लोग कहते हैं
कि
पैसा चलता है…
मगर
सच तो ये है
कि
लोग चलते हैं…
पैसा लेकर !
पैसा लेकर
मस्तिष्क में,
चेहरे पर,
व्यवहार में,
और
अन्त में
जेब में।
©️®️पैसा/अनुनाद/आनन्द/०३.०७.२०२२

लोग कहते हैं
कि
पैसा चलता है…
मगर
सच तो ये है
कि
लोग चलते हैं…
पैसा लेकर !
पैसा लेकर
मस्तिष्क में,
चेहरे पर,
व्यवहार में,
और
अन्त में
जेब में।
©️®️पैसा/अनुनाद/आनन्द/०३.०७.२०२२
आज तक मेरे जितने भी शुभचिन्तक मुझे मिले उन्होंने मुझे बचत करने की सलाह दी। बोले बचत किया करो, जमीन लो, घर लो, भविष्य के लिए जमा करो, बुढ़ापा संवारो आदि-आदि….! मुझे भी बात अच्छी लगती कि लोग मेरे बारे में कितना सोचते हैं और मेरे भले की बात करते हैं। मैं भी बात गाँठ बाँध लेता कि किसी दिन फुर्सत से बैठूंगा और बचत की प्लानिंग करूँगा लेकिन करता कभी नहीं।
एक दिन सुबह-सुबह पूरी हिम्मत जुटाकर मैं डायरी लेकर बैठ गया हिसाब करने। पूरे जोश में घर में ऐलान कर दिए कि आज से बचत की जाएगी और सारा हिसाब नए सिरे से होगा। ये ऐलान सिर्फ बीवी को इम्प्रेस करने के लिए किया गया लेकिन उसने भाव शून्य चेहरे से मेरी तरफ देखा और मुंह फेर कर अपने काम में लग गयी। जैसे ये बात उसके लिए कोई मायने नहीं रखती या ये बात मैं बोल रहा था तो इसलिए इसे ऐसा ही रिस्पांस मिलना था। खैर…….. मैंने आज ठान लिया था !
कुछ देर की मशक्कत के बाद सारा हिसाब जोड़ने के बाद मैंने देर तक उस हिसाब को देखा। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कौन सा खर्चा कम करूँ। मुझे ज़िन्दगी जीने की तमीज नहीं या फिर मेरी गणित कमजोर है। बीवी जी हमेशा कहती हैं कि मैं पैसे लुटाता हूँ तो हार कर बीवी को ही बुला लिया कि वही कुछ हिसाब-किताब देख ले। बीवी ने सिरे से आने से मना कर दिया कि मुझे समय नहीं है इन फालतू कामों के लिए। मैंने मिन्नत की तो वो आयी और गौर से पूरे हिसाब को देखने के बाद मुँह बनाते हुए बोली कि फालतू के तुम और फालतू का तुम्हारा हिसाब ! मुझसे कोई मतलब नहीं। और हाँ नौकरों को हटाने की सोचना मत। मैं जा रही हूँ बच्चों को तैयार करने ! तुम्हें तो कोई काम धंधा है नहीं कि मेरी ही कोई मदद कर दो। सामान्यतः मैं ऐसी लानतों के बाद उसकी मदद कर देता हूँ मगर मैंने आज बचत करने की जो ठान ली थी …… मैं अपनी जगह से टस से मस नहीं हुवा।
कुछ देर बाद ऑफिस का समय हो गया और मैं तैयार होने चल दिया। पूरा दिन दिमाग में ये उलझन बनी रही कि बचत कैसे की जाये? और अगर ये बजट सही है तो फिर बचत कैसे होगी ? क्या पूरी ज़िन्दगी ऐसे ही गुजरेगी। कमाओ और खर्च करो। कमाने के नाम पर तो एक सैलरी ही है और वो जिस गति से बढ़ रही है उससे कहीं ज्यादा तेजी से मंहगाई बढ़ रही है। ऐसे ही चला तो बचत तो छोडो, खर्चा चलाना मुश्किल होने वाला है।
पिता जी का ज्ञान था कि पैर उतने फैलाओ जितनी चादर हो। किन्तु चादर बहुत छोटी हो तो एक दिन पैर सिकोड़े-२ ऐसी हालत हो जाएगी कि पैर ही जकड़ जायेंगे और फिर पैरों के न खुलने से चलना भी मुश्किल हो जायेगा। तो….. क्या नयी चादर लेने का समय आ गया है ? या फिर पुरानी चादर में जोड़ लगाकर इसे बढ़ाने का ? दोनों में से कुछ तो करना होगा या फिर दोनों ही करने होंगे।
बहुत गुणा गणित करने के बाद समझ आया की बेटे आनन्द तुम्हें बचत की जरुरत ही नहीं है। तुम्हे जरुरत है तो पैसे कमाने की। वही पैसे, जिसे कमाना तुम्हे सिखाया ही नहीं गया। किसी ने नहीं सिखाया। परिवार से लेकर रिश्तेदार, दोस्तों से लेकर करीबियों तक ने ! किसी ने पैसा कमाना नहीं सिखाया। और जरुरत के समय लोग तुमसे उम्मीद करते हैं कि तुम पैसे से उनकी मदद करो। अबे पैसे होंगे तब तो मदद करोगे न ?
अब पता चला कि लोग मुझसे नाराज क्यों रहते हैं ? जब वो मुझसे मदद माँगते मैं उन्हें ज्ञान देता, पैसे नहीं। पिता जी को ज्ञान, भाई को ज्ञान, बहन को ज्ञान, रिश्तेदारों को ज्ञान, सबको ज्ञान। पैसे कहाँ से देता। वो तो थे ही नहीं। या फिर कहूँ कि किसी ने पैसे कभी दिए ही नहीं ! या कैसे कमाते हैं कभी बताया ही नहीं। अब सबने जिंदगी भर पढ़ना-लिखना सिखाया। खूब ज्ञान दिया। ये ज्ञान दिन दूनी रत चौगनी वृद्धि करता रहा। और अब इतना ज्यादा ज्ञान हो गया है कि कोई कैसी भी मदद माँगे उसे मुझसे बस ज्ञान मिलता है। हद तो ये है कि मैं पिता को भी मदद के रूप में बस ज्ञान ही देता हूँ।
मसला ये है कि किसी ने आपके भले की नहीं सोची। माता-पिता ने अपने संरक्षण में रखा और खूब ज्ञान और प्यार दिया। लेकिन अपनी ममता में वो कहीं भूल गए कि इस दुनिया में उनके बाद बच्चे का साथ अगर कोई देगा तो वो है ज्ञान, उनकी वसीयत और पैसा कैसे बनाते हैं इसका तरीका। बच्चे से ज्ञान लेना किसी माँ-बाप को नहीं पसन्द! और अगर हम दे-दें तो पलट कर जवाब आएगा कि बेटे हमारा बाप बनने की कोशिश न करो! माँ-बाप के अलावा और कितने आपकी तरक्की चाहते हैं ये आप बेहतर जानते हैं।
तो कुल मिलाकर यही कहना है कि बचत करने का ज्ञान देने वाले आपके शुभ-चिंतक नहीं है बल्कि वो खुद अज्ञानी हैं और उन्हें दुनिया की जानकारी ही नहीं है। वे खुद अपना जीवन जैसे-तैसे काट रहे है। उन पर तरस खाएँ और ध्यान न दें। जब पैसे आएँगे तब बचत भी हो जाएगी। आपको केवल कमाने पर ध्यान देना चाहिए। बाकी बचत कराने की योजना लिए कई सेल्स मैन, कम्पनियाँ और रिश्तेदार घूम रहे हैं बाजार में !
तो अगर आपको अपने बुढ़ापे में अपने बच्चे से प्यार के अलावा मदद के रूप में पैसे की इच्छा हो तो उसे पैसा कमाना जरूर सिखाएं और हाँ पहले खुद पैसे कमाना जरूर सीख लें।
अगर आप कोई विशेषज्ञ राय रखते हो तो कमेंट में जरूर बताएँ। अच्छा लगेगा………
और हाँ
बचत करने का ज्ञान मुझे बिलकुल न दें 😎
हाँ….. पैसे कमाने को कोई तरीका हो तो जरूर बताएँ ! ईमानदारी के….. ईमानदारी से !
©️®️बचत/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२२.१२.२०२१
“व्यक्ति की परिस्थिति कितनी ही क्यूँ न बदल जाए उसकी सोच (मानसिक ग़रीबी) वही पुरानी ही रहती है।” 🤔
गरीब आदमी भी पैसा कमाना चाहता है और अमीर आदमी भी। बस गरीब ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और अमीर बढ़ी हुयी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए। दोनों की एक ही सोच- पैसा कमाना और अधिक कमाना! बस !🧐
मतलब ग़रीबी कभी नहीं जाती चाहे व्यक्ति कितना अमीर हो जाए! मैंने कम साधनों से सम्पन्नता तक का सफ़र तय किया है और सच बताऊँ तो ग़रीबी क़भी गई ही नहीं।🧐 मैं आज भी और अधिक पैसा कमाने की कोशिश में रहता हूँ। हाल फ़िलहाल सबकी यही हालत है।🥸
असली अमीर तो वो है जिसको फिर कमाने के लिए सोचने की ज़रूरत ही न पड़े, मेहनत करना तो दूर की बात है।😜
मेरी इस गणित के हिसाब से अम्बानी/अड़ानी आज भी गरीब हैं और व्यक्तिगत रूप से हम दोनों समान और बराबरी के गरीब हैं। वो भी सम्पत्ति बढ़ाने के लिए परेशान हैं और मैं भी ! कितनी सम्पत्ति? इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता ! मैं दो-चार, दस-पचास लाख तक सीमित हूँ और वो एक-दो हज़ार करोड़। बस! 😏
सब गरीब हैं! पूरी दुनिया! कुछ अपवादों (संत आत्माओं/फ़क़ीरों) को छोड़कर! बस यहीं मेरे ख़ुश रहने की वजह है! सब एक जैसे ही हैं! कोई अंतर नहीं! एक गरीब दूसरे गरीब से क्या कॉम्पटिशन करेगा? जितना ज़्यादा धनाढ़्य मेरे सामने आता है मैं उसे उतनी ही तुच्छ नज़र से देखता हूँ 😎 हाहा 😂
लॉजिक देखिए 🤪 खुद को सांत्वना देने की !🤓
पर बात तो सही है न?
सोचिए!🧐
©️®️ग़रीबी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०५.२०२१