कुछ मैंने सीखा भी और कुछ नहीं भी कहीं मिला सम्मान तो कहीं हमारा कटा भी जीवन के इस सफ़र में हे गुरु आपको हमने याद किये अच्छे में और बुरे में भी।
हे गुरु इस जग में तेरा कोई निश्चित रूप नहीं, तू कभी मेरा अध्यापक भी तो कभी चपरासी भी, पहली गुरु माँ थी तो हमने सीखा देना लार-दुलार और दुनियादारी सीखने में काम आयी पापा की चप्पल भी।
अपने हक़ के लिए लड़ना सीखा भाई-बहनों से अनज़ानो पर प्यार लुटाने को मिले कई मित्र भी जवाँ हुए तो हमको लगी थी एक मुस्कान बड़ी प्यारी जीवन के रंग देखे हमने प्यार में खाकर धोखा भी।
गणित विज्ञान कला हिंदी उर्दू के जाने ढेरों शब्द भी डेटा ट्रांसफ़र को काफ़ी होते देखो सिर्फ़ इशारे भी पढ़ा लिखा खूब सारा इस दुनिया को समझाने को हुए जब समझदार तो हमने सीखा चुप रहना भी।
इस दुनिया की रीति अजब है अच्छी बातें अच्छी लगती सिर्फ़ किताबों में पढ़ लिख कर जब इस खेल में आये तो हुआ संदेह कि मैंने कुछ सीखा भी? साधी चुप्पी और शान्त खड़ा होकर मैंने ग़ौर बहुत फ़रमाया इस दुनिया में जीने को देखो, आना चाहिए रंग बदलना भी।
तीन दशक मैंने जिए, जी ली लगभग आधी ज़िन्दगी गुरु दिवस पर बधाई देने को आज, मैं हूँ बहुत आतुर भी इस जीवन में मिले हम सबको कई गुरु और उन सबसे हमने सीखा चलना गिरना रोना और सम्भालना भी।
किसे मानूँ अपना गुरु और किसे नहीं, किसे रखूँ किसके पहले बहुत विचार के बाद पाया की गुरुओं की कतार में ये जीवन भी। हे जीवन गुरु तुम सदा अपनी कृपा हम पर बनायें रखना ठोकर तो देना ही मगर हमें प्यार से रहते सहलाना भी।
मैं तुम्हारे साथ हूँ, बोलने से सिर्फ साथ नहीं होता। साथ होता है साथ बैठने से घंटो, बेवजह! इतना कि किसी भी विषय पर दोनों की अलग-२ राय मिलकर एक हो जाय।
और फिर दोनों को दोनों की चिंता करने की “कोशिश” न करनी पड़े। बोलने की जरूरत न पड़े। कोई फॉर्मेलिटी या संकोच न रहे। सही मायने में साथ होता है साथ बैठने से!
बीती इस उम्र में एक अरसा देखा नंगे पैरों से चलकर आसमाँ देखा साइकिल की कैंची में घुसकर मैंने इन हाथों को स्टीयरिंग घुमाते देखा।
अनाज को खाने लायक बनाने में होती हज़ार कोशिशों को भी देखा जाँता-पहरुआ, मथनी से आगे बढ़ आटे-चावल का मैंने पैकेट भी देखा।
सुबह-सुबह ताल किनारे पंगत में हमने लोगों को निपटते भी देखा भर-दम उसी तलैया में नंगे बदन बच्चों की टोली को नहाते भी देखा।
कंचे, खो-खो, कबड्डी, गिल्ली-डण्डा कुश्ती करते मिट्टी में सने हुए देखा। चप्पल काट चक्कों की गाड़ी बनाना चौड़े में वही गाड़ी लेकर चलते देखा।
दुग्धी, खड़िया और लकड़ी की तख्ती सेंटे की लकड़ी से लिखते हुए भी देखा निब का पेन और चेलपौक की स्याही पायलट पेन के लिए खुद को रोते भी देखा।
हाईस्कूल, इंटर बोर्ड के पेपर का इंतजार पढ़ाकू लड़को की आँखों मे खौफ़ को देखा दिन रात रगड़ कर परीक्षा खूब दिए पर कम आए नम्बरो पर खुद को रोते भी देखा।
वो जवानी की दहलीज़ पर आकर हमने कॉलेज काशी बी एच यू घाट का नजारा देखा, बाबा विश्वनाथ और संकट मोचन का दुलार इसके साथ इश्क़ की गली से गुजरता देखा।
ज़िन्दगी बेहद खूबसूरत और लाजवाब है हमने इसके हर रूप को गंगा के पानी में देखा इंसान मिट्टी का है बहुत मजबूत मगर देखो दिल से होकर मजबूर इसे हमने रोते भी देखा।
थी तंगी चारों तरफ मगर कभी कोई डर नही हमने आईने में खुद को सदा मुस्कुराते देखा जीवन सरल करने के जब से पाए साधन सभी कट रही डर-डर कर ज़िन्दगी को भी देखा।
रहे गन्दे-सन्दे न कोई हाइजीन का शऊर हमने महीनों एक जीन्स को पहनते देखा मुँह को ढककर अब पल-पल धोते हैं हाथ हमने हर रोज पहने कपड़ों को बदलते देखा।
दिलों की दूरी तो पहले भी कम न थी हमने लोगों को छुप कर नज़रें चुराते देखा हे कोरोना तूने खेल बड़ा ही कमाल खेला अब लोगों को खुल कर दूरी बनाते देखा।
डरते-घबराते फिर भी खुद को सम्हालते तेरी क्रूरता में भी स्वयं को निखरते देखा सीख ही लेते हैं हम हर परिस्थिति में जीना ऐ ज़िन्दगी तुझे, हमने बेहद करीब से देखा।
बीती उम्र के इस छोटे सफर में हमने ऐ ज़िन्दगी तुझे, बेहद करीब से देखा।
कुछ अच्छे लोगों का इतनी जल्दी, ऊपर चले जाना भी अच्छा हुआ। माना कि जमीं की खबर आसमां में पहुँचाने का ये तरीका पुराना हुआ।।
तकनीकें नई खूब हैं सन्देश भेजने की मगर, वो अपने खुदा का अंदाज जरा पुराना ठहरा। दुवाएँ कुबूल करता है देखो वो खुद सामने से वो खुदा भी तो अपने बंदों का दीवाना ठहरा।।
उम्मीद है मेरे साथी तू है वहाँ ऊपर कि अब सब कुछ सम्भाल लेगा। बरसेगी रहमत वहाँ तेरे होने से खुदा का तू, थोड़ा हाथ बँटा लेगा।।
दुःख है मुझे तेरे जाने और हम दोनों के अकेले हो जाने का। मत घबराना तू वहाँ कि कौन सा मेरा रिश्ता इस जमीं से जमाने का।।
(कोरोना काल मे साथ छोड़ कर जाने वाले कुछ महान शख्शियतों को समर्पित।)