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साथ !

मैं तुम्हारे साथ हूँ,
बोलने से सिर्फ
साथ नहीं होता।
साथ होता है
साथ बैठने से
घंटो, बेवजह!
इतना कि
किसी भी विषय पर
दोनों की
अलग-२ राय
मिलकर एक हो जाय।

और फिर
दोनों को
दोनों की
चिंता करने की
“कोशिश”
न करनी पड़े।
बोलने की
जरूरत न पड़े।
कोई फॉर्मेलिटी
या संकोच न रहे।
सही मायने में
साथ होता है
साथ बैठने से!

©️®️साथ/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.०७.२०२१

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ज़िन्दगी में कभी लॉकडाउन नहीं होता…

साँसे तो हमें रोज लेनी है
भूख भी रोज ही लगनी है
सच है कि साँस उखड़ने से पहले
ज़िन्दगी में कभी लॉकडाउन नहीं होता…

मेहनत रोज ही करनी है
रोटी भी रोज कमानी है
उन्हें चलाने हैं फावड़े, कन्नी और बँसुली
मजदूरों की ज़िन्दगी में लॉकडाउन नहीं होता…

नदिया रोज है बहती
हवा भी रोज है चलती
करने को दिन-रात सूरज-चाँद रोज निकलते
इस प्रकृति के चक्र का लॉकडाउन नहीं होता…

रसोई रोज लगती है
थालियाँ रोज सजती है
रखने को ख्याल वो दिन भर लगी रहती
माँ की ज़िन्दगी में लॉकडाउन नहीं होता…

जीवन का नाम हैं चलने का
नहीं रुकने का नहीं ठहरने का
दौर मुश्किल, जरूरत है समझने की
इन दूरियों से नजदीकियों का लॉकडाउन नहीं होता…

तुम एक पल को बैठ सकते हो
अपने घर में रुक भी सकते हो
जिन्हें जरूरी है निकलना उनको मौका दो
आवश्यक सेवाओं का कभी लॉकडाउन नहीं होता…

प्रगति ने एक एक दौड़ शुरू की है
न चाहते हुए हमने दौड़ जारी रखी है
मौका मिला है रुक कर साँस लेने को
मुड़कर देखने को समय में लॉकडाउन नहीं होता…

किस्मत हमारी कितनी न्यारी है
शब्दों और कलम से हमारी यारी है
लिखना-पढ़ना ही है जीविका हमारी
घर बैठ काम करने को सबको लॉकडाउन नहीं मिलता…

©️®️लॉकडाउन/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.०५.२०२१

फोटू: साभार इंटरनेट

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जीवन उत्सव

तुम क्या समझो यह जीवन उत्सव,
पल भर फुरसत में अपनों के साथ तो बैठो!
मंद-तीव्र भावों में चिंता नहीं अवसाद नहीं
सूखे इन चेहरों पर खिलती मुस्कान तो देखो।

पाना और संचय करना बेहद जरूरी,
मगर फकीरी अंदाज का आनन्द तो देखो!
व्यर्थ क्यों करता है तू चिंता कल की,
आओ आकर आनंद की चौपाल में बैठो।

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१५.०२.२०२१

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हम बिजली अभियन्ता…..

नौकरी करने चले थे हम सरकारी,
क्या बताएँ बस मति गयी थी मारी।

बिजली अभियन्ता हैं बिजली हम बनाते हैं,
दूर-२ तक पहुँचाते और इसे घर-२ बाँटते हैं।

हवा पानी की तरह ही भाई बिजली भी ज़रूरी है,
है मँहगी मगर सबको सस्ती मिलनी ज़रूरी है।

आवश्यक चीज़ों-सेवाओं का कभी सौदा नही किया जा सकता,
प्रगति को ज़रूरी बिजली को लाभ के लिए बेचा नहीं जा सकता।

बिजली घर-२ की ज़रूरत है, इस हक़ को छीना नहीं जा सकता,
केवल मुनाफ़ा कमाने का इसको साधन बनाया नहीं जा सकता।

जब तक भारत देश से हमारे देखो ग़रीबी नहीं मिटती,
सरकारी सहयोग से ही सबको सस्ती बिजली मिल सकती।

व्यापारी तो केवल व्यापार करने आएँगे
बिना मुनाफ़े के वो क्या ही बिजली बेच पाएँगे।

जब बिजली बन जाएगी मुनाफ़े का सौदा तो सोचिए
क्या किसी गरीब के घर कभी रोशनी हो पाएगी ?

ये बिजली है आम जन मानस का हक़ और सबको ज़रूरी है,
बिना किसी लाभ-हानि के इस पर सरकारी नियंत्रण ज़रूरी है।

माना की कमियाँ हैं अभी कुछ हम सेवा प्रदाताओं में,
तकनीक के प्रयोग से किया जा सकता है सुधार इसमें।

हम बिजली अभियंताओं ने देश हित को क़सम ये खायी है,
करने को देश सेवा हमने न जाने कितनी नौकरियाँ ठुकरायीं हैं।

है योग्यता हममे, हम आज भी अपना हित साध सकते हैं,
हम किसी कोरपोरेट या फिर देश के बाहर भी जा सकते हैं।

मगर देश भक्ति का जज़्बा लिए हम सरकारी सेवाओं में आयें हैं
समाज की भलाई को लेकर हम सब संघर्षों को गले लगाएँ हैं।

निजीकरण बर्दाश्त नहीं ये हमारे और गरीब जनता के साथ धोखा है,
देश की प्रगति में साधक बिजली को हमने ही ग़लत हाथों में जाने से रोका है।

©️~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१७.०९.२०२०

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तेरा साथ ही आनन्द…

आपकी बातों में छुपी शैतानियाँ समझते हुए भी वो अनजान बनते हों…
जब समझाओ तो ज्यादा होशियार न बनो, ये कहकर बातों को टाल देते हों…
इससे ज्यादा कोई रिश्ता क्या मुकम्मल होगा, कि दोनों दिल एक ही मुकाम पर हैं…
तू बस उनके साथ सफ़र को जी, इससे ज्यादा की क्यों उम्मीद करते हो…