आज कल बागवानी का शौक चढ़ा है! एक आदमी के ज्यादा शौक नहीं होते। पद, शोहरत, पैसा और इश्क…. ! पूरा बचपन और जवानी इन्हीं चार चीजों के पीछे भागता है और पाने की कोशिश करता है। हमने भी की। सब कुछ तो मिला मगर शोहरत मिलना बाकी है। इतनी शोहरत चाहिए कि बाहर निकलूँ तो हर वक़्त लोगों से बच के निकलना पड़े। ऐसे शोहरत के बाद जब भी आपको सुकून के दो पल मिलेंगे उसकी कीमत क्या ही आँकी जाए। उन्हीं सुकून के पलों में हम बागवानी करेंगें। उसके लिए तो बागवानी सीखनी पड़ेगी…! तो बस उसी की तैयारी चल रही है……
निजी जीवन में खुद को प्रकृति के नजदीक ले जाना है और बस देते रहना ही सीखना है….. बाँटना है…. सब कुछ …. सब में ….. उसके पहले खूब बटोरना भी है 😜😆
अब ज़िन्दगी अलग लेवल पर जीने का मन हो रहा है। शिक्षा, नौकरी, शादी, बच्चे, और ३० से अधिक उम्र के अनुभव से ये पता चला कि ये सब जीवन के लक्ष्य नहीं थे। ये सब तो केवल इंसान को व्यस्त रखने के तरीके भर थे। नौकरी तो कभी भी जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। इस पर एक नौकरी तो उम्र भर कभी नहीं करनी चाहिए। इसे जितनी जल्दी समझ लें उतना बेहतर। प्रतिदिन एक काम करके आप तालाब का पानी हो जाते हैं।
अब सोच रहे हैं कि कोई व्यवसाय किया जाए और इतना कमा लें कि जीविकोपार्जन के साथ-२ सामाजिक जिम्मेदारियाँ भी निपट जाएँ। बस जिस दिन इतनी व्यवस्था हो गयी उसी दिन छोड़ देंगे नौकरी और आजाद हो जाएंगे दस से पांच के चक्र से। फिर तो भैया सुबह उठ कर प्राणायाम, स्नान, ध्यान और मस्त नाश्ता कर (बैकग्राउंड में देसी-देसी न बोल कर वाला गाना बजते हुए) ११ बजे तक अपने सारथी के आठ इंनोवा में अपनी हाईवे वाली दुकान पर….! एक-दो घंटे कर्मचारियों से पूरा लेख जोखा लिया गया और फिर दो-चार लोग जिनको मिलने का समय दिया गया था, उनके साथ मिलना और राजनीति की चर्चा। दोपहर में सेवक घर से गर्म-२ भोजन ले आया। हल्की धूप और पेड़ की छांव में तख्त पर बैठकर भरपूर भोजन करने के उपरान्त मस्त एक घंटे की नींद ली गयी। अब तक ३ बज चुके हैं। अब पास के लोकल बाजार में अपने कार्यालय जो कि कार्यालय कम और राजनीतिक चर्चा का अड्डा ज्यादा है, पर चलने का समय हो गया।
शाम का समय कार्यालय पर गुजारने के बाद दो तीन नया चेला लोग को जो लपक कर पैर छू लिए थे, सबको आशीर्वाद देने के बाद और अगले दिन की कार्य योजना पर मुहर लगा कर कार्यालय से प्रस्थान। शाम हो गयी है। दोस्तों के साथ बैठने का तय हुआ है आज का । अपने पसंदीदा रेस्तरां में बैठना है। ६ से ८ का समय , दोस्तों का साथ, व्हिस्की के दो पेग, और ढेर सारी गप्पों के साथ अगले चुनाव की चर्चा भी….
अब तो सांसद बनना ही है। संसद भवन में बैठना है। देश के केंद्र में। वहां से देखेंगे अपने गाँव जेवार को। अब दिल्ली बैठेंगे। लोग-बाग मिलने आएँगे। हम भी कुर्ता धोती में रंग चढ़ाए सबसे मिलेंगे। इतना मिलेंगे की जब तक दिन भर में ४००-५०० लोगों से न मिल लें तब तक चैन नहीं। प्रत्येक दिन कहीं न कहीं का टूर। नए नए लोगों से मिलना। राजनीति में ४०-५० उम्र का नेता तो युवा नेता कहलाता है तो जवान तो हम वहां रहेगें ही। बाकी बाल में कलर और मुंह पर फेशियल तो हम कराते ही रहेंगे। कहीं किसी मंच या रात्रि पार्टी में आपसे नज़रें मिल गयी तो………! चेहरे पर रौनक तो होनी ही चाहिए😀 ! इसी मुलाकात में मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाए और आंखों के इशारे से अगली मुलाकात भी तय हो जाए😜। बाकी हम इतने प्रसिद्ध तो रहेंगे ही कि आप हमारा पता ढूंढ लें😎। अब ज्यादा डिटेल में नहीं जाते हैं।
कुल मिलाकर अपने मन की ज़िन्दगी जीनी है। आजाद रहना है और लोक हित में खूब काम करना है लेकिन अपने शौक के साथ। व्यापक जिंदगी जीनी है, सीमित नहीं। तो अगला लक्ष्य संसद भवन। अब तो नया संसद भवन बन रहा है। हमारे सांसद बनने तक बन भी जाएगा 😋। जबसे नया वाला संसद भवन की तस्वीर देखें हैं, संसद जाने की इच्छा और प्रबल हो गयी है।
बाकी सांसद वाले भोकाल की चर्चा नहीं किये हैं इधर! अब हर चीज बताना जरूरी थोड़े ही है। आप लोग बहुत समझदार हैं। हमारा लालच तो भाँप ही लिए होंगे😆।
एक दिन
निकल लेंगे
चुप-चाप
बिना बताये
कहाँ ?
नहीं पता !
होकर मुक्त
जिम्मेदारियों के चंगुल से !
नहीं बंधेंगे
दिन-रात के फेरे में
१० से ५ में
सब को खुश करने में
ये सोचने में कि
लोग क्या सोचेंगे !
समय की पराधीनता से मुक्त
तोड़कर हर सीमाओं को।
ख्वाहिश नहीं शेष
कुछ पाने की
ख्वाहिश केवल
जीने की
खुद को !
भले-बुरे से ऊपर
गलत-सही से हटकर
एक बेबाक जिंदगी
होकर निडर
सिर्फ सफर
न कोई मंज़िल !
न कोई ठहराव !
न कोई पहचान !
ख़त्म हर लालसा ।
जीना है सिर्फ
जिन्दगी को !
देखना है इसे
बेहद करीब से
रंगना है
इसके रंग में !
बह जाना है
इसके बहाव में !
बिना विरोध
इसका हर निर्णय
होगा आत्मसात।
कोई चिंता नहीं
भविष्य की,
जीना सिर्फ
आज में,
कोशिश
पेट भरने की,
खोज बस
आश्रय की,
इंतज़ार केवल
नींद का,
भरोसे प्रभु के
स्मरण प्रभु का
समर्पण प्रभु को
कुछ और नहीं।
होकर तटस्थ
देना है मौका
पानी को शान्त होने का
तभी तो दिखेगा
गहराई के अंत में
वो आखिरी तल……… एक दिन निकल लेंगे बस उस आखिरी दिन से पहले !