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शर्मा जी का लौंडा ……

आवारा……..नालायक…..निकट्ठू……… हरामखोर…… चूतिये……..  कुछ सीखो शर्मा जी के लौंडे से।
पिता जी ने सुबह सुबह अपने बेटे को गरियाते हुए शर्मा जी के लौंडे से सीखने की नसीहत देकर दिन की शुरुवात की। चीखने की आवाज मुहल्ले वालों ने भी सुनी । कुछ ने रोज का ड्रामा समझा और कुछ ने मजाक में उड़ा दिया। बात यहीं खत्म नही हुई , बल्कि इस घटना से मुहल्ले में पिता की डांट के बाद बेटे की एक इमेज बन गयी। ऊपर दी गयी गालियों के अनुसार हर किसी व्यक्ति ने अपनी अपनी तस्वीर बना ली लौंडे की। अब भला गाली खाकर भी किसी का दिन अच्छा हुआ है।

पिता जी के बेटे ने स्नातक की है और पढ़ने में अव्वल भी रहा किन्तु दुनियादारी के तौर तरीके उसे किताबों में पढ़ी गयी सीखों से कहीं मिलती हुई नही दिखाई दी, इसीलिए दुनियादारी की समझ नही आयी। अतः बेटे जी खुद को समाज में कहीं फिट नही कर पाए। ऊपर से पिता जी की गालियों ने बेटे जी का ऐसा चरित्र चित्रण कर रखा है कि बेटे जी मुहल्ले में जब भी कुछ करने जाते तो कोई हंसी उड़ा लेता तो कोई गरिया देता। गंभीरता से तो उन्हें कोई लेता ही नही। अब पिता जी के उम्मीदों का बोझ बेटे जी पर ही है पर बेटे जी कुछ कर नही पा रहे । कारण तो आप समझ ही गए होंगे। ऊपर से ये काल्पनिक शर्मा जी का आदर्श लौंडा, उससे तो बेटे जी की आज तक मुलाकात ही नही हुई कि उससे कुछ सफलता और आदर्श के पाठ पढ़ लिए जाते।
पिता जी को कौन बताये कि तरक्की तो ऐसे होने से रही। काम तो बेटे जी को ही करना है। बेटे जी पढ़े-लिखे , उच्च शिक्षाधारी और काबिल हैं पर यदि सफलता हाथ नही लग रही तो इसका मतलब साफ है कि जिस तंत्र में बेटे जी काम कर रहे हैं उसमें ही कोई खराबी है। माना बेटे जी से भी गलतियां होती है तो गलतियों की सजा भी होती है जो जरूरी भी है कि मिले ताकि बेटे जी को सीख मिले। लेकिन ऐसे खुले आम गरियाना कहाँ तक लाज़मी है। बेटे जी का मनोबल भी टूटता है और दूसरे भी देखने का नज़रिया बदल लेते हैं। आत्मविश्वास की धज्जियां उड़ी हुई हैं सामाजिक असुरक्षा तो घर के बाहर कदम निकालने से भी मना करती है। ऐसे में तो हो चुका काम।

पिता जी को समझना होगा कि काम यही बेटा करेगा । जरूरत है तो एक स्वस्थ पारिवारिक तंत्र विकसित करने की जिसमे ऊपर से लेकर नीचे तक सबके लिए समान नियम हों, सुरक्षा हो, निर्णय लेने की स्वतंत्रता हो, तरक्की के अवसर हों, अच्छे काम पर तारीफ हो सम्मान हो, और गलत करने वाले के लिए यही तंत्र दंड भी दे न कि मुहल्ले वाले ही आकर पीट दे। अब बेटे जी हैं तो कुछ अधिकार भी हो और आर्थिक क्षमता भी जिससे बेटे जी निडर होकर आगे बढ़ सके और पिता जी के लक्ष्य को प्राप्त काने में सफल हो सके।

सबको पता है कि individually तो परफेक्ट कोई नही है पर सब मिलकर एक परफेक्ट तंत्र जरूर बना सकते हैं। अब काल्पनिक शर्मा जी का आदर्श लौंडा तो मिलने से रहा किन्तु एक स्वस्थ तंत्र पिता जी के बेटे को सफल जरूर बना सकता है जिस पर पिता जी की सफलता भी निर्भर करती है।

बाकी पिता जी तो खुद समझदार हैं कि मुहल्ले वाले सफलता पर तालियां बजाते हैं और असफलता पर मजाक उड़ाते हैं किन्तु कोई आपकी मदद नही करने आएगा और न ही आपको वो काल्पनिक शर्मा जी का आदर्श लौंडे का भूत आपके बेटे में आएगा।

नोट: इस लेखन में पिता जी को सरकार से, बेटे को अधिकारियों से, मुहल्ले को जनता से और पारिवारिक तंत्र की तुलना किसी विभाग से करना पूर्णतः वर्जित है।

Author:

Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

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