरा/अनुनाद/आनन्द/०५.११.२०२२

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सफ़र

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

एक शख़्स ने ले लिया तेरे शहर का नाम
लो बढ़ गया धड़कनों को सँभालने का काम।

इस गाड़ी के सफ़र में तेरा शहर भी तो पड़ता है
बनकर मुसाफ़िर क्यूँ चले नहीं आते हो आज।

कैसे भरोसा दिलाएँ कि ज़िद छोड़ दी अब मैंने
बस मुलाक़ात होती है रोकने की कोई बात नहीं।

दिवाली का महीना है, साफ़-सफ़ाई ज़रूरी है
क्यूँ नहीं यादों पर जमी धूल हटा देते हो आज।

धूमिल होती यादों को फिर से आओ चमका दो आज
पॉवर बढ़ गया है फिर भी बिन चश्में के देखेंगे तुझे आज।

झूठ बोलना छोड़ चुके हम अब दो टूक कहते हैं
नहीं जी पाएँगे तुम्हारे बिना ये झूठ नहीं कहेंगे आज।

तेरे यादों ने अच्छे से सँभाला हुवा है मुझे
फिर मिलेंगे ये विश्वास लेकर यहाँ तक आ गए आज।

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

©️®️सफ़र/अनुनाद/आनन्द/०५.१०.२०२२

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भूल गए!

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।

उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की,
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।

सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी,
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।

इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।

गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२

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उनींदी आँखें

नींद यूँ ही नहीं टूटती अक्सर रातों में,
किसी को खो देने से डरती ज़रूर होगी ।

आँखे यूँ ही बेवजह नहीं खुलती रात में
किसी को देखने की तड़प ज़रूर होगी।

बेचैनियों से भरा समुन्दर है इस दिल में,
सन्नाटे में लहरों की आवाज़ गूँजती होगी।

थकान बहुत है नींद में जाने को काफ़ी है,
दुनिया का ख़ौफ़ नहीं तन्हाई काटती होगी।

ग़ज़ब की लड़ाई है दिल और दिमाग़ में,
सोचना तो ठीक कर गुजरना बुराई होगी।

ये ग़ुस्सा तुम पर ही क्यूँ बहुत आता है, नासमझ!
ये एक बात तुमको कितने दफे समझाई होगी।

ये जो आज मिज़ाज बदले-बदले हैं जनाब के,
ज़रूर अब से सुधार जाने की क़सम खाई होगी।

नींद यूँ ही नहीं टूटती अक्सर रातों में,
ज़रूर कुछ रातें तेरे संग प्यार में बिताई होगी।

आँखे यूँ ही बेवजह नहीं खुलती रात में
फिर से देखने को तुझे तेरी याद आई होगी।

नींद यूँ ही नहीं टूटती अक्सर रातों में…….
आँखे यूँ ही बेवजह नहीं खुलती रात में…..
नींद और आँखो की है आपस में लड़ाई,
ये लड़ाई भी ज़रूर तूने कराई होगी…….!

©️®️उनींदी आँखे/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२८.१२.२०२१