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गुटखा धर्म

 कुछ तीन या चार बज रहे होंगे! ये अगस्त की साँझ थी ।  मैं बारा बिरवा (आलमबाग नहरिया) से थोडा सा आगे पिकादिली होटल वाले तिराहे पर, जो कि लखनऊ में है, पर उन्नाव की बस के लिए इन्तेजार कर रहा था। कई बसें निकल चुकी थी पर कोई रुकने का नाम न ले रहीं थी । भीड़ और मोटर गाड़ियों के कोलाहल में एक जगह खड़ा होना मुश्किल हो रहा था । बड़ी झुंझलाहट हो रही थी कि न जाने बस यहाँ रुकेगी भी या नहीं । मैंने मन बना लिया कि चलो आलमबाग वापस चलते हैं और वहीँ से कोई बस पकड़ लेंगें ।
                  तभी सामने से एक बहराइच डिपो की बस आती हुयी दिखी। मैंने बड़े अनमने अंदाज़ से बस को हाथ दिखाया और मेरी किस्मत…… कि, बस रुक गयी। मैं लपक कर बस में चढ़ा तो बस की हालत देखकर लगा कि  क्यूँ रुकी ये बस ? और क्यूँ चढ़ा मैं इसमें ! पूरी बस यूँ हिल रही थी की अभी सारे पहिये निकल जायेंगे और सब का सत्यानाश हो जायेगा । बस के खड़ -खड़ाने की आवाज इतनी तेज थी कि आप अपने फ़ोन पर म्युजिक  का लुत्फ़ भी नहीं उठा सकते थे जो  कि आज कल की यात्राओं का एक अहम् हिस्सा होता है । मैं गुस्से में कंडक्टर से दो सीट पीछे वाली सीट पर बैठ गया | बस में मुझको लेकर गिनती के 5 लोग ही थे, जिनमे ड्राईवर और कंडक्टर भी शामिल थे। जहाँ तक मुझे याद है कि एक व्यक्ति आगे ड्राईवर के पास स्टाफ सीट पर बैठा था और एक ड्राईवर कंडक्टर की सीट की बगल वाली पंक्ति वाली सीट पर बैठा होगा । देखने से ऐसा लग रहा था की सभी एक दूसरे से अंजान हैं और इस सफ़र के अलावा उन सबमे कोई और रिश्ता नहीं है । 
            मैंने चिढ़े हुए अंदाज में धीरे से कंडक्टर की तरफ पैसे बढाकर टिकिट ले लिया और फिर खिड़की से रास्तों को निहारने लगा । कुछ पाँच मिनट बाद कंडक्टर के बगल वाली सीट की पंक्ति में बैठे हुए आदमी ने कंडक्टर की तरफ हाथ बढाया और थोड़े से संकोच के साथ नजरों से एक प्रश्न किया !  उसके हाथ में कुछ था, कंडक्टर ने एक बारगी तो उस आदमी को ध्यान से देखा और कुछ सोचकर मुस्कराया और अगले ही पल उसने उस व्यक्ति के हाथ से उस चीज को उठाकर धीरे से अपने होंठों और दांतों के बीच दबा लिया । इसके बाद ही उस व्यक्ति ने भी बाकी  बची हुयी चीज को बिलकुल उसी अंदाज में  मुंह में रख लिया । आप लोग तो जान ही गये होंगे कि ये  चीज कुछ और नहीं केवल खैनी थी जिसे वो व्यक्ति घंटो से अपनी हथेली पर मसल रहा था । 
             तभी मेरे दिमाग में एक बात कौंधी कि हम सभी जानते हैं कि सफ़र में अंजान व्यक्ति से कुछ नहीं लेना चाहिए और अपने बच्चों को भी यही सिखाते  हैं । फिर भी दोनों ने बिना किसी डर के अपने जान -माल की परवाह न करते हुए नशे की इस चीज को आसानी से स्वीकार कर लिया ।  दूसरी बात ये कि उन दोनों व्यक्तियों में दोनों एक दूसरे  के बारे में कुछ भी न जानते थे और न कि  वो किस जाति, धर्म, संप्रदाय  के हैं, फिर भी एक ने हाथ बढाया और दूसरे  ने आसानी से स्वीकार कर लिया । यहाँ तो ऊंच-नीच , छुआ-छूत की बात भी नहीं आयीं और न कि वो किस वर्ग से सम्बन्ध रखता है- आरक्षित या अनारक्षित,जिसको लेकर अज कल हमारे समाज में काफी बहस हो रही है । भेद-भाव और सामाजिक सुरक्षा का प्रश्न तो यहाँ आया ही नहीं । मैं थोडा हतप्रभ हुआ और खुश भी कि मुझे हमारे समाज में फैले उपरोक्त वर्णित सभी बुराइयों से निपटने की एक कुंजी मिल गयी थी। जो विचार मेरे दिमाग में आया, अगर उसे एक मत से अपना लिया जाये तो हमारा समाज उत्कृष्टता के एक ऐसे शिखर पर पहुँच जायेगा, जहाँ पहुचने की अभी हम केवल कल्पना करते हैं ।
               आखिर नशे की इस चीज गुटखा ने मुझे एक ऐसे धर्म के बारे में बताया की जिसका पालन करें तो हमारा समाज एक खुशहाल, सौहाद्र पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है और प्रगति के पथ पर सबके साथ हाथ से हाथ मिलकर आगे बढ़ सकता है। सिर्फ हमें इस गुटखे से होने वाले नुक्सान से बचना होगा  और इसके खाने से पहले होने वाले व्यवहार की अच्छाइयों को ग्रहण करना होगा। तो आइये हम सब एक सुर में कहते हैं की हम सबका एक ही धर्म – गुटखा धर्म । 
इस बात पर मुझे स्वर्गीय हरिवंशराय  बच्चन की उनकी सुप्रसिद्ध कविता- मधुशाला की एक पंक्ति याद आती है कि-
मंदिर मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला………….. J

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Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

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