Posted in CHAUPAAL (DIL SE DIL TAK)

काशी

कुछ बेहद ही अच्छी यादें हैं जो
कभी संग मेरे बनारस में घटी हैं !
मैं अब काशी में नहीं रहता लेकिन
सुनो! पूरी काशी मुझमें रहती है।

बीएचयू कैम्पस, लिंबड़ी कॉर्नर और अस्सी
समय बीता मेरा वीटी और सेंट्रल लाइब्रेरी,
सी वी रमन, मोर्वी और लिंबड़ी ख़ूबसूरत
पर खाना ग़ज़ब जहाँ वो धनराज गिरी।

वो मशीन लैब वो ढेर सारे प्रैक्टिकल
हाई वोल्ट सर्किट के बीच मज़ाक़ के पल
पढ़ने लिखने का मज़ा था या दोस्तों के संग का
सब भूल गए पर भुला पाते नहीं वो पल!

नशा काशी का था या गोदौलिया की ठंडाई का
ठंड दिल को जो मिली वो गंगा पार की रेत का
गंगा आरती के अनुनाद से जो उपजा मुझमें आनन्द
कृपा भोले बाबा की तो आशीर्वाद संकट मोचन का।

कुछ बेहद ही अच्छी यादें हैं जो
कभी संग मेरे बनारस में घटी हैं !
मैं अब काशी में नहीं रहता लेकिन
सुनो! पूरी काशी मुझमें रहती है।

©️®️काशी/अनुनाद/आनन्द/०३.०७.२०२२

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भूल गए!

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।

उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की,
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।

सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी,
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।

इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।

गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२