मैं तुम्हारे साथ हूँ, बोलने से सिर्फ साथ नहीं होता। साथ होता है साथ बैठने से घंटो, बेवजह! इतना कि किसी भी विषय पर दोनों की अलग-२ राय मिलकर एक हो जाय।
और फिर दोनों को दोनों की चिंता करने की “कोशिश” न करनी पड़े। बोलने की जरूरत न पड़े। कोई फॉर्मेलिटी या संकोच न रहे। सही मायने में साथ होता है साथ बैठने से!
आपकी बातों में छुपी शैतानियाँ समझते हुए भी वो अनजान बनते हों… जब समझाओ तो ज्यादा होशियार न बनो, ये कहकर बातों को टाल देते हों… इससे ज्यादा कोई रिश्ता क्या मुकम्मल होगा, कि दोनों दिल एक ही मुकाम पर हैं… तू बस उनके साथ सफ़र को जी, इससे ज्यादा की क्यों उम्मीद करते हो…