Posted in CHAUPAAL (DIL SE DIL TAK), SHORT STORY

सब गरीब हैं!

“व्यक्ति की परिस्थिति कितनी ही क्यूँ न बदल जाए उसकी सोच (मानसिक ग़रीबी) वही पुरानी ही रहती है।” 🤔

गरीब आदमी भी पैसा कमाना चाहता है और अमीर आदमी भी। बस गरीब ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और अमीर बढ़ी हुयी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए। दोनों की एक ही सोच- पैसा कमाना और अधिक कमाना! बस !🧐

मतलब ग़रीबी कभी नहीं जाती चाहे व्यक्ति कितना अमीर हो जाए! मैंने कम साधनों से सम्पन्नता तक का सफ़र तय किया है और सच बताऊँ तो ग़रीबी क़भी गई ही नहीं।🧐 मैं आज भी और अधिक पैसा कमाने की कोशिश में रहता हूँ। हाल फ़िलहाल सबकी यही हालत है।🥸

असली अमीर तो वो है जिसको फिर कमाने के लिए सोचने की ज़रूरत ही न पड़े, मेहनत करना तो दूर की बात है।😜

मेरी इस गणित के हिसाब से अम्बानी/अड़ानी आज भी गरीब हैं और व्यक्तिगत रूप से हम दोनों समान और बराबरी के गरीब हैं। वो भी सम्पत्ति बढ़ाने के लिए परेशान हैं और मैं भी ! कितनी सम्पत्ति? इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता ! मैं दो-चार, दस-पचास लाख तक सीमित हूँ और वो एक-दो हज़ार करोड़। बस! 😏

सब गरीब हैं! पूरी दुनिया! कुछ अपवादों (संत आत्माओं/फ़क़ीरों) को छोड़कर! बस यहीं मेरे ख़ुश रहने की वजह है! सब एक जैसे ही हैं! कोई अंतर नहीं! एक गरीब दूसरे गरीब से क्या कॉम्पटिशन करेगा? जितना ज़्यादा धनाढ़्य मेरे सामने आता है मैं उसे उतनी ही तुच्छ नज़र से देखता हूँ 😎 हाहा 😂

लॉजिक देखिए 🤪 खुद को सांत्वना देने की !🤓

पर बात तो सही है न?
सोचिए!🧐

©️®️ग़रीबी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०५.२०२१

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ज़िन्दगी तुझे करीब से देखा…

बीती इस उम्र में एक अरसा देखा
नंगे पैरों से चलकर आसमाँ देखा
साइकिल की कैंची में घुसकर मैंने
इन हाथों को स्टीयरिंग घुमाते देखा।

अनाज को खाने लायक बनाने में
होती हज़ार कोशिशों को भी देखा
जाँता-पहरुआ, मथनी से आगे बढ़
आटे-चावल का मैंने पैकेट भी देखा।

सुबह-सुबह ताल किनारे पंगत में
हमने लोगों को निपटते भी देखा
भर-दम उसी तलैया में नंगे बदन
बच्चों की टोली को नहाते भी देखा।

कंचे, खो-खो, कबड्डी, गिल्ली-डण्डा
कुश्ती करते मिट्टी में सने हुए देखा।
चप्पल काट चक्कों की गाड़ी बनाना
चौड़े में वही गाड़ी लेकर चलते देखा।

दुग्धी, खड़िया और लकड़ी की तख्ती
सेंटे की लकड़ी से लिखते हुए भी देखा
निब का पेन और चेलपौक की स्याही
पायलट पेन के लिए खुद को रोते भी देखा।

हाईस्कूल, इंटर बोर्ड के पेपर का इंतजार
पढ़ाकू लड़को की आँखों मे खौफ़ को देखा
दिन रात रगड़ कर परीक्षा खूब दिए पर
कम आए नम्बरो पर खुद को रोते भी देखा।

वो जवानी की दहलीज़ पर आकर हमने
कॉलेज काशी बी एच यू घाट का नजारा देखा,
बाबा विश्वनाथ और संकट मोचन का दुलार
इसके साथ इश्क़ की गली से गुजरता देखा।

ज़िन्दगी बेहद खूबसूरत और लाजवाब है
हमने इसके हर रूप को गंगा के पानी में देखा
इंसान मिट्टी का है बहुत मजबूत मगर देखो
दिल से होकर मजबूर इसे हमने रोते भी देखा।

थी तंगी चारों तरफ मगर कभी कोई डर नही
हमने आईने में खुद को सदा मुस्कुराते देखा
जीवन सरल करने के जब से पाए साधन सभी
कट रही डर-डर कर ज़िन्दगी को भी देखा।

रहे गन्दे-सन्दे न कोई हाइजीन का शऊर
हमने महीनों एक जीन्स को पहनते देखा
मुँह को ढककर अब पल-पल धोते हैं हाथ
हमने हर रोज पहने कपड़ों को बदलते देखा।

दिलों की दूरी तो पहले भी कम न थी
हमने लोगों को छुप कर नज़रें चुराते देखा
हे कोरोना तूने खेल बड़ा ही कमाल खेला
अब लोगों को खुल कर दूरी बनाते देखा।

डरते-घबराते फिर भी खुद को सम्हालते
तेरी क्रूरता में भी स्वयं को निखरते देखा
सीख ही लेते हैं हम हर परिस्थिति में जीना
ऐ ज़िन्दगी तुझे, हमने बेहद करीब से देखा।

बीती उम्र के इस छोटे सफर में हमने
ऐ ज़िन्दगी तुझे, बेहद करीब से देखा।

©️®️ज़िन्दगी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२३.०५.२०२१

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जीवन और अभियान्त्रिकी

जीवन को लेकर बड़ी-२ बातें करने वाले कभी-२ जीवन की आधारभूत बातों को भूल जाते हैं। जबकि इन आधारभूत बातों का पालन करके ही वे बड़ी-२ बात कर रहे होते हैं। लेकिन नियम किसी को नहीं भूलते, वो सब पर बराबर से लागू होते हैं।

विद्युत अभियांत्रिकी के विद्यार्थी लेन्ज़ के नियम को ही देख लें। ये अभियांत्रिकी, विज्ञान, कुछ विशेष उत्पन्न करके कुछ नया नहीं बताएँ हैं, बस घर-गृहस्थी और समाज से निकले व्यवहार के सारांश को हम पर टोप दिएँ हैं और हम पढ़ाई काल से लेकर आज तक यही समझते रहे कि हम कुछ विशेष पढ़ लिए हैं और दुनिया से अलग हैं। सारी पढ़ी हुई परिभाषाएँ, नियम, कायदे, कानून तो हम अब चरितार्थ होते देख रहें हैं और असली में समझ तो अब आया है।

“ज़िन्दगी एक इंडक्शन मोटर है।” ज़िन्दगी की इससे अच्छी, सटीक, और कम शब्दों में पूर्णतः व्यवहारिक परिभाषा और कोई नहीं दे सकता। इसका मुझे घमंड भी है। ज़िन्दगी को परफेक्ट करना है तो एक बाह्य बल लगाकर इसे सिंक्रोनस मोटर भी बना सकते हैं। और फिर गति में थोड़ा सा परिवर्तन कर आप इसे जनरेटर और मोटर दोनों की भाँति प्रयोग कर सकते हैं। मतलब जब कमजोर पड़ें तो समाज से लें और मजबूत हो जाएँ तो समाज को वापस कर दें। अन्यथा की स्थिति में हर व्यक्ति इंडक्शन मोटर ही है।

“इंडक्शन मोटर से सिंक्रोनस मोटर में खुद को बदल लेना ही सफलता है। बस……..!”

आज का ज्ञान इतना ही! आगे इसका विश्लेषण जारी रहेगा………..

नोट: जो विद्युत अभियन्ता समाज को नहीं समझ पाते और अभियन्ता होने के दम्भ में ही रहते हैं उनके लिए ये लेख विशेष रूप से समर्पित। समय रहते समझना चाहें तो समझ लें अन्यथा ज़िन्दगी समझाएगी ही! वो भी अपनी लाठी से।
हा हा ….😁😎

अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२७.०१.२०२१

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साथ …

बढ़ती उम्र का देखो क्या अजब फलसफा है,
साथ छोड़कर निकल रहे हैं साथ चलने वाले।

वादा था कि हम मिलते रहेंगें हज़ार कोशिशें करके,
और अब देखो कि सारी कोशिश बहाने खोजने की हो रही।

तुम्हारे लिए तो ये कुछ पल, दिन, महीने ही गुजरें है,
और यहाँ तुम्हारे बिन हमारी तो सदियाँ गुज़र गयीं।

एक मासूम सूरत थी बिल्कुल भोली सी, हाँ तेरी ही तो थी,
तेरे बिछड़ने फिर न मिलने से देखो आज भी बिल्कुल वैसी ही है।

बढ़ती उम्र का भी नही हुवा कोई असर आज तक देखो,
मेरे ख़्यालों में तेरा चेहरा आज भी पहले जैसा है।

एक ख्वाहिश थी साथ जीने-मरने की और अब कमाल तो देखो,
न हो मुलाकात उनसे अब हम इसकी दुवा दिन-रात करते हैं।

उम्र ही तो काटनी है, कट रही है, कट ही जाएगी,
साथ तेरा हो या तेरी यादों का, नशा एक बराबर है।

अनुनाद/यादों का आनन्द/२३.१२.२०२०

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बालकनी

लगभग आठ साल से रह रहा हूँ इस सरकारी घर में ! दो बालकनी हैं इस घर में। एक आगे और एक पीछे। ये पीछे वाली बालकनी है। किन्तु ये बालकनी इतनी सुंदर और सुकून की जगह हो सकती है अब जाकर पता लगा! कुछ ज़्यादा अन्तर नही है बस अब मुख्यालय से सम्बद्ध हूँ और इस बालकनी में जाने का समय मिल जाता है। वरना जब तक फ़ील्ड में था तब तक मुश्किल से आठ साल में आठ बार गया हूँगा इस बालकनी में। अब तो सुबह और शाम दोनों इसी बालकनी में बीतती हैं।

एक़ चीज़ तो साफ़ है कि ख़ुद को समय देना बेहद ज़रूरी है वरना लाख ख़ूबसूरत चीजें होंगी आपके पास किन्तु उनके साथ समय बिताने का मौक़ा न हो तो सब व्यर्थ! व्यस्त दिमाग़ कभी भी सृजनात्मक नहीं सोच सकता और न ही आनन्द ले सकता है।

मुख्यालय की तैनाती ने जीवन को फिर से खँगालने का समय दिया है। एक बार फिर से नयी शुरुआत! हर एक पल को भरपूर जीने का मौक़ा! नज़रिया बदलने का मौक़ा!

वैसे ये बालकनी तुम्हारे साथ अकेले बैठने को तैयार है 😉 बस चले आओ ! कुछ समय निकाल कर ! बहुत बातें हैं करने को ! तुमसे……तुम्हारे विषय में! शिकायतें भी हैं ! दूर तो नहीं हों पाएँगी मगर कह देंगे! दिल हल्का कर लेंगे! लड़ भी लेंगे! बस चले आओ ……

©️अनुनाद/ सम्बद्ध आनन्द/ १९.११.२०२०