तेरे स्वागत को
आज होकर तैयार
खड़े हैं
सब इंतज़ार में,
ये मौसम…
ये बारिश…
ये चाय…
और हम भी…
बोलो…
मिलने को तुमसे
गुज़ारिश
और कैसे करते?
इससे ज़्यादा
आतुरता
और कैसे दिखाते?
स्वागत को तुम्हारे
और किस-२ को
बुलाते?
©️®️आतुर/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१६.०९.२०२१
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साथ
जीवन की उलझनों में भी कुछ इस तरह
मैं खुद से दूर अपनों का साथ निभा लेता हूँ,
रोज़ ईश्वर के समक्ष हाथ जोड़कर हृदय से
उनके खुश रहने की दुआ माँग लेता हूँ।
मैंने अपने आप और पूरे परिवार का
कुछ इस तरह भी इंश्योरेंस करा रखा है,
अपने से जुड़े व्यक्ति के आगे बढ़ने में
बढ़-चढ़ कर अपना हाथ लगा रखा है।
एक छोटी उम्र है और जिम्मेदारियाँ कई
इस सबमें रोज़ जीनी है ज़िंदगी भी नई
इतना कुछ अकेले कहाँ सम्भव आनन्द
लेकर अनुनाद मैं जुड़ा हूँ दिलों से कई।
©️®️साथ/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२९.०८.२०२१
दिल और दुनियादारी
दिल और दुनियादारी
कितनी आसानी से लोग यहाँ दूसरों की गलती बता देते हैं,
जो ख्वाहिशों को जी गया, आनन्द बताओ वो गलत कैसे?
जिंदगी सफर है, मंजिल नहीं, सिर्फ आगे बढ़ना क्यूँ?
यहाँ रुकना भी जायज, चलना भी और पीछे मुड़ना भी!
सफर में साथ हो तो उम्मीदें लग ही जाती है मुसाफिर से,
यहाँ अपना भरोसा नहीं तो दूसरों पर बाजी क्या खेलना।
जीना है अगर सलीके से दुनिया में तो बस दिमाग रखिये,
दिल वाले न माने कोई नियम, तभी तो क़त्ल किये जाते हैं।
जो पकड़े गए चोर, जिसने कुबूल लिया वो मुजरिम लेकिन
सही बताओ जो बच गए वो क्या मुझसे नज़रें मिला पाएँगे।
नहीं आते समझ में मुझे इस दुनिया के कायदे कोई आनन्द,
दिल को इच्छाओं का कब्रगाह बनाना आखिर कहाँ तक ठीक है?
कितनी आसानी से लोग यहाँ दूसरों की गलती बता देते हैं,
जो ख्वाहिशों को जी गया, आनन्द बताओ वो गलत कैसे?
©️®️दिल और दुनियादारी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०८.२०२१
निज़ात
काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!
हद से ज्यादा हो गईं अब तो शिकायतें
सभी चिट्ठियों को बिन पढ़े जला दिया जाए!
दिल में घाव अब बहुत सारे हो गए हैं
मेरे हक़ीम से अब तो खंजर छीन लिया जाए!
साथ तेरा किसी बोझ से कम नहीं
क्यों न अब ये बोझ दिल से उतार दिया जाए?
साथ चल नहीं सकते साथ रुक तो सकते हैं
मगर पीछे चलने की आदत अब तो छोड़ दी जाए!
दूर थे तो तब बात कुछ और थी आनन्द
पास रहकर भी बोलो अब दूर कैसे रहा जाए!
मैं बेचैन करवटें बदलता रहा रात भर
इस चाहत में कि अब तो मेरा हाल पूँछ लिया जाए!
बहुत कुछ खो दूँगा इस तरह मैं, तो क्या
चलो फिर से एक मुकम्मल शुरुआत की जाए!
काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!
©️®️निज़ात/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०७.२०२१
आदत नहीं गई…!
माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।
सोचा था कि देखने से ही प्यास बुझेगी मगर,
कुछ देर साथ बिताने से भी बेचैनियाँ नहीं गई।
क्या गज़ब का मिराज है तू और तेरा हुस्न,
तेरे बहुत पास पहुँचने से भी ये दूरियाँ नहीं गई।
तेरे साथ की ठंडक के बारे में बहुत सुना है मगर,
दिल में लगी है जो अगन तेरे छूने से भी न गई।
लोग कहते हैं कि मुझको अल्लाह की इबादत कर,
मेरे लबों को सुबह-शाम तेरा नाम लेने की आदत न गई।
हुस्नो की बारात है देखो मेरे चारों तरफ मगर,
दुल्हन से तेरे चेहरे से मेरी नज़र कहीं और न गई।
माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में आनन्द तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।
©®आदत नहीं गई/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०१.०७.२०२१