आज कल बागवानी का शौक चढ़ा है! एक आदमी के ज्यादा शौक नहीं होते। पद, शोहरत, पैसा और इश्क…. ! पूरा बचपन और जवानी इन्हीं चार चीजों के पीछे भागता है और पाने की कोशिश करता है। हमने भी की। सब कुछ तो मिला मगर शोहरत मिलना बाकी है। इतनी शोहरत चाहिए कि बाहर निकलूँ तो हर वक़्त लोगों से बच के निकलना पड़े। ऐसे शोहरत के बाद जब भी आपको सुकून के दो पल मिलेंगे उसकी कीमत क्या ही आँकी जाए। उन्हीं सुकून के पलों में हम बागवानी करेंगें। उसके लिए तो बागवानी सीखनी पड़ेगी…! तो बस उसी की तैयारी चल रही है……
निजी जीवन में खुद को प्रकृति के नजदीक ले जाना है और बस देते रहना ही सीखना है….. बाँटना है…. सब कुछ …. सब में ….. उसके पहले खूब बटोरना भी है 😜😆
भावनावों के आवेग में डूबता-उतराता हुआ पिछले २४ घण्टो में कई रिश्तों के सम्पर्क से गुजरता हुआ फिलहाल बिस्तर पर हूँ। सर्दी बहुत है। एक कम्बल और एक रजाई के युग्म के अंदर खुद को रखकर लिख रहा हूँ। पैर मस्त गरम हैं और कान थोड़े ठंडे। दिल गोताखोरों की तरह गोते ले रहा है। बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ पर भावनाओं के इस भँवर में सब कुछ समेट कर एक जगह रखने में खुद को नाकाम पा रहा हूँ। बिकुल असहाय…
२०१२ के बाद से मशीनी ज़िन्दगी जी रहा था! सरकारी घर, कार्यालय और फ़ोन! बस यही जीवन था! सारी जिम्मेदारियाँ बस फ़ोन से ही निपट रही थी। लेकिन अब जाकर जब लोगों के बीच, अपनों के बीच, बिना किसी काम के, फालतू बैठने/मिलने के एहसास से दो-चार हुआ हूँ तब जाकर ज्ञान चक्षु खुले हैं कि हम क्या खो दिए पिछले आठ सालों में! चल रही महामारी तो मेरे जैसे रिज़र्व व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के लिए तो वरदान साबित हुई थी। एक कारण मिल गया था अकेले रहने का! लेकिन अगस्त २०२० के बाद से फुरसत के कुछ पल जो मिलें और नीलिमा जी के घूर कर देखने के बाद हमने जो जड़त्व के नियमों का रिवीजन किया है न… फिर तो पूँछिये मत! दिल और दिमाग बिल्कुल हिल गए हैं। रिश्तों का, मिलने-मिलाने का, भावनाओं का ऐसा हैवी डोज़ मिला है कि पूरे नशे में हैं… कुछ समझ नहीं आ रहा!
मैं रिश्तों को सामने से नहीं जीता! फ्यूचर मोड में जीता हूँ! फ्यूचर मोड? समझाता हूँ! आप मुझसे मिलिए, मैं मुस्कुराहट के साथ गर्मजोशी से मिल लूँगा! इतना अपनत्व कि सदियों से जानते हो जैसे! जितनी भी देर साथ रहेंगें कि कोई तीसरा देख ले तो बोले बड़ा याराना है इन दोनों में। फिर थोड़ी देर बाद जब अलग हुए तो खुद से पूँछता हूँ कि कौन था वो आदमी? 😜 मैं इस डर में मुस्कुरा के मिल लिया कि सामने वाले को बुरा न लगे! बस यहीं से रिश्ता पक्का। भविष्य में जब कभी भी वो व्यक्ति मुझसे मिलता है तो इतनी आत्मीयता से कि पूँछिये मत! और मैं फिर वही ढाक के तीन पात! कौन था ये आदमी?😆
सरयू नदी के बगल का रहने वाला हूँ। नदियों से खासा लगाव! कैसा? मुझे भी नहीं पता! किंतु जब भी बगल से गुजरता हूँ एक सुकून सा मिलता है। गहरा सुकून! मन करता है कि इनके सानिध्य में बैठा रहूँ। घण्टों! न कुछ बोलना, न कुछ सुनना! बस बहती धारा को देखना…
कल से बेहद शान्त हूँ! गोते लगा रहा हूँ…. भावनाओं में!
पर्यायवाची और विलोम ये दो शब्द हर हिंदी के छात्र ने पढ़ा और सुना होगा। अगर कोई मुझसे पूछे कि कोरोना का विलोम क्या है तो मैं बोलूंगा कि ‘कोरोना’ का विलोम है ‘शादी’। हा हा…. आप भी सोच रहे होंगे कि क्या बात कर रहा है ये लौंडा! मतलब कि कुछ भी! नहीं भैया कुछ भी नहीं फेंक रहे हैं। बिल्कुल सही बात कर रहें हैं।
जिस तरह कोरोना ने हमारे जीवन को वीरान कर दिया था। सबसे दूर कर दिया था। नाते-रिश्ते सब खत्म कर दिए थे ! हम एक नीरस और बिना मतलब का जी रहे थे। मोह-माया त्याग कर बिल्कुल सन्यास की तरफ बढ़ चले थे और स्थिति ये आ गई थी कि हर कोई मोक्ष के मुँहाने पर ही लाइन लगाए खड़ा था कि ….. तभी चालू हो गया शादियों का सीजन! और बस यहीं कोरोना का असर खत्म! सारा डर काफ़ूर! कैसा कोरोना! काहे का कोरोना! कौन कोरोना! कहाँ का कोरोना! कोरोना मतलब? कुछ सुना-सुना सा लगता है कोरोना!अच्छा वो फलाँ चाचा वाली चाची की बहन की बेटी कोरोना! अरे नहीं वो तो करुणा है! तुम भी न! बकलोले हो बिल्कुल!
भाईसाहब ! शादियों का सीजन क्या शुरू हुआ कि बाजार गुलजार हो गए! निमंत्रण बँटने लगे! जीजा-फूफा लोगों की बाँछे खिल गयी। अब फिर रूठने का मौका मिलेगा! सालियों के मन में लड्डू फूटने लगे, अब तो जूते चुराएँगे और पैसे बनाएँगे! दूल्हा-दुल्हन तो अलग ही लेवल पर हैं, वो तो जमीन पर उतर ही नहीं रहे। बुवा, मौसी, चाची सारे रिश्ते ज़िंदा हो गए। मोह-माया जो बस प्राण छोड़ने ही वाली थी, पुनः जीवित हो उठी। और मोक्ष को प्राप्त होने वाले लोग पुनः इस मृत्युलोक के मजे लेने लगे। हा हा… बचा लिया शादी ने इस संसार को!
हे शादी! तुम भगवान विष्णु का कोई अवतार लगते हो! जो इस दुनिया को बचाने चले आए! कोई न ! देर आए दुरुस्त आए…! माहौल में गर्मी यूँ ही बनाए रखना!
और हाँ इस बार शादी का ये सीजन खत्म न हो। सबकी शादी हो जाए! अखण्ड कुँवारों की भी ! आपकी भी! क्या? आपकी हो गयी है? कोई न! घर पर पूँछकर दूसरी कर लीजिए। आखिरकार कोरोना को हराना जो है।“सबका साथ कोरोना का नाश!”
दुनिया फालतू में वैक्सीन बनाने में लगी हैं! हम आज ही एक शादी निपटाएँ हैं और कल दूसरी में जाने की तैयारी है। चलता हूँ गरम पानी में नमक डालकर….न-न गरारे नहीं करने! पीना है! पेट जो साफ करना है। आज पूड़ी खाने में कसर रह गई! कल दो पूड़ी ज्यादा खानी पड़ेगी!