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लखनऊ-एक खोज….!

मूलतः लखनऊ का नही हूँ मैं ! लेकिन २००६ से अध्ययन और नौकरी के चलते इससे जुड़ा रहा। वैसे लखनऊ से होकर गुजरना बचपन से ही होता रहा। पता नही क्यूँ इस शहर को लेकर मेरे मन में एक अलग कौतूहल और नजरिया होता था कि नवाबी शहर है, बड़े लोग रहते होंगे, कुछ अलग मिज़ाज के लोग मिलेंगे- बिल्कुल नवाबी, साहित्यिक टाइप, नृत्य और संगीत का शौक रखने वाले आदि-२। अवध की शाम कुछ खास होती होगी! जो कि बहुचर्चित भी है। शाम होते ही महफ़िलें सजती होंगी।लोग इकट्ठा होते होंगे। शेरो-शायरी का दौर और लतीफों के संग ठहाकों की गूंज। मेरा मानना था कि यहाँ की महफ़िलें और शहरों से कुछ जुदा होती होंगी। जब भी टेम्पो में बैठता और टेम्पो गोमती नदी को पार करते हुए लखनऊ यूनिवर्सिटी के बगल से गुजरता तो भाई-साहब पूछिये मत! क्या साहित्यिक और रेट्रो वाली फीलिंग आती थी हृदय में। एक गज़ब की ऐंठन उठती थी रोम-२ में। इस पर कहीं टेम्पो वाला ये गाना बजा दे- चलते-२ यूँ ही कोई मिल गया था….. सरे राह चलते-२ (पाकीजा)! तो मैं अपने अंदर के ज़हर को खुद नहीं सम्भाल पाता था और नीला हो जाता था😁। मेरी कल्पनाओं और टेम्पो वाली वास्तविकता दोनों मिलकर बिल्कुल अलग ही दुनिया के रास्ते खोल देती थीं। कोई थोड़ा और धक्का दे देता तो मैं पृथ्वी पर मिलता ही नहीं।

खैर….! नौकरी लगी। लखनऊ ही पोस्टिंग मिली। पोस्टिंग के शुरुवात में ही चौक क्षेत्र के बिजली अधिकारी। एक बार को तो विश्वास ही न हो कि मेरे साथ इतना अच्छा कैसे हो सकता है! चौक में मेरे जे०ई० रहे गोयल जी और थारू जी। बिल्कुल बिंदास प्रकृति के लोग। गोयल जी का गायन, मेरा कविता पाठ और थारू जी का आदर्श श्रोता होना एक किलर कॉम्बिनेशन था। शाम होते ही हम चौपाल लगा लेते। मेडिकल कॉलेज बिजलीघर की शाम शानदार होती थी। यूनिवर्सिटी से पढ़ कर आया था और मेडिकल यूनिवर्सिटी कैंपस में बैठकर मेडिकल स्टूडेंट्स को देखना मुझे हमेशा बी० एच० यू० पहुँचा देता। आखिरकार कॉलेज से निकले अभी दिन ही कितने हुए थे ! कुड़िया घाट की चर्चा कभी और होगी। कुछ दिन तो अच्छा लगा। फिर उसके बाद एक बेहद ही कम अन्तराल पर लखनऊ में ही अन्यत्र तैनाती मिल गई।

लखनऊ की झलक मुझे कुछ हद तक आफताब सर और अफसर हुसैन साहब में देखने को मिलती थी और उनके साथ बैठने में अच्छा भी लगता था। गज़ब की उर्दू अदब में लिपटी जुबान। कसम से बस सुनते ही रहे आप उन लोगों को। उस समय मेरा कार्यालय रेजीडेंसी के बगल वाले लेसू भवन में हुआ करता था। यहाँ तक तो ठीक था, मुझे लखनऊ का एहसास होता रहता था। दीप होटल में दोस्तों के साथ बैठना और फरमाइशी ग़ज़लों का दौर भी लखनऊ को ज़िंदा कर देता था कभी-२। दीप होटल जैसा होटल पूरे लखनऊ में नहीं। फिर समय बीतता गया और व्यस्तता बढ़ती गई। इस दौरान ४-५ वर्षों में कई लोगों से मुलाकात हुई। कुछ बड़े तो कुछ छोटे! सबमें कुछ न कुछ ढूंढता रहता। शायद जो लखनऊ मैं ढूंढ रहा था वो अब लोगों में बचा ही नहीं था।

इसके बाद मैंने अपनी लेखन के शौक पर ध्यान देना प्रारम्भ किया। कुछ पुस्तकों को शौकिया प्रकाशित भी किया गया। और फिर इस शौक ने थोड़ी पहचान दिलाई। जनाब वाहिद अली वाहिद साहब से भी साक्षात मुलाकात हुई। मेरा सौभाग्य था और आज भी है। लेखन की वजह से इंदौर जाने को भी मिला और कल्प एशिया के संयोजकों और संस्था से जुड़े कुछ अच्छे लोगों से मिलने को मिला! फिर उन लोगों को अपने लखनऊ भी बुलाया गया। लखनऊ यूनिवर्सिटी में एक साहित्यिक कार्यक्रम भी किया गया। बृज मौर्या और राम आशीष के सहयोग से। एक हरफनमौला किरदार पवन उपाध्याय जी से भी मुलाकात हुई। इस दौरान लखनऊ को करीब से जीने का मौका मिला। इतना सब कुछ किया गया तो केवल लखनऊ की खोज में ही। लखनऊ मिला लेकिन टुकड़ों में। टुकड़ों में इसलिए कह रहा हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जरूरतों और इस टेक्नॉलजी के युग में आवश्यकता से अधिक व्यस्त हो गया है। व्यस्तता इतनी कि अब सुबह के बाद रात होती है, दोपहर और शाम नहीं होती। लखनऊ की शाम को मत खोजिये, वो अब नहीं मिलती।

नौकरी में प्रोन्नति मिल चुकी है। शायद लखनऊ छोड़ने का समय भी आ गया है। लेकिन मन असंतृप्त है। एक खोज है जो अधूरी रह गई। वो शाम नहीं मिली जिसकी कहानियाँ सुनते थे। कुछ महफ़िलों के आयोजन होते हैं किन्तु उनका मजा लेने के लिए आपका वी० आई० पी० होना जरुरी है लेकिन उनमें मजा नहीं होता केवल आव भगत करने या कराने में समय जाया जाता है। वो महफ़िल नहीं मिली जिसमें लखनऊ वाली गर्म-जोशी, मेहमान-नवाजी, शेरो-शायरी, संगीत, ग़ज़ल और लाल-काली युग्म की साड़ी में लिपटी तुम से एक हसीन मुलाकात हो 😍😛! खैर …… उस शाम की खोज अभी जारी है। लखनऊ में लखनऊ को खोज ही लेंगे……… एक दिन !

यदि लखनऊ से होकर गुजरना चाहते हैं तो नीचे दिए लिंक को जरूर चेक करें ! आपको अच्छा लगेगा।

एक लखनवी की लव स्टोरी…..https://anunaadak.com/2019/08/08/एक-लखनवी-की-लव-स्टोरी/

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०९.०८.२०२०

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Writer, cook, blogger, and photographer...... yesssss okkkkkk I am an Engineer too :)👨‍🎓 M.tech in machine and drives. 🖥 I love machines, they run the world. Specialist in linear induction machine. Alumni of IIT BHU, Varanasi. I love Varanasi. Kashi nahi to main bhi nahi. Published two poetry book - Darpan and Hamsafar. 📚 Part of thre anthologies- Axile of thoughts, Aath dham assi and Endless shore. 📖 Pursuing MA Hindi (literature). ✍️ Living in lucknow. Native of Ayodhya. anunaadak.com, anandkanaujiya.blogspot.com

2 thoughts on “लखनऊ-एक खोज….!

  1. ऐसू ही पद्दोनती मिलती रहे और उम्मीद करते हैं कि जिसकी खोज की जा रही है वो ज़ल्द मिले ।।

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