Posted in CHAUPAAL (DIL SE DIL TAK), SHORT STORY

टेम्पर्ड…

अनुभवों से मुझे पता चला है कि व्यक्ति गरीब नही होता है, उसकी सोच गरीब होती है। भारतीय माध्यम वर्गीय व्यक्ति पर यह लाइन शत प्रतिशत लागू होती है। हो भी क्यूँ न ? एक नई साईकल भी ले लें तो सालों उस पर लगी पॉलीथिन नही उतरती। वो व्यक्ति रोज उस साईकल के साथ-२ पॉलीथिन को भी चमकाता है। अब साईकल से मोटर-साईकल, मोटर- साईकल से कार और फिर प्लेन, वह आदमी कितना बड़ा हो जाए उसकी सोच नही बदलेगी। दिमाग से वो गरीब ही रहेगा। वो कार और प्लेन की सीट की पन्नी नही उखड़ने देगा।

खैर….. मेरा नया वाला लैपटॉप दो बार पटका जा चुका है। मेरे घर में दो हरफनमौला किरदार (रात के समय हाइपर-एक्टिव) और बेहद ही मजबूत दिल से कन्फीगर्ड, मेरे दो बच्चों का नया खिलौना बन चुका है मेरा लैपटॉप। मेरे जैसे गरीब सोच वाले व्यक्ति की औलादें इतने मँहगे शौक न जाने कहाँ से पा गए। जरूर माँ ने ही इंस्टाल किये हैं। खैर….! दो बार लैपटॉप के पटके जाने से हार्ट अटैक तो नही आया मगर दिल पर दो चार खरोंच जरूर आ गई। हद तो तब हो गई जब बड़े वाले बाकायदा अपनी जीत दर्ज करने के लिए लैपटॉप जमीन पर पटकने के बाद उस पर चढ़कर खड़े भी हो गए और पोज़ देने लगे। जैसे कोई सैनिक दुश्मन चौकी पर कब्जा करने के बाद तिरंगा लहराता है।

पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलता रहा कि क्या किया जाए और कैसे बचाया जाए। छुपा कर और लॉक लगाकर तो बचाना मुश्किल हैं। क्यों न इस पर कोई हार्ड कवर लगा लिया जाए। ऑनलाइन सर्च किये मगर समझ नहीं आया। अगले दिन आफिस निकल तो ये सोच कर निकला कि आज लैपटॉप को सुरक्षित रखने की व्यवस्था किये बिना घर नही लौटूँगा। दिल में कुछ पाने की ठान लो तो फिर मिल ही जाता है। ऑफिस खत्म होने के बाद नाज़ा मार्किट पहुँचा। दो-चार दुकानों से मना कर दिए जाने के बाद निराश होने ही वाला था कि एक दयालु सज्जन ने मुझ पर दया दिखाते हुए जनपथ मार्किट में एक दुकान बता दी। आँखों में चमक लौट आयी। मैं जनपथ पहुँचा। बताई हुई दुकान भी मिल गई। उसने मेरा लैपटॉप देखा और बोला मिल जाएगा। हम भी चहकते हुए बोले, लगा दो। करीब 15 मिनट दुकान में खोजने के बाद वो बोला ये लैपटॉप तो नया है मगर मॉडल पुराना है इसलिए कवर मिल नहीं रहा। हमने भी बोल दिया – यार तुम्हारे पास सामान नही है तो ठीक है लेकिन पुराना बोलकर दिल पर घाव तो मत ही दो। खैर…….! जनपथ आये ही थे तो सोचा एक दो दुकान और देख लें।

फिर मिली एक दुकान ……. मैंडी मोबाइल । और यहाँ जाकर, मोबाइल को सजा-सँवार कर रखने वालों की शौक को परवान मिलता है। भाई साहब….. क्या दुकान! क्या भीड़! क्या दुकान पर काम कर रहे लड़कों की फुर्ती। इतनी भीड़ देखकर एक बार मैं फिर सोच में पड़ गया कि मैं तो लैपटॉप लेकर आया हूँ , निकालूँ कि नहीं। मिलेगा कि नहीं। मैने दबी जुबाँ में पूछा तो उत्तर मिला – हाँ मिल जाएगा। छोटू जल्दी से लैपटॉप का कवर निकाल। अब जाकर दिल को ठंडक मिली। इतना सुकून की दुकान पर लगने वाले एक घंटे भी बहुत अधिक नहीं लगे। इसी बीच मैंने अपना मोबाइल दिखाया कि इसका टेम्पर्ड मिल जाएगा? (बात दूँ कि इस मोबाइल के टेम्पर्ड की तलाश चार महीने से थी मगर नहीं मिल रहा था। श्री राम टावर भी हाथ खड़े कर चुका था। लेकिन वहीं है न कि जब अच्छा दौर चालू होता है तो सब अच्छा होने लगता है।) आज टेम्पर्ड भी मिल गया। वाह…… आज तो मजा ही आ गया। दुकानदार ने मस्त टेम्पर्ड लगाया। जब मोबाइल सामने आया तो विश्वास ही नही कि ये मेरा मोबाइल है। इतना खूबसूरत तो ये नए पर नही था। अब तो कोई लड़की दुल्हन के गेटअप में भी सामने आ जाये तो मैं अपना मोबाइल ही देखूँगा।

मैं आज बेहद खुश होकर घर लौटा। कोरोना काल की रस्मों को निपटाने के बाद जब सुकून से हाथ में मोबाइल लेकर सोफे पर बैठा तो बैठते ही बच्चों की उछल-कूद में मोबाइल हाथ से सरक कर धरती को जा लगा। इस बार तो हार्ट अटैक मानो आ ही गया। हाये मेरा टेम्पर्ड। मोबाइल की फिक्र न होकर आज टेम्पर्ड की चिंता हो रही थी। झट से मोबाइल उठाया और टेम्पर्ड को सहलाने लगा। बच गया था। मध्यमवर्गीय गरीब सोच भी राहत की साँस ले रही थी। डर इतना था कि मैंने लैपटॉप को बैग से निकाला ही नहीं। कौन रिस्क ले ………!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०६.२०२०

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Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

4 thoughts on “टेम्पर्ड…

  1. ये नये दौर के लड़के हैं साब, बाप के पैसे समझ नहीं आते इस दौर को ।
    बेहतरीन वर्णन किए हैं, अनुभव को 👌… और शुरुआत उम्दा रहा ।

  2. मुस्कुरा रही हूं आपके लेख पढ़कर ,
    जिंदगी के गम भुला रही हूं आपके लेख पढ़कर।
    🙏🙏👏👏

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