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" बाढ़…………….! "

प्रति दिन की तरह अपने कार्यालय में, करीब १५ लोगों से घिरा, कंप्यूटर पर नजरे गड़ाए हुए, लोगों की समस्याएं सुलझाने में व्यस्त ! अचानक से मेरे कार्यालय सहायक ने कुछ पूछा, जिस पर सोचते हुए मैं बोला कि कल करते हैं इसे ! तो कार्यालय सहायक ने कहा कि कल तो संडे है सर ! संडे……… कल संडे है ? अच्छा ! और एक बार को मैं कहीं खो सा  गया, फिर अपनी तन्द्रा से बाहर आते हुए मैंने अपने कार्यालय में जमा भीड़ को जल्दी से निपटाया।

                                                   जैसे ही थोड़ा खाली समय मिला तो मैं सोचने लगा कि ये पिछला संडे तो कल ही ख़त्म हुआ था न ! और मंडे आया था । इस हफ्ते की शुरुवात हुयी थी ।  इतनी जल्दी इस बीच के ६ दिन बीत गए और कल फिर संडे। मन में एक प्रश्न आया कि समय को पंख लग गया है क्या कि बस उड़े ही जा रहा है? कब सुबह होती है और फिर शाम हो जाती है, कब सोमवार आता है और कब शनिवार, कब हफ्ता शुरू होता है और कब ख़त्म।  इसी तरह दिन, महीने , और साल! सब बस निकलते जा रहे हैं । 
                                                    जिंदगी इतनी व्यस्त है, दिन भर में इतने काम होते हैं, इतनी घटनाये होती हैं , कि आज कौन सा दिन है ! इससे भी फर्क नहीं पड़ता। हर दिन एक जैसा – कुछ न कुछ काम है, सबको निपटना है । कभी-कभी तो ऐसा होता है कि सुबह को किया हुआ काम शाम तक याद ही नहीं रहता और जब हम उस काम के बारे में सोचते हैं तो लगत है कि जैसे ये तो कई दिन पहले किया हो। कुछ महीने पहली की घटना तो सदियों पुरानी लगती हैं । 
                                                     मैं थोड़ा और अतीत की गहराईयों में उतरा और याद करने लगा कि बचपन में दिन कितने बड़े होते थे।  सुबह, दोपहर, शाम और रात होती थी।  हफ्ते के सातों दिनों का कुछ मतलब होता था । संडे का बेसब्री से इंतजार होता था। महीने और साल के बारे में तो सोचते ही न थे । शायद ये समय का वो अंतराल होते थे जो कि काफी बड़े होते थे और हमारे छोटे से मस्तिष्क में ये समा ही नहीं सकते थे । दिवाली, होली, नए साल, गर्मियों की छुट्टी का इन्तजार होता था ।  इनके लिए प्लानिंग होती थी , तैयारियां होती थी ।
 
                                                     पर अब तो सुबह के बाद केवल रात होती है । किसी विशेष दिन का कोई मतलब नहीं होता । ये विशेष दिन आते हैं और चलें जाते हैं, हम केवल काम करते हैं या काम की बात करते रहते हैं । पहले किसी खास दिन को मानाने की तैयारियां होती थी, और अब किसी खास दिन को निभाने की तैयारियां होती हैं, वो भी इतने व्यस्त रहते हुए कि उस दिन का कोई खास एहसास हो ही नहीं पता । समय बदल गया है, छोटे से बड़े जो हो गए हैं हम । जिम्मेदारियां आ गयी हैं । अब हम, हम नहीं रहे । अब तो लोग हमें जैसा देखना चाहते हैं , हम वैसे रहते हैं । हमारी कोई इच्छा नहीं होती, हमसे जुड़े लोगों की इच्छाएं ही हमारी इच्छाएं होती हैं ।  
 
                                                    जैसे जब किसी नदी में बाढ़ आती है और उसमे सब कुछ बह जाता है, उसमे डूब रहा इंसान बेबस होता है । वह केवल हाथ पैर मारकर बचने की कोशिश करता है और बहता जाता है । सोचता रहता है कि कहीं तो ये बढ़ ख़त्म हो । कहीं तो ठहरने का मौका मिले, ताकि दम लिया जा सके । आराम कर सकूँ । लेकिन बाढ़ ख़त्म होने का नाम नहीं लेती और सब कुछ बहा ले जाती है । और जब बाढ़ ख़त्म होती है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है । सब कुछ नष्ट हो चुका होता है । अवशेष ही बचते हैं। सब कुछ वीराना हो जाता है। 

                                                     और इस समय भी बिलकुल ऐसा हो रहा है । समय  रुपी नदी में बाढ़ आई हुयी है, जिसमे हम बहे जा रहे हैं । कहीं खाली समय रुपी किनारा नहीं मिलता कि वहां रुक कर दम भरा जा सके, कुछ सोचा जा सके । और अपनों की इच्छाए हैं जो एक भंवर या एक लहर की तरह आती हैं, रह – रह कर चोट करती हैं
दुहरी मार की तरह है ये । बह भी रहे  हैं और थपेड़े भी खा रहे हैं । पता नहीं ये बढ़ कहाँ ले जाएगी! कहीं कोई छोर नहीं दिखता……………………………….. दूर-दूर तक ।
यहाँ पर अपनी ही कुछ लाइनें गुनगुनाने को जी चाह रहा है, कि
हैं जिंदगी व्यस्त बहुत !
पूरे करने हैं काम बहुत !
चाहता हूँ मैं सोना क्यूँकि,
थक गया हूँ मैं बहुत!
बनकर ख्वाब नींद में मेरे,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !
तो क्या बात हो !

 

Author:

Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

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