Posted in CHAUPAAL (DIL SE DIL TAK), SHORT STORY

शॉपिंग… 😁

यह कला बेहद पुरानी है और इस कला में पारंगत होना आपको औरों से अलग रखता है। नहीं तो लाख खर्च कर के कुछ भी ले आइये, कोई काम का नहीं। खासकर कपड़ों के मामले में। यदि आपको समझ नही है तो आपका तो कटना तय है। रुपया पैसा आदि की खोज से पहले इस कला का प्रारम्भ हो चुका था। प्राचीन काल में इस कला के तौर तरीकों पर मैं नहीं जाऊँगा। जैसे भी करते रहें हो उनकी बला से। लेकिन एक बात तो तय है कि जिस तरह से अन्य कलाओं को सीखने के लिए अभ्यास और समय की जरूरत होती है, उसी तरह शॉपिंग जैसी कला को सीखने के लिए भी आपको अधिक नहीं बहुत अधिक समय देना पड़ेगा। एक बार आपके पास पैसे न हो तो भी चलेगा। वो कहते हैं न कि खरीदना नहीं तो देख ही लेना। हा हा …😂।

मुझे शॉपिंग करना नहीं आता। नौकरी से पहले तो मैं मुश्किल से ही दुकानों पर जाता था। गया भी तो घर से लिस्ट बना ली, दुकान पर जाकर थमा दी और बाद में दुकानदार के लिखने के अनुसार हिसाब लगा लिया। दिक्कत तो तब आती थी जब कपड़े लेने हों। अगर दुकानदार कामचोर निकला तो दो-चार टाइप ही दिखाता था जिसमें पसन्द न आने पर बड़ी मुश्किल से ही कह पाता था कि कुछ और दिखाओ। ये कुछ और दिखाओ मेरा आखिरी प्रयास होता था (चूंकि एक ही काम को कोई मुझे बार-२ बोले तो मैं झल्ला जाता हूँ इसलिए दुकानदार के मनोभावों को समझ लेता था कि अब ये झल्लाहट की सीमा पर पहुंच चुका है या फिर पहुँच न जाये इसकी फिक्र मुझे ज्यादा रहती थी)। यदि कुछ अच्छा लगा तो ठीक वरना जो भी सामने पड़ा हो उसे ही ले लेता था। फैशन सेंस तो मुझमें था नहीं और दुकानदार को बार-२ परेशान करने की हिम्मत मुझमें थी नहीं। कहीं मना कर दिया दिखाने से….. ! तो….! इसलिए बेइज्जती न हो, इस डर से मैं कुछ भी ले लेता था। अब चाहे वो कपड़ा मुझ पर ठीक लगे या न लगे, मैं अपने आपको उसमें अच्छा दिखने की कल्पना कर लेता था। इस तरह जब तक वो कपड़ा चलता मेरी शंका का एडजस्टमेंट चलता रहता। इसी वजह से मुझे छोटी दुकानों से नफरत हो गयी। न तो उनके अंदर उपभोक्तावाद के चलते उपभोक्ता के प्रति सम्मान और न ही अपनी चीजों को दिखाने का सलीका होता है। इसीलिए मैं जाता भी नहीं।

नौकरी लगी। अब पैसे का संकोच नहीं। लेकिन दिल में दुकानदार के मना कर देने का डर आज भी जिंदा है। इसलिए ऐसी दुकानें जहाँ सामान निकाल कर दिखातें हैं, मतलब सामान सामने नही होता है, मैं वहाँ जाता ही नहीं। मॉल कल्चर मेरे लिए वरदान साबित हुआ और कपड़ों के अलावा छोटी-२ घरेलू चीजों के लिए तो ऑनलाइन मार्किट तो मानो सीधे प्रभु की कृपा। मेरे जैसा आदमी आज तक सारी शॉपिंग ऑनलाइन। अब तो सब्जी भी ऑनलाइन आता है। लखनऊ में हूँ लेकिन मजाल हो कि यहाँ की प्रसिद्ध अमीनाबाद बाजार गया! बीवी के साथ भी नहीं। इतनी भीड़। मतलब की दुकान ढूढने में ही पसीना आ जाए। कभी सामने से रिक्वेस्ट आ जाए तो सीधे मना…. भले ही गृह युद्ध हो जाए। खा लेंगें एक दो थप्पड़।

फैशन सेंस की कमी को छुपाने के लिए सीधे ब्रांडेड स्टोर । और कसम गरीबी वाले संकोच की कि कभी टैग देखने की कोशिश की हो। स्टोर वाला क्या सोचेगा? इज्जत नही गिरानी अपनी। पूरे कॉन्फिडेंस से अटेंडेंट को आवाज दी और अपनी जरूरत बात दी। जहाँ सामान उपलब्ध वहां वाले सेक्शन पर ले जाया गया। दो-चार पीस देखा, थोड़ा सा निराश होने जैसा मुंह बनाया और दो-तीन सेट निकलवा लिए। पहन कर देखा गया। जम तो नहीं रह था लेकिन लेडी अटेंडेंट बोल दी सर अच्छा लग रहा है, आप पर जँच रहा है। फिर क्या जितने सेट निकले थे सब पैक करा लिए। जोश में बिलिंग भी हो गयी। क्रेडिट कार्ड से भुगतान भी हो गया। फिर उस लेडी अटेंडेंट ने मुस्कुरा कर थैंक्यू बोला और हम भी मुस्कुराते हुए बाहर की ओर। लेकिन स्टोर से पार्किंग में खड़ी गाड़ी तक पहुँचते-२ सोचे कि यार लेना तो एक ही शर्ट था और ले लिए क्या-२। बिल भी पन्द्रह हज़ार का। घर पहुँचे लेकिन बीवी को दाम नही बताए। बोल दिए सेल चल रहा था ४० % ऑफ का। हफ्ते भर अफसोस रहा। बस खुशी इतनी थी कि कपड़ा ब्रांडेड था और दो-चार लोग तारीफ भी कर दिए थे। पता नहीं क्यूँ? कहीं पद की वजह से तो नहीं। छोड़ो हटाओ।

बीवी के साथ शॉपिंग मेरे लिए बेहद कठिन। ये नहीं कि समय बहुत लगता है। वो तो यूनिवर्सल समस्या है और उसके लिए मैं तैयार रहता हूँ। अब धीरे-२ बच्चे हो गए हैं तो उनकी समय लगाने वाली आदत बदल रही है। मुझसे ज्यादा जल्दी में तो वो रहती हैं। खैर…..! मुद्दे पर आते हैं। मैं परेशान हूँ उनकी मुँह पर सीधे मना कर देने वाली आदत से। घण्टों देखने के बाद सीधे मना और दुकानदार को सुना अलग से देना कि घटिया दुकान है और कुछ ढंग का है ही नहीं इनके पास। चाहे वह दुकान गाढ़ा भंडार जैसी बड़ी दुकान क्यूँ न हो। मेरे जैसा संकोची आदमी अंदर ही अंदर दो गज जमीन के नीचे। गायब होने का मंत्र आता तो मैं अब तक पढ़ चुका होता।

एक बार की बात है। किसी दोस्त की शादी में जाना था और बीवी को अर्जेंट शॉपिंग करनी थी। रात के नौ बजे थे । आलमबाग बाजार घर से 5 मिनट की दूरी पर, गाड़ी से। गाड़ी उठायी और आलमबाग। इस उम्मीद के साथ शायद कोई दुकान मिल जाए। मॉल में जाते तो गाड़ी खड़ी करने से दुकान तक पहुँचने में 10 बज जाते। इसलिए नही गए। गाड़ी धीरे-२ सभी दुकानों को निहारते हुये चली जा रही थी कि एक साड़ी भंडार खुला मिल गया। झट से गाड़ी से उतरे और दुकान पर। दुकानदार बोला कि अब बंद हो रही है कल आइए लेकिन फिर पीछे से किसी मालिक टाइप आदमी की आवाज आई कि आने दो और शटर थोड़ा डाउन कर दो। खैर…..उसने दिखाना चालू किया। लगभग एक घंटे की मेहनत के बाद, बीवी के सेलेक्टिव नेचर के बावजूद मेरी भारी कोशिशों के उपरान्त तीन पीस सेलेक्ट हुए। इस बीच लग रहे समय और दुकानदार के चेहरे के भावों को पढ़कर मैं बहुत ही अधिक प्रेशर में था। कि दुकान बन्द होने जा रही थी और भाईसाहब ने हम पर कृपा करके एक घण्टे दे दिए।

बिलिंग काउंटर पर पहुँचे ही थे कि बीवी के मन में क्या आया और वो बोल पड़ी- नहीं चाहिए……..! रहने दो……! कुछ खास नही लग रहे कपड़े…… ! भाईसाहब ……….! मैं तो बिल्कुल जड़ हो गया। सर से लेकर पाँव तक भाव शून्य। क्या बोलूँ? बड़ी मुश्किल से मैंने दुकानदार की तरफ देखा। उसके चेहरे की भाव भंगिमा पढ़ने के बाद मैं तपाक से बोल पड़ा कि क्यूँ नही चाहिए। बढ़िया तो है! बीवी- नहीं…… नहीं चाहिए। मैंने स्थित और दिल दोनों को संभालते हुए थोड़ा जोर लगाकर कहा कि नहीं मुझे ये दो पसंद हैं और में ये ले रहा हूँ। तीसरी वाली, ये वाली निकाल देते हैं। इस तरह मैंने बीवी की बात को कुछ हद तक रखते हुए जबरदस्ती दो पीस ले लिए और बिलिंग कराकर बिजली की गति से दुकान से बाहर। उस दिन मुझे समझ आया कि शॉपिंग के लिए जेब मजबूत हो न हो, दिल जरूर मजबूत होना चाहिए। कमजोर दिल वालों के बस की बात नहीं। उसके बाद से मैं कभी गलत समय पर बीवी को लेकर शॉपिंग को नहीं गया। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि जबरदस्ती में लिए गए वो कपड़े आज तक नहीं पहने गए! खैर………….मौके पर जान बची और क्या चाहिए। भले ही इस जान बचाने की कीमत कुछ भी हो…….!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२८.०६.२०२०

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Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

9 thoughts on “शॉपिंग… 😁

  1. ऐसी व्याख्या तो कोई भुग्तभोगी ही वर्णीत कर सकता है ।। और वो “आप पे जंच रहे हैं” वाला दृश्य🤣🤣🤣👈 । 👌👌

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