बीती इस उम्र में एक अरसा देखा नंगे पैरों से चलकर आसमाँ देखा साइकिल की कैंची में घुसकर मैंने इन हाथों को स्टीयरिंग घुमाते देखा।
अनाज को खाने लायक बनाने में होती हज़ार कोशिशों को भी देखा जाँता-पहरुआ, मथनी से आगे बढ़ आटे-चावल का मैंने पैकेट भी देखा।
सुबह-सुबह ताल किनारे पंगत में हमने लोगों को निपटते भी देखा भर-दम उसी तलैया में नंगे बदन बच्चों की टोली को नहाते भी देखा।
कंचे, खो-खो, कबड्डी, गिल्ली-डण्डा कुश्ती करते मिट्टी में सने हुए देखा। चप्पल काट चक्कों की गाड़ी बनाना चौड़े में वही गाड़ी लेकर चलते देखा।
दुग्धी, खड़िया और लकड़ी की तख्ती सेंटे की लकड़ी से लिखते हुए भी देखा निब का पेन और चेलपौक की स्याही पायलट पेन के लिए खुद को रोते भी देखा।
हाईस्कूल, इंटर बोर्ड के पेपर का इंतजार पढ़ाकू लड़को की आँखों मे खौफ़ को देखा दिन रात रगड़ कर परीक्षा खूब दिए पर कम आए नम्बरो पर खुद को रोते भी देखा।
वो जवानी की दहलीज़ पर आकर हमने कॉलेज काशी बी एच यू घाट का नजारा देखा, बाबा विश्वनाथ और संकट मोचन का दुलार इसके साथ इश्क़ की गली से गुजरता देखा।
ज़िन्दगी बेहद खूबसूरत और लाजवाब है हमने इसके हर रूप को गंगा के पानी में देखा इंसान मिट्टी का है बहुत मजबूत मगर देखो दिल से होकर मजबूर इसे हमने रोते भी देखा।
थी तंगी चारों तरफ मगर कभी कोई डर नही हमने आईने में खुद को सदा मुस्कुराते देखा जीवन सरल करने के जब से पाए साधन सभी कट रही डर-डर कर ज़िन्दगी को भी देखा।
रहे गन्दे-सन्दे न कोई हाइजीन का शऊर हमने महीनों एक जीन्स को पहनते देखा मुँह को ढककर अब पल-पल धोते हैं हाथ हमने हर रोज पहने कपड़ों को बदलते देखा।
दिलों की दूरी तो पहले भी कम न थी हमने लोगों को छुप कर नज़रें चुराते देखा हे कोरोना तूने खेल बड़ा ही कमाल खेला अब लोगों को खुल कर दूरी बनाते देखा।
डरते-घबराते फिर भी खुद को सम्हालते तेरी क्रूरता में भी स्वयं को निखरते देखा सीख ही लेते हैं हम हर परिस्थिति में जीना ऐ ज़िन्दगी तुझे, हमने बेहद करीब से देखा।
बीती उम्र के इस छोटे सफर में हमने ऐ ज़िन्दगी तुझे, बेहद करीब से देखा।
प्यार हो तो देखो बिल्कुल तेरे जैसा हो भले मिलें न कभी पर साथ कुछ ऐसा हो मैं अगर कभी ख्वाबों में भी देख लूँ तुझको स्पन्दन मेरे शरीर में तुझको छूने जैसा हो।
दिल की ड्योढ़ी पर तूने जो रखे थे कदम उस दिन करूँ अभिनंदन उन पलों का उन्हें आँखों से चूमता हूँ, उस पहली मुलाकात को मैं समझ मील का पत्थर मानकर देव उस पत्थर को मैं तब से रोज़ पूजता हूँ।
जो न कह पाया तुझे वो पूरी दुनिया को सुनाता हूँ मैं जब बहकता हूँ तो बस तुझ पर गीत लिखता हूँ पीर दिल की है जो अब दिल में रखना मुश्किल है बाँटने को दुख मैं महफिलों में शेरों शायरी करता हूँ।
मिल कर भी तुमसे क्यूँ बिछड़ना सा प्रतीत हो दिल भारी जुबाँ खामोश दिन कैसे व्यतीत हो वाद्य यंत्र ये दिल और धड़कन मेरी संगीत हो मैं गुनगुनाता रहूँ जिसे हाँ तुम वो प्रेम गीत हो।