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निज़ात

काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!

हद से ज्यादा हो गईं अब तो शिकायतें
सभी चिट्ठियों को बिन पढ़े जला दिया जाए!

दिल में घाव अब बहुत सारे हो गए हैं
मेरे हक़ीम से अब तो खंजर छीन लिया जाए!

साथ तेरा किसी बोझ से कम नहीं
क्यों न अब ये बोझ दिल से उतार दिया जाए?

साथ चल नहीं सकते साथ रुक तो सकते हैं
मगर पीछे चलने की आदत अब तो छोड़ दी जाए!

दूर थे तो तब बात कुछ और थी आनन्द
पास रहकर भी बोलो अब दूर कैसे रहा जाए!

मैं बेचैन करवटें बदलता रहा रात भर
इस चाहत में कि अब तो मेरा हाल पूँछ लिया जाए!

बहुत कुछ खो दूँगा इस तरह मैं, तो क्या
चलो फिर से एक मुकम्मल शुरुआत की जाए!

काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!

©️®️निज़ात/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०७.२०२१

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राम राज्य…….!

०५ अगस्त २०१९ दिन बुधवार,
तिथि ये कोई साधारण नहीं,
चेहरे आज ये जो शांत दिख रहे,
इनमें छुपा वर्षों का संघर्ष कहीं।

इतिहास तो हमने बहुत पढ़ा था,
आज आँखों से बनते देख रहा हूँ,
गर्व का क्षण है और खुश-किस्मती मेरी,
कीर्तिमान का शिलान्यास देख रहा हूँ।

राम नाम में ही छिपी,
न जाने कितनों की दुनिया,
चेहरे सबके सूखे थे,
प्यासी थी सबकी अँखियाँ।

जिस अयोध्या प्रभु जन्म लिए,
जिस घर भरी किलकारियाँ,
रूप सुहावन राम लला का
उनमें में बसती थी सारी खुशियाँ।

ये कैसा दुर्भाग्य हमारा था,
प्रभु से छिना उनका घर-द्वारा था,
क्षीण हुवा गौरव कौशलपुरी का,
उजड़ा भक्तों का संसार सारा था।

चहुँ ओर जब राम राज्य था,
कहते हैं सब नर में राम बसते थे,
सभी दिशाओं में थी सम्पन्नता
सुना है घी के दिए ही जलते थे।

अब जब राम लला फिर से,
विराजेंगे अपने घर आँगन,
प्रभु राम की कृपा से देखो,
पूरा देश हुवा है मस्त मगन।

गलत हुवा था या अब सही हुवा,
मैं इतिहास नहीं अब खोदूँगा,
राम राज्य की जो है कल्पना वो,
आये धरातल पर बस यही चाहूँगा।

बहुत हो गया द्वंद्व दो पक्षों में.
अब न शेष कोई विषमता हो,
प्रभु भारत देश में अब तो बस,
हिन्दू मुस्लिम में सम रसता हो।

हो जाएँ ख़त्म सारे भेद-भाव,
न ऊँच-नीच न कोई जात-पात,
समान शिक्षा और सबको रोजगार,
हो देश की उन्नति की बात।

सबका साथ सबका विकास हो,
समानता, सम्पन्नता ही हो सर्वस्व,
जगदगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हो,
स्थापित हो फिर से भारत का वर्चस्व।

सियावर राम चंद्र की जय !

सबके राम, सबमें राम !

~अनुनाद/ आनन्द कनौजिया/०५.०८.२०२०

राम लला
निमन्त्रण पत्र

भूमि पूजन

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सरयू का पुल

ये सरयू में बाढ़ का पानी ऐसे है जैसे,
सामने तुम खड़े हो मुस्कुराते आँचल फैलाए।
ये किनारों की हरियाली जैसे रूपट्टे में कोई कढ़ाई
हम रहते खड़े एक टक तुझको बस निहारते ही जाएँ।।

लो फैला दी हमने बाहें अपनी अब,
बस तुम्हारा आकर गले लगना बाकी है।
अधूरे थे हम ये तुमको देखा तो जाना,
आ भी जाओ कि पूरा होना बाकी है।।

ये जो पुल है सरयू तुम पर
इसे बनना नही चाहिए था।
तुम्हारा साथ इतनी जल्दी बीत जाए,
हमें ये तो कभी नही चाहिए था।।

तुझमें उतर कर अगर पार करते,
तो मिलने का मजा कुछ और था।
डूबते तो हमेशा को तेरे हो जाते और,
पार होते तो जीने को यादों में ये सफर था।।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०७.२०२०

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सरयू और अयोध्या

काश हमारा तुम्हारा मिलन कुछ यूं हो जाए,
दिन रात के मिलने को जैसे संध्या हो जाए।

श्री राम की हम पर बस इतनी कृपा हो जाए,
तुम सरयू हो जाओ और हम अयोध्या हो जाएँ।

~अनुनाद/ आनन्द कनौजिया/२९.०७.२०२०