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भूल गए!

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।

उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की,
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।

सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी,
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।

इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।

गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२

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अनुनादित आनन्द

चीजें पुरानी देखकर तुम जो आज मेरी मुफ़लिसी पर हंसते हो,
नए अमीर तुम पुश्तैनी खजाने की कीमत कहाँ आँक सकते हो!

शहर में हर कोई नहीं वाक़िफ़ तेरे हुनर और ऐब से आनन्द
मेरी मानें तो घर से निकलते वक़्त अच्छा दिखना ज़रूरी है।

खुद को खुदा करने को, इतना झाँक चुके हैं अपने भीतर
इतनी गंदगी, कि कोई पैमाना नहीं, टूट चुके हैं सारे मीटर!

हम यूँ ही आज लिखने बैठे, सफेद पेज को गंदा करने बैठे
अच्छा करने में दामन होते दागदार ये सबक हम लेकर उठे।

खुदा करे ये सफेद दामन मेरा भले कामों से दागदार हो जाए,
नाम बदनाम हो सही है, पर लोगों का दिन ख़ुशगवार हो जाए।

मैं तो जी रहा था अपनी धुन में कहीं और इस ब्रम्हांड में,
इस धरा को करने आया अनुनादित मैं अपने आनन्द में।

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२०.०३.२०२१

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संयोग……..मिलने का !

अचानक मुलाकात हो जाये
ऐसे संयोग अब नहीं होते क्या?

भीड़ में तुझसे आँखे मिल जाये
ऐसे मधुर योग अब नहीं होते क्या?

सुनकर मेरा नाम कोई जो पुकारे
तेरा दिल अब नहीं धड़कता क्या?

हिचकियाँ नही आती आज कल
तुमको अब हमारी याद नहीं आती क्या?

दिन में भी रहते हैं ख्वाबों में,
उन्हें रात में अब नींद नहीं आती क्या?

दोस्तों में बस उनकी बातें हो,
ऐसी महफिलें अब नहीं लगती क्या?

हमारे साथ की तलब नहीं लगती
मन मचलने की अब उम्र नहीं रही क्या?

बहुत दिन गुज़र गए बिना हाल-चाल के
तुमको हमारी फिक्र अब नहीं रही क्या?

ख्यालों में बगल से रोज गुजरते हैं तेरे
मेरे होने की तुझे अब आहट नहीं मिलती क्या?

और एक उम्र मिली थी जो बहुत तेज बीत रही है,
अकेले बीतती इस उम्र से अब डर नहीं लगता क्या?

कभी तो हमसे मिल लिया करो
मिलने को अब बहाने नहीं मिलते क्या?

लगता है बहुत दूर चले गए,
हमारे शहर अब आना नहीं होता क्या?

काश! आज अचानक तुमसे मुलाकात हो जाये
ऐ खुदा तू ऐसे संयोग अब नहीं बनाता क्या?

©️®️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०१.२०२१

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गाँव और शहर

वाइ-फाइ, कॉल्स, घण्टों और मिनटों की चहारदीवारी में कैद होने आया हूँ,
आज मैं अपने गाँव से फिर शहर को लौट आया हूँ।

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