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अब चैन नहीं ……..

सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
“क्या लिखूँ“ अब इस पर भी लिखूँ ।

कुछ न सोचूँ अब, तो इसके लिए भी सोचूँ ,
ज़िन्दगी के दर्शन के दर्शन को सोचूँ ।

भीड़ में रहूँ तो तनहाई के लिए सोचूँ ,
और तनहा होने पर क्यूँ हूँ तनहा ये सोचूँ ।

बातों का ट्रानजिस्टर लिए घूमता हूँ,
पर शुरूवात कहाँ से करूँ ये सोचूँ।

जी भरकर देखने को जी चाहता है और,
अब सामने हो तो क्या देखूँ मैं ये सोचूँ।

ज़िन्दगी की दौड़ में मैं सबसे आगे रहना चाहता हूँ,
और ज़िन्दगी में इतनी भागम-भाग क्यूँ है, मैं ये सोचूँ।

बेचैन रहने की फ़ितरत है तेरी आनंद,
और आता क्यूँ नहीं चैन मैं ये सोचूँ।

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जिंदगी से यारी रख।

मन में न कोई बीमारी रख
सब से बात चीत जारी रख ।
कोई इतना भी बुरा नही इस जहां में,
तू बुराई में अच्छाई की खोज जारी रख।
जिंदगी के हर मोड़ पर मिलेंगे नए लोग,
तू गैरों में अपनों की पहचान जारी रख।
दीवाने हो जाये लोग तेरे,
बातों में अपने गज़ब की मस्ती रख।
दौलत बेहिसाब जमाने में,
तू अपनी जेब खाली तो रख।
कुछ जाएगा तभी कुछ आएगा,
तू इस लेन देन की कला में संतुलन रख।
खिंचते चलें आएंगे लोग तेरे पास,
इतना खुद में आकर्षण रख।
सब कुछ संभव है तुझसे,
तू अपने किरदार में ईमानदारी रख।
बड़ी मुश्किल से मिलती है ये जिंदगी,
बरक़रार तू इस जिंदगी से यारी रख।

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दिल धड़क के रह गया….

कंचन काया चमकीली आँखें,
देखें ऐसे जैसे भीतर तक झांकें ।
चाँदी सी आभा वो न जाने कहाँ से लाए,
पड़ जाएँ जो सामने तो पलके मेरी झुक जाएँ।
वो बला की ख़ूबसूरत है क़ातिल हैं निगाहें,
वो हक़ीक़त है दिल इसे मान ही न पाए ।
सोच कर जिसे ये तन बदन सिहर सा गया,
वो यूँ आ गए सामने कि दिल धड़क के रह गया।