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आदत नहीं गई…!

माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।

सोचा था कि देखने से ही प्यास बुझेगी मगर,
कुछ देर साथ बिताने से भी बेचैनियाँ नहीं गई।

क्या गज़ब का मिराज है तू और तेरा हुस्न,
तेरे बहुत पास पहुँचने से भी ये दूरियाँ नहीं गई।

तेरे साथ की ठंडक के बारे में बहुत सुना है मगर,
दिल में लगी है जो अगन तेरे छूने से भी न गई।

लोग कहते हैं कि मुझको अल्लाह की इबादत कर,
मेरे लबों को सुबह-शाम तेरा नाम लेने की आदत न गई।

हुस्नो की बारात है देखो मेरे चारों तरफ मगर,
दुल्हन से तेरे चेहरे से मेरी नज़र कहीं और न गई।

माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में आनन्द तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।

©®आदत नहीं गई/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०१.०७.२०२१

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ढलती शाम …

ये सूरज सुर्ख लाल है बिल्कुल मेरी तरह लगता है,
इस ढलती शाम से बेहद नाराज लगता है।

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०९.११.२०२०

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अग्नि!

ख़ाली बैठे समय का उत्पाद है ये फ़ोटो ! लेकिन ग़ज़ब का है ये फ़ोटो। व्यक्ति के भीतर के अग्नि तत्व को दर्शाती ! जीने के लिए ज़रूरी तापमान को बनाए रखने के लिए कई तरह के ईंधन की आवश्यकता होती है। भोजन के सिवा भी कई ईंधन हैं जो इस आग को बनाये रखने के लिए ज़रूरी हैं जैसे – इच्छाएँ, जिम्मेदारियाँ, ज़रूरतें और चाहत….! इच्छाएँ और चाहत में अन्तर है इच्छाएँ जीवित या मृत किसी भी वस्तु की हो सकती है किन्तु चाहत केवल जीवित तत्व की होती है। ये मेरा अपना दर्शन है। ये आग यूँ ही इतनी तीव्र नही है ……! भड़की है ये …… केवल तुम्हारी चाहत में ………….।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०७.०८.२०२०