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ज़वाब……. (पाती……. प्रेम की -1)

अनिकेत आज ऑफिस से घर न जाकर सीधे शौर्य के कमरे पर आ गया। दोनों ही कॉलेज के समय से मित्र थे और संयोग से दोनों की नौकरी के बाद पोस्टिंग भी एक ही शहर में थी।  अनिकेत शाम से ही बेचैन था और दिल में कुछ था जो बाहर आने को आतुर था। शौर्य से बेहतर कौन हो सकता था जिससे वो दिल का गुबार निकाल सकता था। शौर्य के कमरे पर पहुंचते ही बिस्तर पर पिटठू बैग को फेंकते हुए अनिकेत बोल पड़ा –
अबे ! श्रेया का बर्थ-डे है अगले महीने।                                    
(श्रेया भी अनिकेत और शौर्य के कॉलेज की थी और अनिकेत की बेहद घनिष्ठ मित्र थी।  अनिकेत का दिल मित्रता से एक कदम आगे बढ़ चुका था किन्तु श्रेया के दिल में क्या था, इसकी अनिकेत को कोई खबर न थी और न ही दोनों ने इस विषय पर कभी एक-दूसरे से कोई बात की थी। )
शौर्य – तो!
तो क्या ? इस बार आर – पार की बात करनी है। जिस आग में मैं जल रहा हूँ! पता तो चले कि, उधर भी कुछ है कि नहीं ! 
क्या करोगे ? 
यही तो तुझसे बात करनी है कि क्या करूँ ?
मुझसे मत पूछ ! मेरा अनुभव बहुत ही ख़राब है इन सब चीजों में।  
सोच रहा हूँ जाकर मिल ही आऊं। सामने बैठ कर दिल की सारी बात कर दूंगा। (श्रेया कॉलेज में प्लेसमेंट के बाद जॉब के लिए दूसरे शहर में थी।  अनिकेत से कुछ ८००-९०० किमी दूर। )
सही है।  जाओ मिल आओ।  
अनिकेत ने शौर्य के लैपटॉप पर IRCTC की साइट पर ट्रैन की खोज शुरू कर दी। किन्तु कुछ देर की जद्दोजहद के बाद मन मसोस कर बोला –
मुझसे नहीं हो पायेगा !
क्यूँ ?
वो दोस्त है मेरी। सामने होती है तो मैं कुछ और ही होता हूँ।  उससे ये प्यार मोहब्बत की बात नहीं हो पायेगी। 
अबे हिम्मत तो करनी पड़ेगी !
नहीं।  कुछ गड़बड़ हो गया तो इतनी अच्छी दोस्ती में खटास आ जाएगी। 
फिर? 
कोई और रास्ता निकालना पड़ेगा !
कॉल कर ले !
नहीं। मेरी हिम्मत नहीं है !
अबे फिर मैसेज करके पूछ ले ! या फिर ई -मेल कर दे अपने दिल की बात !
नहीं। इतनी आसानी से नहीं ! कुछ अलग करना पड़ेगा……. 
अबे तो कबूतर भेजोगे क्या ? सन्देश लेकर !
भक साले।  मजाक मत करो………  एक मिनट ! यार आईडिया तो सही है बे।  क्यों न उसके बर्थ-डे पर कुछ भेजा जाये और साथ में अपने दिल की बात लिख कर भेज दी जाये। 
अरे वाह ! लव लेटर ।  सही है बे ! 
अनिकेत को लगा कि उसके हाथ जैकपॉट लग गया और उसने तुरंत एक शहर के बेहद प्रसिद्द मिठाई की ऑनलाइन साइट पर जाकर कुछ मिठाई और अपने दिल का सारा हाल एक पत्र के रूप में लिख कर श्रेया के पते पर कूरियर करवा दिया। एक उम्मीद के साथ…..  दिल की धड़कने बढ़ चुकी थी आर्डर कम्पलीट करते-२। ख़ुशी के भाव के साथ दिल में डर की सिहरन भी थी।  क्या होगा ? सब ठीक तो होगा न। तब तक शौर्य ने आवाज लगायी –
अबे ओ मजनू की औलाद ! आओ खाना पेलो अब। तीर निकल चुका है।  अब इंतजार करो निशाने पर लगने की। 
अगर निशाने पर न लगा तो ! अनिकेत ने पूछा। 
तो मर मत जाना। खोने को कुछ नहीं है तुम्हारे पास और पाने को बहुत कुछ ! चलो खाना खाओ। 
नहीं बे ! बियर बनती है एक-२। 
फिर कुत्तापना सूझा तुम्हे ! १० बज रहे हैं ! 
नहीं बे! पीनी है। चलो बे। 
फिर अनिकेत के बहुत जोर देने के बाद दोनों बाइक उठाकर निकल पड़े ! निकट के एक मॉडल शॉप की ओर ! और कुछ घंटो का समय बिताकर देर रात लौटे और बिस्तर पर गिरते ही सो गए।  अगले दिन सुबह उठकर दोनों अपने -२ ऑफिस निकल गए।  
दिन बीतने लगे।  अनिकेत की धड़कनें बढ़ने लगी।  क्या होगा ! हे भगवन ! सब कुछ अच्छा ही हो।  देखते ही देखते श्रेया का जन्मदिन भी आ गया।  अनिकेत ने घडी में १२ बजते ही श्रेया को कॉल लगा दी।  पर ये क्या फ़ोन स्विच ऑफ।  क्यों? अनिकेत बेचैन हो उठा। कई बार कोशिश की किन्तु कोई फायदा नहीं। रात भर करवटें बदलते हुए बीती. सुबह उठते ही अनिकेत तैयार होकर ऑफिस निकल गया। दिन भर कोशिशों के बाद भी श्रेया का फ़ोन नहीं लगा।  दिल में कई उलटे सीधे ख्याल उठने लगे।  चिट्ठी मिल गयी होगी न ? कहीं मिलने के बाद नाराज न हो गयी हो श्रेया। हाँ ! मिल गयी होगी चिट्ठी और श्रेया ने नाराज होकर फ़ोन बंद कर लिया है! अनिकेत अपने आप में ही बड़बड़ाते हुए बोला। न जाने कैसे दिन बीता।  अनिकेत अपने इस निर्णय पर पछताने लगा कि उसने गलती कर दी चिट्ठी भेजकर। इतनी अच्छी दोस्ती भी ख़राब हो गयी। अनिकेत ने खुद को कोसते हुए एक आखिरी कोशिश की ! ये क्या ! कॉल लग गयी।  अनिकेत ने घबराहट में कॉल काट दी. माथे पर पसीना आ गया!  क्या बात करेगा? कैसे बात करेगा?  
तभी श्रेया ने कॉल बैक कर दी।  काफी सोचते हुए घबराहट के साथ अनिकेत ने कॉल रिसीव की।  
हाँ अनिकेत !
हैप्पी बर्थ-डे श्रेया। 
थैंक्यू अनिकेत। और ! कैसे हो। 
मैं बढ़िया ! अरे कहाँ थे तुम ? कल रात से कॉल लगा रहा था।  फ़ोन मिल ही नहीं रहा था।  कैसे हो तुम ? सब ठीक तो है न !
नहीं रे ! सब ठीक है। हम लोग घूमने चले गए थे।  यहाँ पर एक फेमस जगह है।  वहां नेटवर्क नहीं रहता। अभी शाम में लौटे हैं। 
काफी बातें हुईं। अनिकेत कुछ जानना चाह रहा था, किन्तु श्रेया ने अनिकेत द्वारा भेजे गए गिफ्ट और चिट्ठी के विषय में कोई बात नहीं की। अंत में अनिकेत ने ही पूछा – मेरा गिफ्ट मिला की नहीं ?
नहीं तो ! कैसा गिफ्ट ? कुछ भेजे थे क्या ? मुझे तो कुछ नहीं मिला !
अच्छा ! (अनिकेत ने मिश्रित भावों के साथ एक गहरी सांस ली।) चलो कोई बात नहीं। 
बोलो ! क्या था अनिकेत ? क्या भेजे थे ?
कोई नहीं।  रखता हूँ।  बाद में बात करूँगा।  अनिकेत ने मायूसी के साथ जन्म दिन की पुनः बधाई देते हुए फ़ोन काट दिया।  
क्या हुआ ? (अनिकेत गहरे सोच में डूब गया ) मिला क्यों नहीं गिफ्ट? रास्ते में है क्या अभी ? काफी दिन हो गए भेजे हुए। इतने दिन में तो पहुँच जाना चाहिए था। ऐसा तो नहीं कि गिफ्ट मिल गया हो  और श्रेया ने बात दबा ली हो ताकि कोई असहज स्थिति न बने। शायद मेरे चिट्ठी का जवाब न देना चाह रही हो।  मना करने से मुझे ख़राब न लग जाये इसलिए झूठ बोल दिया की गिफ्ट मिला ही नहीं।  अनिकेत उदास हो गया।  
दिन बीतने लगे।  श्रेया के जन्मदिन के कुछ पंद्रह दिन बाद अनिकेत को श्रेया की कॉल आयी। अनिकेत ने तुरंत कॉल उठा ली। 
हेलो !
हेलो अनिकेत ! तुम्हारा गिफ्ट मिल गया।  आज ही मिला।  थैंक्यू।  स्वादिष्ट है।  तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। श्रेया ने एक  सांस में सब बोल दिया।
अच्छा ! तुम्हें अच्छा लगा ! बढ़िया है।  
हम्म्म ! बढ़िया मिठाई थी।  मजा आ गया।  ऑफिस में सब मांग रहे थे।  मैंने नहीं दी। मेरे दोस्त ने भेजी है , मैं क्यों शेयर करूँ!
अनिकेत मुस्कुराया और बोला – फिर क्या सोचा तुमने ? (अनिकेत ने सोचा कि श्रेया को उसकी लिखी हुयी चिट्ठी भी मिल गयी होगी जिसमें उसने श्रेया को लेकर अपने दिल की बात लिखी थी और उसका जवाब माँगा था )
सोचना क्या है ? श्रेया ने बोला।  मिठाई थी ! मैंने खा ली। 
अरे मिठाई के साथ कुछ और भी था भाई ! अनिकेत बोला। 
कुछ और भी था ? क्या ? मुझे तो मिठाई मिली! मुझे तो मिठाई से मतलब है बस ! और इतना कहकर श्रेया ने बात बदल दी। 
अनिकेत को एक धक्का सा लगा ! खुद को सम्भालते हुए वो मुस्कुराया और बोला – अच्छा ! 

(श्रेया के हिचकिचाहट और बात बदलने के अंदाज़ से वो सब भांप गया था।  आखिर उसका दोस्त जो ठहरा।  दिल ने पल भर में ढेर सारी गुणा गणित लगा ली और बेहद त्वरित गति से निष्कर्ष निकालते हुए श्रेया की दोस्ती को ही स्वीकार कर लिया।) 

तब तक उधर से आवाज़ आयी – क्या हुआ अनिकेत ? कहाँ खो गए?
कुछ नहीं ! बस यूँ ही ! ठीक है दोस्त, और बताओ ! सब बढ़िया तो है न ?
हाँ ! और सब बढ़िया  सब मस्त चल रहा है !
अच्छा तो रखता हूँ ! टेक केयर। बाय !
बाय ! दोस्त। 
और अनिकेत ने फ़ोन काट दिया।  दिल बेहद मायूस था लेकिन कुछ हद तक शांत भी था , क्यूंकि अनिकेत को उसकी चिट्ठी का जवाब  जो मिल गया था।  

अनिकेत का दिल आज भी गुनगुनाता है –

है लिखने को बहुत !
और कहने को भी बहुत !
बयाँ करने को मेरी कहानी ,
मेरे पास नहीं अल्फ़ाज बहुत !
इस अनकही कहानी को सुनने ,
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !
अगर तुम आ जाओ…………….
तो क्या बात हो !

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Author:

Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

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