Posted in CHAUPAAL (DIL SE DIL TAK), SHORT STORY

अमराई……।

कोरोना का समय चल रहा है। सरकारी नौकर होने के कारण कभी घर बैठने का मौका नही मिला। एक आदमी चाहता भी कब है। कोई न कोई बहाना कर निकल ही जाता है बाहर। थोड़ा इधर-उधर करने। लाइन को मत पकड़ियेगा और गहराई में तो बिल्कुल भी न उतरियेगा।

गाँव से शहर तक का सफर तय किया है। एक व्यक्ति की औसत आयु का लगभग आधा जी चुका हूँ। अनुभव भी थोड़ा बहुत आ चुका है तो कुछ बातों को जोर देकर भी कह सकता हूँ। इसलिए तुलना करते हुए लिखता हूँ कि खाली बैठने का जो आनन्द गाँव-देहात में आता था वो शहरों के बंद कमरों में उपलब्ध सुविधाओं में कहाँ। मन एक जगह टिकता ही नहीं। खुरपेंच करने को बहुत सी चीजें आसानी से जो उपलब्ध हैं।

जेठ की दुपहरी हो, बिल्कुल तपती गर्मी, लू वाली। घर से नेनुआ भात भर गटई दबाय के खोपड़ी पर गमछा डार के सीधे टिबिल वाले बाग की ओर। न हाथ में मोबाइल और न जेब में पर्स। ले दे के साथ सत्तर रुपया, दस दस के नोट। आज खेत में पानी दिया जा रहा है, टिबिल चल रहा है। खेत के किनारे कच्ची नाली से पानी बहता हुआ जा रहा है। स्वच्छ, पारदर्शी और नदी सा कल-कल करता हुआ। कभी कभी तो सरजू मैया की याद दिलाता हुआ। एक पेड़ की छांव देखकर घस्स से बैठ गए पेड़ की टेक लगाकर, नाली में पैर डालकर। निहार रहे है पैर को। पानी की शीतलता पूरे शरीर को तृप्त करती हुई। नाली में उगी हुई घास लगातार पानी के बहाव से संघर्ष करती हुई। इसी बीच एक चींटी पानी के बहाव में दिखती है। किंतु उसने हार न मानते हुए मौका देखकर एक दूब को पकड़ ही लिया और अपनी जान बचाई। डूबते को तिनके का सहारा वाली कहानी चरितार्थ होते हुए सामने ही देखा।

काफी देर तक यूँ ही बैठे-2 जब आलस आने लगा, आये भी क्यूँ न, गटई तक नेनुआ भात जो पेले हैं, तो आम के पेड़ के नीचे पड़ी खटिया पर पसर गए। पीठ के बल। टिबिल के चलने का शोर लगातार कानों में पड़ रहा है। दूर-२ तक केवल खेत ही दिखते हैं। बिल्कुल सपाट और इस भीषण गर्मी में जलते हुए। बहती हुई लू साफ दिखती है। ले दे के दो चार किसान ही दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे में बाग में आम के पेड़ के नीचे की शीतलता एक अलग ही ठंडक पैदा कर रही है। इस बार आम अच्छे आए हैं। आम की फसल को निहारते, उनके पत्तों को निहारते, चींटियों द्वारा दो पत्तों को किसी सफेद पदार्थ से जोड़कर बनाये झोंझ को देखते , आम की खुशबू को सूँघते, कहीं दूर से आती कोयल की आवाज को सुनते हुए एक अलग ही रस पैदा हो रहा था। अगल बगल कोई न हो और दिमाग को कोई व्यवधान न हो तो व्यक्ति अपने पसंद के ख्यालों में आसानी से खो जाता है। ऐसे में भैया की साली की याद आ गई और तन बदन में एक अलग ही गुदगुदी कर गई। ज्यादा नही लिखूँगा इस पर , आप स्वयं ही आगे की कहानी समझियेगा। इसी बीच कौनो रसिक मिजाज आदमी साइकिल से रेडियो बजाता हुआ निकला- घूँघट की आड़ से दिलवर का ………… तन-बदन में एक लहर गुजर गई।

इसे कहते हैं एकांत। सारी सिद्धियाँ इसी में प्राप्त होती हैं। पूरी दुपहरी अपनी। चारों ओर प्रकृति। अलसाया सा तन। कभी गर्म तो कभी ठंडी हवा की छुवन । खुद को जानने समझने का पूरा मौका। इसे कहते हैं आत्म सुख। दो घंटा खूब ऐंठ कर सोने के बाद जब नींद खुली तो पूरी बनियान भीगी हुई। मगर शरीर में फुर्ती भरी हुई। उठ कर बैठ गए। थोड़ी देर बाद जब होश में आये तो उठकर सिंचाई वाली नाली के पास गए। मुँह धोये और गमछा से पोंछ कर चल दिये बाजार की ओर, पैदल ही। चाट खाएंगे हरा मिर्चा और खूब टमाटर और मूली का सलाद डालकर। चलते-२ भैया की ससुराल जाने का भी प्लान बना लिए। इस बार तो हाथ पकड़ना ही हैं उनका। ऐसे थोड़े ही। आखिर कब तक………!!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२१.०६.२०२०

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Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

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