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राम राज्य…….!

०५ अगस्त २०१९ दिन बुधवार,
तिथि ये कोई साधारण नहीं,
चेहरे आज ये जो शांत दिख रहे,
इनमें छुपा वर्षों का संघर्ष कहीं।

इतिहास तो हमने बहुत पढ़ा था,
आज आँखों से बनते देख रहा हूँ,
गर्व का क्षण है और खुश-किस्मती मेरी,
कीर्तिमान का शिलान्यास देख रहा हूँ।

राम नाम में ही छिपी,
न जाने कितनों की दुनिया,
चेहरे सबके सूखे थे,
प्यासी थी सबकी अँखियाँ।

जिस अयोध्या प्रभु जन्म लिए,
जिस घर भरी किलकारियाँ,
रूप सुहावन राम लला का
उनमें में बसती थी सारी खुशियाँ।

ये कैसा दुर्भाग्य हमारा था,
प्रभु से छिना उनका घर-द्वारा था,
क्षीण हुवा गौरव कौशलपुरी का,
उजड़ा भक्तों का संसार सारा था।

चहुँ ओर जब राम राज्य था,
कहते हैं सब नर में राम बसते थे,
सभी दिशाओं में थी सम्पन्नता
सुना है घी के दिए ही जलते थे।

अब जब राम लला फिर से,
विराजेंगे अपने घर आँगन,
प्रभु राम की कृपा से देखो,
पूरा देश हुवा है मस्त मगन।

गलत हुवा था या अब सही हुवा,
मैं इतिहास नहीं अब खोदूँगा,
राम राज्य की जो है कल्पना वो,
आये धरातल पर बस यही चाहूँगा।

बहुत हो गया द्वंद्व दो पक्षों में.
अब न शेष कोई विषमता हो,
प्रभु भारत देश में अब तो बस,
हिन्दू मुस्लिम में सम रसता हो।

हो जाएँ ख़त्म सारे भेद-भाव,
न ऊँच-नीच न कोई जात-पात,
समान शिक्षा और सबको रोजगार,
हो देश की उन्नति की बात।

सबका साथ सबका विकास हो,
समानता, सम्पन्नता ही हो सर्वस्व,
जगदगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हो,
स्थापित हो फिर से भारत का वर्चस्व।

सियावर राम चंद्र की जय !

सबके राम, सबमें राम !

~अनुनाद/ आनन्द कनौजिया/०५.०८.२०२०

राम लला
निमन्त्रण पत्र

भूमि पूजन

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दरबारी कवि ;)

नौकरी में आया ही था….. सरकारी नौकरी ! वो भी सीधे पब्लिक से जुडी हुई। जनता से सीधा संवाद। शब्दों को सम्भाल कर, सामने खड़े व्यक्ति की भाव भंगिमा देखते हुए, एक ही काम के लिए अलग-२ व्यक्ति से बिलकुल अलग बात और भिन्न फेशियल एक्सप्रेशन के साथ प्रस्तुत करने की कला मैंने यहीं सीखी। क्या काम करता हूँ ये नहीं समझा सकता और न ही बता सकता हूँ 🙂 खैर…….. ! आगे बढ़ते हैं ! नौकरी में मैंने अधिकारी की इकाई पर ज्वाइन किया। सो कोई भी समस्या मुझ तक पहले आती थी। एक दिन कार्यालय में बैठा था. नयी नौकरी के एक या दो महीने हुए होंगे! बधाइयों का दौर अभी चल रहा था। घमंड, गर्व और ख़ुशी की कई मुद्राओं में एक साथ रहता था। मैं अपनी कुर्सी पर बैठा अपना काम निपटा रहा था तभी एक वृद्ध व्यक्ति का कार्यालय में प्रवेश हुवा। आते ही बोल पड़े – वाह! अतिउत्तम, इतनी छोटी उम्र में अधिकारी। मैंने अपने जीवन में बहुत कम ही देखा। मजा आ गया। अच्छा लगता है आप जैसी मेधा देखकर। लेकिन एक बात बोलूंगा साहब! आपको आईएएस की तैयारी करनी थी। आपने अपने साथ अन्याय किया। एक बेहद ही कम समय अन्तराल में वह सज्जन न जाने क्या क्या बोल गए। मुझे सम्भलने का मौका भी नहीं दिए। प्रशंसा की इतनी पंक्तियाँ सुनकर मेरा प्रोसेसर हैंग हो गया। किस पंक्ति को प्रोसेस करूँ और किस पर खुश होऊं। प्रत्येक पंक्ति पर इतनी जल्दी-२ खुश कैसे हुवा जाये। थोड़ा समय तो मिलना चाहिए। मैं इस सबमे इतना मंत्र मुग्ध था कि तब तक वो सज्जन एक कागज़ निकाल कर सामने रख दिए और बोले सर, इस पर एक हस्ताक्षर चाहिए आपके ! छोटी सी चिड़िया बिठा दीजिये! हम भी बिना कुछ सोचे समझे कलम निकाल लिए कि लाओ ये तो मेरे बाएँ हाथ का काम है! आखिर मैं अधिकारी जो हूँ। हस्ताक्षर लगभग हो ही गए थे कि मेरे जे० ई० ने मुझे टोक दिया! सर रुकिए! और कागज़ ले लिया। बुरा तो बहुत लगा लेकिन उनकी उम्र और अनुभव देखकर शांत हो गया। बाद में पता चला कि उन सज्जन के यहाँ चोरी पकड़ी गयी थी और मेरे हस्ताक्षर लेकर बचना चाह रहे थे। बच गया मैं उस दिन!


शब्दों के प्रभाव को कमतर नहीं आँका जा सकता। मेरा अनुभव यही कहता है। लाख आपने डिग्रियां हासिल की हों, लेकिन शब्दों के प्रयोग की कला नहीं सीखी तो मान लीजिये आप चूतिये हैं ! शुरुवात के कुछ सालों को छोड़ दूँ तो मेरी नौकरी भी इसी की वजह से आसानी से चल रही है। बड़े-२ विद्वानों ने भी शब्दों के प्रयोग से ही महानता प्राप्त की है। इतिहास गवाह है। उठाकर देख लीजिये कोई भी पुस्तक। अब कुछ लोग इस कला को तेल लगाना भी कहते हैं। कहने दीजिये। बेचारे हैं वो लोग। इस कला से वंचित हैं…….. कुछ तो बोलेंगे ही। सबसे ज्यादा इस कला में माहिर होते थे दरबारी कवि। किसी एक का नाम नहीं लूँगा। प्रत्येक राजा के दरबार में एक कवि तो होता ही था जिसे दरबारी कवि का दर्जा प्राप्त होता था। राजा के सम्मान में एक से एक कसीदे पढ़ा करता था। बहादुरी पर कवितायें लिखा करता था। जनता में प्रचार-प्रसार किया जाता था इन कविताओं का। जनता के मन में राजा को महान बनाने में इन रचनाओं का खासा योगदान होता था। इसीलिए दरबारी कवि का महत्व सर्वोपरि होता था। और इसी महानता की छवि की वजह से राजा को राज-काज चलने में आसानी होती थी। अब आप दरबारी कवि को तेलू तो नहीं बुला सकते 🙂


दौर बदलता है किन्तु नियम नहीं बदलते। बस रूप बदलता है। आज भी दरबारी कवि मौजूद हैं। किसी व्यक्ति को भगवान तुल्य  महान बनाने के लिए उसकी कमियों को छुपाना तो पड़ता ही है और गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर अलंकार में डुबो कर छंदों-चौपाइयों में लपेटकर परोसना पड़ता है। कमियाँ तो सबमें हैं लेकिन गिनी कमजोर व्यक्ति की ही जाती हैं। बड़े लोगों की नहीं! कभी नहीं। आज  के ज़माने में भी व्यक्ति को प्रभु बनाने की कला क्षीण नहीं हुयी है। २०१४ के बाद से तो इसका उत्तरोत्तर विकास ही हुआ है। विकास शब्द को गंभीरता से न लें 😉 हाँ…….. लेकिन दरबारी कवियों का रूप बदल गया है। आज कल ये काम न्यूज़ चैनल वाले करते हैं। प्रत्येक न्यूज़ चैनल वाला दूसरे न्यूज़ चैनल वाले से आगे निकले की होड़ में तो कभी-२ ऐसा कुछ भी बोल जाता है की कानों को विश्वास ही नहीं होता। मुझे याद है कि जब बचपन में रामायण और श्री कृष्णा देखते थे तो लगता था कि कोई समस्या नहीं होगी। प्रभु आएंगे और हाथ उठा कर दिखाएंगे, एक दिव्या रौशनी होगी और सब ठीक। मैं तब देश के नेताओं को भी इसी राम और कृष्ण भगवान की कैटेगरी में रखता था। मुझे याद है कि टीवी पर एक बार कोई नेता बाढ़ की स्थिति का जायजा हवाई जहाज से कर रहे थे। मैंने पिता जी से कहा कि नेता जी हाथ दिखाकर सब सही क्यों नहीं कर देते तो पिता जी हंस पड़े। बिलकुल ऐसी ही हंसी मुझे न्यूज़ चैनल वालों पर भी आती है। किसी देश को धूल चटानी हो तो ये चैनल वाले भारत के प्रधान मंत्री की एक बेहद ही गंभीर भाव भंगिमा वाली फोटू दिखा देंगे कि मानो ये वही बाप हों जो गुस्से में बैठे हैं और दुश्मन देश वो लौंडा है जिसने आज गलती की है और अब सुताई होगी ! हाहा….. सोचकर ही हंसी आती है। मैं तो उस न्यूज़ एंकर के बारे में सोचता हूँ कि पढ़ा लिखा तो वो होगा ही और तब वो ऐसे चूतियापे कर रहा है, वो अपनी हंसी कैसे रोकता होगा। अरे भाई दरबारी कवि बनो……. ठीक है ! मौके की जरुरत है। लेकिन बकचोदी थोड़ा तो कम करो। हंसा-हंसा कर मारने का इरादा है क्या ?


देश की सेना पर नाज है और गर्व भी। बचपन में मार्च पास करने में सीना चौड़ा हो जाता था। कलाम साहब के बारे में सुनता था रोंगटे खड़े हो जाते थे। तिरंगा पिक्चर आज भी पसंदीदा है। हाँ फ्यूज कंडक्टर वाली थ्योरी बेहद ही बेसिक थ्योरी निकली। लेकिन कोई बात नहीं। मिसाइल उड़ान नहीं भर पाया और और देश बच गया। फिलहाल प्रत्येक देश की सेना को अत्याधुनिक हथियारों की जरुरत पड़ती है। मजबूत होना अच्छी बात है। सीमाएं सुरक्षित होंगी तो ही हम प्रगति के बारे में सोच पाएँगे। अब तो राफेल भी आ गया ! अरे ! न! न! आप जोश में खड़े क्यों हो गए ? लगता है टीवी वालों का असर अभी बाकी है ! कोई न ! बैठ जाइये। वरना चीन के राष्ट्रपति को पसीना आ जायेगा और पाकिस्तान को हार्ट अटैक ! बैठे बिठाये दो देश नेस्त-नाबूत हो जायेंगे। आपसे बस इतना अनुरोध है कि चौड़े होकर किसी को गरिया मत दीजियेगा। टीवी और सोशल मीडिया पर बोलना अलग है और मोहल्ले में बाहर निकल कर बोलना अलग। किसी का दिमाग ख़राब हुआ तो पेले भी जा सकते हैं। मोहल्ले में ही चीन और पाकिस्तान सीमा जैसे हालात न बनाएँ। 


राम मंदिर बन ही रहा है। वैसे तो राम जी सदैव हमारे साथ थे किन्तु भव्यता अब अलग ही होगी। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप पर राम जी का आशीर्वाद बरसे और आपके अंदर का दरबारी कवि जागृत हो जाये और आपको भी कोई मेरे जैसा अधिकारी मिल जाये तो आपका काम बन जाये। 


राम जी इस बार किसी डॉक्टर या शोध शास्त्री के रूप में जन्म लीजिये और इस कोरोना की वैक्सीन खोज दीजिये। घर में बैठे-२ कलह बढ़ रहा है वरना राम राज्य बाद में आएगा पहले घर में महाभारत हो जाएगी। बस ज्यादा कुछ नहीं चाहिए आपसे। देश तो राफेल के हाथों में सुरक्षित है और दरबारी कवियों की वजह से हम महानता के उच्चतम शिखर पर मंत्रमुग्ध होकर अपनी समस्याएँ वैसे भी भूल चुके हैं। इस कोरोना के बुरे दौर में मनोरंजन की कमी नहीं है। 


जोर से बोलिये अयोध्या पति श्री राम चंद्र जी की जय ! प्रभु आपकी कृपा सब पर हो। 


~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.०८.२०२०