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बिछड़ गए !

भटकना नसीब में था

इसीलिए

तुमसे बिछड़ गए…..!

 

आवारगी फ़ितरत न थी

मगर

घर से निकल पड़े।

 

एक शहर से दूसरे घूमे बहुत

मगर

कहीं ठहरना न हुवा….!

 

लोग बहुत जानते है यहाँ हमें

मगर

कोई अपना नहीं….!

 

ठहरना चाहा बहुत हमने

मगर

कहीं तुम मिले ही नहीं….!

 

रास्तों से दोस्ती कर ली

और

आशियाँ कोई बनाया नहीं….!

 

भटकना नसीब में था

इसीलिए

फिर दिल कहीं लगा ही नही…..!

©️®️बिछड़ गए/अनुनाद/आनन्द/२१.०७.२०२३

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सफ़र

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

एक शख़्स ने ले लिया तेरे शहर का नाम
लो बढ़ गया धड़कनों को सँभालने का काम।

इस गाड़ी के सफ़र में तेरा शहर भी तो पड़ता है
बनकर मुसाफ़िर क्यूँ चले नहीं आते हो आज।

कैसे भरोसा दिलाएँ कि ज़िद छोड़ दी अब मैंने
बस मुलाक़ात होती है रोकने की कोई बात नहीं।

दिवाली का महीना है, साफ़-सफ़ाई ज़रूरी है
क्यूँ नहीं यादों पर जमी धूल हटा देते हो आज।

धूमिल होती यादों को फिर से आओ चमका दो आज
पॉवर बढ़ गया है फिर भी बिन चश्में के देखेंगे तुझे आज।

झूठ बोलना छोड़ चुके हम अब दो टूक कहते हैं
नहीं जी पाएँगे तुम्हारे बिना ये झूठ नहीं कहेंगे आज।

तेरे यादों ने अच्छे से सँभाला हुवा है मुझे
फिर मिलेंगे ये विश्वास लेकर यहाँ तक आ गए आज।

दिल में एक उम्मीद जगी है फिर आज
रेलगाड़ी के सफ़र को मैं निकला हूँ आज।

©️®️सफ़र/अनुनाद/आनन्द/०५.१०.२०२२

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भूल गए!

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।

उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की,
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।

सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी,
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।

इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।

गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२

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चले जाना!

तुम जाना !
तो बस,
चले जाना…..
बिना बताए
अचानक
खामोशी से
ऐसा कि
भनक भी न मिले।

दुःख तो होगा
तुम्हारे जाने का
मगर
वो जाने के बाद होगा
और कम होगा
उस दुःख से
जब मुझे
तुम्हारे जाने का
पहले से
पता होगा!

क्यूँकि
पहले से
पता होने पर
दुःख ज़रा पहले
से शुरू होगा
और
इस तरह
दुःख की अवधि
कुछ बढ़ जाएगी।

©️®️चले जाना/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२२.०१.२०२२

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साथ !

मैं तुम्हारे साथ हूँ,
बोलने से सिर्फ
साथ नहीं होता।
साथ होता है
साथ बैठने से
घंटो, बेवजह!
इतना कि
किसी भी विषय पर
दोनों की
अलग-२ राय
मिलकर एक हो जाय।

और फिर
दोनों को
दोनों की
चिंता करने की
“कोशिश”
न करनी पड़े।
बोलने की
जरूरत न पड़े।
कोई फॉर्मेलिटी
या संकोच न रहे।
सही मायने में
साथ होता है
साथ बैठने से!

©️®️साथ/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.०७.२०२१